मनुष्य इतिहास बनाता है, इतिहास लिखता भी है परन्तु एक विचारक के अनुसार मनुष्य इतिहास से यही सीखता है कि मनुष्य इतिहास से कुछ भी नहीं सीखता। यदि सीखने का प्रयत्न किया जाए तो बहुत-सी समस्याओं का समाधान हो जाए। भारत कृषि प्रधान देश है। महात्मा गांधी जैसे राष्ट्रीय नेता बार-बार यह कहते थे कि भारत की सभी योजनाएं कृषि और ग्रामीण प्रधान होनी चाहिए। आजादी के आरंभ में बड़ी-बड़ी पंचवर्षीय योजनाएं बड़े-बड़े नगरों के लिए बड़े-बड़े आकार की बनती रहीं। गांव गरीब और कृषि को आधार बना कर यदि योजनाएं बनी होतीं तो आज इतनी अधिक गरीबी नहीं होती। गरीबी अधिकतर गांवों में है और गांव में ही किसान रहता है।
मुझे इस विभाग का मंत्री रहने का मौका मिला। जब मैंने भारतीय खाद्य निगम का कार्यभार संभाला। उसके संबंध में जानकारी ली तो मैं बहुत डर गया। अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से पूरा विभाग अस्त-व्यस्त था। मुझसे पहले के कुछ मंत्री विभाग में चीनी और खाद्य के कई मामलों में दागी होकर निकले थे। मैं अपने विभाग की पूरी जानकारी लेने के बाद प्रधानमंत्री जी को मिला। उन्हें सारी बात बताई। उस समय के एक ईमादनार योग्य अधिकारी भूरे लाल को खाद्य निगम का कार्यभार देने के लिए कहा। कई कारणों से उन्हें मेरे विभाग में लगाने में अड़चनें थीं। मेरे अधिक आग्रह पर श्री भूरे लाल को विभाग में लगा दिया गया। कुछ ही दिनों में सुधार करना संभव हुआ।
मैं कृषि मंत्री भी रहा और उसके बाद इसी संबंध में एक उच्च अधिकार सम्पन्न समिति के अध्यक्ष के रूप में काम करने का मौका मिला। भारतीय कृषि संबंधी बहुत-सी व्यवस्थाएं पुरानी हो गई हैं। समय बदल रहा है। व्यवस्थाएं भी बदलनी चाहिएं। बच्चा जब बड़ा होता है तो उसे पुराने कपड़े नहीं पहनाए जा सकते। मुझे प्रसन्नता है कि कृषि के संबंध में सारे अध्ययन करने के बाद केंद्रीय सरकार ने नए कृषि कानून पास किए। बहुत से किसान इसे समझ नहीं पाए। समझाने में हमारी भी कमी रही होगी परन्तु आज इनका विरोध करने वालों में मुख्य रूप से निहित स्वार्थ राजनीतिक दल और कुछ वे शक्तियां हैं जो किसी भी समय का लाभ उठाकर सरकार को कमजोर करना चाहती हैं।
मुख्य अनाज गेहूं और धान का उत्पादन सबसे अधिक पंजाब में होता है। सरकार की खरीद भी सबसे अधिक पंजाब में होती है। सारी व्यवस्था पर आढ़तियों और बिचौलियों का कब्जा है। सरकार को भी टैक्स मिलता है। इन सब की यह आय प्रतिवर्ष 5 हजार करोड़ से भी अधिक बनती है। छोटे किसानों का शोषण होता है। छोटा किसान तो सरकार तक पहुंच ही नहीं पाता। इसलिए केवल 6 प्रतिशत किसान ही खाद्य निगम को अनाज देेते हैं। एम.एस.पी. का लाभ उठाते हैं। भारत की पूरी कृषि व्यवस्था को बदलने के लिए वर्तमान कानून बहुत आवश्यक हैं।
आज से 43 वर्ष पहले ही समस्या हमारे सामने आई थी। 19 महीने जेल में रहने के बाद मैं मुख्यमंत्री बना। बहुत कुछ करने का जुनून था परन्तु धन नहीं था। कुछ योग्य अधिकारियों से सलाह की। हिमाचल प्रदेश में उस समय ही 21 हजार मैगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता थी। विकास के लिए सबसे पहले जरूरत बिजली की होती है। हमें लगा यदि पन बिजली उत्पादन में देश के निजी क्षेत्र को लगाया जाए तो एक नई क्रांति हो सकती है। मैंने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जी के पास जाकर बात की। उन्होंने कहा बिल्कुल संभव नहीं। दूसरी बार दिल्ली गया तो मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा, ‘हमारे छोटे से हिमाचल के मंडी में यदि निजी क्षेत्र बंदूक बना सकता है तो फिर निजी क्षेत्र बिजली क्यों नहीं बना सकता।’ श्री देसाई जी ने कुछ हैरान होकर ध्यान से सुना और विस्तार से पूछा परन्तु फिर कहने लगे कि यह संभव नहीं।
1990 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बना। मंत्रिमंडल की पहली बैठक में निर्णय किया कि हिमाचल सरकार पन बिजली उत्पादन में निजी क्षेत्र को बुलाएगी। खूब चर्चा हुई, विरोध भी हुआ। दिल्ली गया। अपने एक नेता की सलाह पर उस समय के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह जी को मिला। मेरी बात सुनते ही वे खुशी से उछल पड़े। कहने लगे यही तो वे चाहते हैं। निजी क्षेत्र को लाए बिना देश विकास नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि वे अतिशीघ्र संसद में कानून में संशोधन लाने का बिल रखेंगे। मैं श्री अटल जी और श्री अडवानी जी को पूरा समर्थन देने के लिए कहूं। मैंने अपने नेताओं से बात की। एक महीने के अंदर केंद्रीय कानून बदला और कुछ ही महीने के बाद भारत के निजी क्षेत्र की पन बिजली को पहली 300 मैगावाट की वासपा योजना हिमाचल प्रदेश में शुरू हुई। आज पूरे भारत में निजी क्षेत्र बिजली उत्पादन में ही नहीं पूरे विकास का सांझीदार बन गया है। हिमाचल प्रदेश में ही इस समय लगभग 300 पन बिजली परियोजनाएं 400 मैगावाट की निजी क्षेत्र में चल रही हैं।
उस समय हिमाचल प्रदेश को इतनी बड़ी क्रांति लाने के लिए कितना जूझना पड़ा था। कर्मचारियों ने उग्र आंदोलन किया लेकिन फिर भी फैसला लागू किया गया। आज कृषि कानून पर भी 1990 जैसी परिस्थिति पैदा हो गई है। मुझे प्रसन्नता है कि सरकार नम्रता व प्यार से किसानों को सब कुछ समझा रही है। जहां आवश्यक है वहां संशोधन भी कर रही है। अब नए कानून तो लागू होने ही चाहिएं। कृषि क्षेत्र में नई क्रांति आएगी।
- शांता कुमार (पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)
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