यह देश के लिए गर्व, वैज्ञानिकों के लिए उपलब्धि और राजनीतिक इच्छाशक्ति तथा नागरिकों के संयम की जीत है कि एक ओर अनदेखी, अंजान बीमारी धीरे-धीरे कम हो रही है और दूसरी ओर राहत मिल रही है कि अब सब कुछ पटरी पर लौट रहा है। परन्तु इससे यह समझना भूल होगी कि बीमारी खत्म हो जाएगी, इसका फैलाव रुक जाएगा और हम पहले की तरह रहने लगेंगे। पहली बात तो यह है कि कोई भी टीका हो, वह कभी किसी बीमारी का इलाज नहीं होता क्योंकि ज्यादातर बीमारियों के बारे में यह संशय रहता है कि वह होती कैसे हैं, संक्रमण कैसे होता है और जब इस बारे में पक्की जानकारी नहीं है तो उन्हें न होने देने के लिए सौ प्रतिशत गारंटी कैसे दी जा सकती है?
केवल बचाव ही उपाय है इस बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण (Vaccination) की प्रक्रिया और प्रभाव वैसा ही है जैसा कि जन्म लेने से पहले माता और उसके बाद शिशु का टीकाकरण होता है ताकि जीवन भर अनेक बीमारियों के हमले से बच कर रहा जा सके। महामारी की तरह आई यह बीमारी भी टीका लगने से रुक जाएगी लेकिन अगर कोई समझे या कहे कि यह समाप्त हो जाएगी तो यह गलत होगा, इसलिए इससे बचे रहने के उपाय जो अभी तक किए जा रहे हैं और हम उनके अभ्यस्त हो गए हैं तो उन्हें जारी रखने में ही भलाई है।
टीकाकरण की शुरूआत पूरे विश्व में हो चुकी है और अब हमारे देश में भी हो रही है तो यह एक सकारात्मक कदम तो है ही, साथ में विश्वास भी है कि अब इसके संक्रमण से बचाव हो जाएगा। यहां यह समझना भी जरूरी हो जाता है कि अब तक जितने भी टीकाकरण हुए हैं उनका लक्ष्य सीमित आबादी वाला रहा है लेकिन इस बीमारी का टीका तो सबको लगवाना ही होगा क्योंकि इसका शिकार बाल, युवा, अधेड़, वृद्ध में से कोई भी हो सकता है।
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टीकाकरण से इतना होता है कि इसके लगने के बाद शरीर इस काबिल हो जाता है कि बीमारी का आक्रमण झेल सके और उसे दूर से ही नमस्ते कर भगाने में सफल हो जाया जाए। इसका मतलब यह है कि हमारी प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी इतनी अधिक हो कि हम उससे बचे रहने में सफल हों और बीमार न पड़ें। इसका एक अर्थ यह भी है कि जो भी वायरस है वह मनुष्य के शरीर में घुसने से पहले ही अपना शिकार न मिलने से इतना कमजोर हो जाए कि अपनी मौत खुद मर जाए।
अभी केवल स्वास्थ्य कर्मियों, जरूरी सेवाओं को प्रदान करने वाले व्यक्तियों को टीका लगेगा और उसके बाद पचास से अधिक उम्र वालों की बारी आएगी। इस काम में कितना समय लगेगा, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है, निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, फिर भी छह माह से एक वर्ष की अवधि तो अपने देश की जनसंख्या के आकार को देखकर लग ही सकती है। उसके बाद अन्य लोगों की बारी आएगी। इस अवधि में यह भी पता चल जाएगा कि टीकाकरण की सफलता की औसत दर क्या है और यह भी कि इस दौरान हो सकता है कि वैज्ञानिक कोई नई खोज करने में भी सफल हो जाएं जिससे अधिक असरदार चिकित्सा पद्धति निकल सके।
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चुनौतियां क्या हैं इस टीकाकरण के असर के बारे में शोधकर्ताओं की ओर से दो बातें कही गई हैं, एक तो यह कि इसके लगने पर व्यक्ति स्वयं तो बच जाएगा लेकिन अगर उसके शरीर में वायरस है तो वह उससे दूसरों यानी अपने संपर्क में आने वालों को संक्रमित कर सकता है और दूसरी बात यह कि अगर वह अभी तक संक्रमण से बचा हुआ है तो अपने साथ दूसरों को भी इस बीमारी से बचाने के लिए कवच बन सकता है। ऐसा इसलिए है कि अभी तक यह बीमारी लक्षण और बिना किसी लक्षण के बढ़ती हुई देखी जाती रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमें यह नहीं समझना चाहिए कि जिनका टीकाकरण हो गया है उनसे संक्रमण नहीं हो सकता और उनके संपर्क में आने वाले पूरी तरह सुरक्षित हैं।
यह स्थिति केवल तब आ सकती है जब प्रत्येक व्यक्ति का टीकाकरण हो जाए जो कि वर्तमान परिस्थितियों में तुरंत संभव नहीं है। इसमें महीनों से लेकर कई वर्ष तक लगने वाले हैं, इसलिए प्रत्येक नागरिक को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार रहना होगा कि अभी इस बीमारी से बचकर रहने के उपाय करते हुए ही जीना होगा।
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इसका अर्थ यही है कि हमने अपनी जिस जीवन शैली को इन दिनों अपनी दिनचर्या का अंग बना लिया है, उसे आगे भी अपनाए रखना होगा और कुछ चीजें तो ऐसी हैं कि वे जीवन भर साथ रहें तो अच्छा ही है। इस बीमारी के कारण हमारी जीवनशैली में बहुत से परिवर्तन हो गए हैं जिनमें से कुछ को कायम रखा जा सकता है और कुछ को छोडऩे के बारे में सोचा जा सकता है। इनमें बातचीत, मीटिंग, काम-धंधे, रोजगार, प्रैजैंटेशन आदि के लिए आधुनिक संचार और संवाद साधनों का इस्तेमाल सदा के लिए अपनाया जा सकता है।
हमारे देश में संक्रमण की दर घटते जाने का एक कारण यह है कि इस बीमारी के दौरान अधिकांश लोगों ने अपनी इम्युनिटी बनाए रखने के लिए अपने खानपान में काफी बदलाव किए हैं। इन्हें भी इसी तरह जारी रखा जा सकता है क्योंकि पौष्टिकता हमेशा ही बनी रहनी चाहिए। यही सब चुनौतियां या अवसर हैं जिनके साथ हमें जीने की प्रैक्टिस हो ही गई है तो फिर इन्हें अपनाए रखने में ही समझदारी है।
-पूरन चंद सरीन
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