मोदी सरकार (Modi Government) ने आयुर्वेद के भारतीय पारंपरिक विज्ञान को एक जबरदस्त और प्रशंसनीय प्रोत्साहन दिया है। जैसा कि दुनिया कोविड महामारी के चलते जूझ रही है। ऐसे में आज सभी की निगाहें भारत पर हैं। हर घर में काढ़ा और मसालेदार हर्बल काढ़े के सेवन के एहतियाती उपायों को अपनाया गया ताकि प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सके। सदियों पुराने सनातन सार के उस पुराने ज्ञान ने सुनिश्चित किया है कि महामारी को बेहतर ढंग से नियंत्रित किया गया है।
2014 में जब भाजपा सत्ता में आई तो एक नामित मंत्री के साथ मंत्रालय शुरू करके आयुर्वेद पर जोर दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की शुरूआत की जिसके तहत हमारी समृद्ध विरासत की जड़ों को पुनर्जीवित करने का दृढ़ संकल्प लिया गया। मोदी के शब्दों में, ‘‘योग भारत की प्राचीन परम्परा का एक अमूल्य उपहार है।’’
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आयुर्वेद के लिए वर्तमान स्थिति एक अच्छा मौका है। पारंपरिक चिकित्सा विश्व स्तर पर अधिक लोकप्रिय हो रही है। ग्लोबल आयुर्वेद फैस्टीवल 2021 के चौथे संस्करण का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि आयुर्वेद को एक समग्र मानव विज्ञान के रूप में वर्णित किया जा सकता है। मोदी ने आगे कहा, ‘‘पौधों से लेकर आपकी प्लेट तक, शारीरिक मजबूती से लेकर मानसिक कल्याण तक आयुर्वेद और पारंपरिक उपचारों का प्रभाव बहुत अधिक है।’’ इस संदर्भ में वैद्यरत्नम ने हाल ही में 3500 वर्ष पुरानी विरासत को समाविष्ट किया। डा. राघवन रमनकुट्टी ने सेहत और कल्याण के मेरे विचारों में एक अपार और मौलिक बदलाव किया है।
डा. राघवन तीन महाद्वीपों में पांच दशकों से भी अधिक समय से आयुर्वेदिक उपचार का अभ्यास कर रहे हैं। डाक्टरों के शब्दों में पूर्ण शरीर या एक स्वस्थ शरीर वह है जो बीमारी से मुक्त है। इसके अलावा ‘स्वास्थ्म’ एक शांतिपूर्ण स्थिति है। मैं पल्स एग्जामीनेशन के महत्व से अवगत था जो डा. राघवन के उपचार का केंद्र बिंदू है। मरीज की नब्ज को महसूस करके बीमारी की जड़ों की पहचान की जाती है। जो भी हमारे साथ शारीरिक या मानसिक रूप से होता है वह सूक्ष्म रूप से हम में अंकित होता है। पल्स एग्जामीनेशन के दौरान ये स्पष्ट ढंग से सामने आता है।
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एक अनुभवी चिकित्सक इन कंपन को स्पष्ट रूप से समझ सकता है। ये निष्कर्ष निदान को कम करने में मदद करते हैं। ये एक वैज्ञानिक तकनीक है लेकिन इसमें महारत हासिल करने के लिए गहन अध्ययन और विशेष शिक्षा की जरूरत होती है। राघवन का कहना है कि हम रोगी का इलाज करते हैं जबकि अन्य बीमारी का इलाज करते हैं।
पल्स एग्जामीनेशन के माध्यम से उन्हें न केवल रोगी की शारीरिक और मानसिक स्थिति का एक स्पष्ट चित्र मिलता है बल्कि यह भी पता चलता है कि रोगी विभिन्न दवाओं पर क्या प्रतिक्रिया देगा। अन्य शब्दों में हम सभी बुखार के लिए पैरासिटामोल पर शून्य नहीं होते। रोगी की व्यक्तिवादी प्रवृत्ति और उपचार के लिए उसकी व्यक्तिगत प्रतिक्रियाओं का पता लगाने के लिए विस्तार से विश्लेषण किया जाता है। प्रत्येक रोगी अलग होता है और प्रत्येक के लिए उसी बीमारी हेतु एक अलग दवाई बताई जाती है।
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आयुर्वेद 3 सिद्धांतों पर आधारित है वे हैं हितु, लिंगम तथा आयुषधाम। ये एक डाक्टर की सटीकता है जिसने 9 साल की उम्र में अपने गुरु स्वामी धनंजय दत्तात्रेय देव के साथ प्रशिक्षण शुरू किया था। 3500 साल से दत्तात्रेय विरासत ने अपनी प्राचीन शुद्धता में आयुर्वैदिक चिकित्सा के ज्ञान को संरक्षित किया है। गुरु के लिए बड़ी विनम्रता और श्रद्धा है जो डा. राघवन के लिए पिता, माता, भाई और दोस्त के रूप में विकसित हुए। हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने असंख्य बार देखा है कि आयुर्वेद केवल एक विशाल चिकित्सा प्रणाली नहीं है। यह एक आध्यात्मिक यात्रा भी है।
डा. राघवन ने 44 देशों की यात्रा की। उन्होंने उपचार और पौधों के बारे में जानने के लिए वैदिक अध्ययनों का मार्गदर्शन लिया। उन्होंने भिक्षुकों तथा आयुर्वेद विशेषज्ञों से भी ज्ञान हासिल किया। डा. राघवन के शब्दों में आयुर्वेद सिद्धांतों पर आधारित है। उन्होंने चिकित्सा डिक्शनरी से असंभव और लाइलाज शब्दों को मिटा रखा है। मोदी ने तनाव से निपटने और तनाव से प्रेरित जटिल बीमारियों को रोकने के लिए योग और आयुर्वेद के लाभों को हमेशा बढ़ाया है।
-आर.पी. सिंह(भाजपा प्रवक्ता)
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