मेरी छोटी बेटी प्रत्येक दिवस शाम के समय अपने माता-पिता को मिलने आती है। एक दिन वह एक युवती को ले आई जिसे उसने अपनी सलाहकार के रूप में मुझसे मिलवाया। नीना का मतलब था कि वह लड़की को सलाह दे रही है। मेरी बड़ी बेटी भी दूसरी लड़की का उल्लेख करती है। दोनों लड़कियां हाई स्कूल में हैं और उन्हें खुद पर विश्वास हासिल करने और अपने द्वारा बोली जाने वाली अंग्रेजी भाषा को और बेहतर बनाने की जरूरत है। पूछने पर पता चला कि नीना जिसकी आयु अब 60 के करीब हो चुकी है, दिल्ली से मुम्बई जाने वाली एक फ्लाइट में उसकी मुलाकात एक महिला से हुई थी। उस महिला ने ऐसे प्रोजैक्ट में अपनी भागीदारी का उल्लेख किया जहां दिल्ली में स्थापित परिवारों की अधिक सम्पन्न महिलाएं घरेलू सहायकों की बेटियों को परामर्श देती हैं ताकि जीवन में अपनी वर्तमान स्थिति से वे ऊपर उठ सकें। उनसे बातचीत के बाद उन्होंने आत्मविश्वास के साथ-साथ ज्ञान भी हासिल किया। इससे वह ऐसे क्षेत्रों में रोजगार के लिए प्रतिस्पर्धा में भाग लेने में सक्षम हुईं जिसके बारे में उनके माता-पिता कभी सोच भी नहीं सकते थे।
‘संघर्ष में और निखरती रही हैं ममता’
लड़कियों के पिता या तो कार चालक थे जो अमीरों के यहां नौकरियां करते थे। इसके अलावा दूसरे अन्य छोटे कार्यों में लगे हुए थे और अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे। उनकी माताएं या तो घरेलू नौकरियां या फिर रोटी बनाने का काम करती थीं। इसके अलावा सम्पन्न घरों में बर्तन धोने और घर की सफाई करने जैसे कार्य भी करती थीं। मेरी बड़ी बेटी ऐना ने एक मुस्लिम युवा लड़की का जिक्र किया जो एक जूनियर कालेज में पढ़ाई कर रही थी। नीना के पास मुम्बई के सांताक्रूज इलाके में रहने वाले कोंकणी भाषाई लोगों का प्रभार था। उस मुस्लिम लड़की ने इस अप्रैल माह में हाई स्कूल सर्टीफिकेट के लिए शामिल होना था। इन दो लड़कियों जिनके साथ मेरी दोनों बेटियां जुड़ी हैं, को दिल्ली में अच्छी तरह से जाना जाता है। जहां पर 3 दशकों से ये दोनों एक संगठन का संचालन कर रही हैं। इस संगठन को उडयन केयर के नाम से जाना जाता है। 2016 में इसने दिल्ली में अपनी सफलताओं के आधार पर गतिविधियों का मुम्बई में विस्तार किया। लड़कियों में से एक जो दिल्ली में पली-बढ़ी, को फाऊंडेशन द्वारा यू.के. भेजा गया और वहां पर विज्ञान में योग्य डाक्टर ऑफ फिलास्फी बन कर उभरी। उसे इंगलैंड में नौकरी मिल गई। लेकिन फाऊंडेशन के काम में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए घर लौटने का फैसला किया। सांताक्रूज के झुग्गी-झोंपड़ी इलाके में रहने वाली लड़कियों में भी इसी तरह की प्रतिबद्धता देखी गई। यह इलाका पूर्व सांसद डा. विट्ठल बालकृष्ण गांधी द्वारा स्थापित यू.एस.वी. कम्पनी से संबंधित एक फार्मास्यूटिकल फैक्टरी के पास है। डा. गांधी की पत्नी सुशीला गांधी जो महाराष्ट्रीयन समुदाय में पहली महिला डाक्टर थी की याद में उनकी दोहती लीना गांधी तिवारी ने एक झुग्गी-झोंपड़ी की रहने वाली लड़की को गोद लिया और उसे युवा में बदल दिया। मैंने लीना से मुलाकात की थी और उसके कार्य में मैंने दिलचस्पी दिखाई। दूसरों के लिए कार्य करने वाले लोग मुझे हमेशा भाते हैं। झुग्गी-झोंपड़ी के मराठी भाषायी बच्चों के उत्थान के लिए लीना गांधी तिवारी ने अपना मिशन शुरू किया। इस कार्य को उन्होंने अकेले ही आगे बढ़ाया। जैसे-जैसे इसकी गतिविधियां बढ़ीं तो उन्होंने अपने स्टाफ मैंबरों को भी सहायता के लिए शामिल किया। इसके लिए उन्होंने गोद लिए बच्चों को योग्य बनाने के लिए टीचरों की भर्ती तक की। बच्चों ने डांस तथा उसके बाद नाटक की क्लासों में अपनी रुचि दिखाई।
अब एक और ‘इंदिरा गांधी’ ढूंढे कांग्रेस
बच्चों की गिनती बढऩे के बाद उन्होंने अंग्रेजी तथा मैथ सब्जैक्ट पढ़ाना भी शुरू किया। वह खुद स्वयं तथा अपने पति प्रशांत, जो कम्पनी के एम.डी. भी हैं, की मदद से अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया। उनके द्वारा शिक्षा प्राप्त एक बच्ची एम.बी.ए. पास कर चुकी है और ताज ग्रुप ऑफ होटल्ज में एच.आर. डिपार्टमैंट में जॉब करती है। मुझे एक अन्य महिला के बारे में पता है जो मुस्लिम है। वह अनाथ तथा गरीब मुस्लिम लड़कियों की संख्या में सुधार करने के लिए काफी खर्च करती हैं। मुमताज ‘मीमी’ बाटलीवाला का संबंध प्रतिष्ठित बोटा वाला परिवार से है जो मुम्बई के एक महंगे इलाके में रहती हैं। मीमी तथा उनकी बहन शानीम ने अपनी पारिवारिक सम्पत्ति को एक अनाथालय में बदल डाला है जहां 50 से अधिक लड़कियां रहती हैं। उन्हें वहां पर खाना खिलाने के साथ-साथ अपनी बसों में बिठाकर म्युनिसिपल स्कूलों में भेजा जाता है। उनका मकसद अनाथ बच्चियों को ऐसा जीवन देने का है जिससे वह वंचित न रह सके। मीमी खुद महान योगी बी.के.एस. आयंगर की शिष्य हैं। संध्या के कार्यक्रम में योग शामिल है। दोनों बहनों की मदद के लिए अनेकों दोस्तों ने उस समय हाथ बढ़ाए जब उनके पड़ोसियों, सरकारी कर्मियों तथा म्युनिसिपल अधिकारियों या फिर वक्फ बोर्ड के सदस्यों ने उनके लिए मुश्किलें पैदा की। मुम्बई जैसे इलाके में उन महिलाओं तथा पुरुषों को ढूंढना मुश्किल नहीं जो दूसरों के लिए मदद करते हैं।
-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
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