पिछले कुछ बरसों से बॉलीवुड में एक नया ट्रेंड चला है समकालीन लोगों की जीवनियों पर आधारित फिल्में बनाने का। पिछले हफ्ते रिलीज हुई ‘गुंजन सक्सेना-द कारगिल गर्ल’ एक ऐसी ही फिल्म है जो भारतीय वायु सेना की पायलट गुंजन सक्सेना के जीवन पर आधारित है। गुंजन सक्सेना वह जांबाज पायलट हैं जिन्होंने कारगिल युद्ध में बहुत सूझबूझ और हिम्मत का परिचय दिया। इस युद्ध के दौरान श्रीनगर बेस कैंप से उन्होंने 40 बार कारगिल के लिए उड़ानें भरीं। सीमा पर लड़ रही भारतीय फौज को रसद पहुंचाने और गोले-बारूद के बीच से घायलों को निकाल कर लाने की जि़म्मेदारी उन्हें दी गई थी, जिसे उन्होंने बखूबी अंजाम दिया और सिद्ध कर दिया कि महिलाएं बहादुरी में किसी मर्द से पीछे नहीं होतीं।
हालांकि पूरी तरह मर्दों द्वारा संचालित वायु सेना में पायलट के रूप में गुंजन सक्सेना की ‘एंट्री’ आसान नहीं थी। उन्हें समकक्ष पायलटों की भारी उपेक्षा और उनसे अपमान सहना पड़ा। पर वह डटी रहीं और एक सफल लड़ाकू पायलट के रूप में नाम कमाया। फिल्मी पर्दे पर भी इस भूमिका को जाह्नवी कपूर ने बहुत खूबसूरती से निभाया है। इससे पहले भी बॉकिं्सग चैम्पियन मैरी कॉम, धावक मिलखा सिंह, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी, कुश्ती के लिए मशहूर हुई फोगाट बहनें और विश्वविख्यात गणितज्ञ शकुंतला देवी आदि समकालीन सितारों पर पिछले वर्षों में बेहतरीन फिल्में आई हैं।
इससे पहले के दौर में ऐतिहासिक विभूतियों जैसे सरदार भगत सिंह, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस और पहले के दौर के नायक छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप आदि या फिर अलग-अलग प्रांतों में समाज को दिशा और शांति देने वाले संत जैसे मीरा बाई, संत तुकाराम, संत नामदेव आदि पर भी फिल्में बनती रही हैं। इससे और भी पहले के दौर में पौराणिक चरित्रों पर भी बहुत फिल्में बनी हैं। जैसे भक्त प्रह्लाद, भक्त ध्रुव व सूरदास आदि।
दरअसल, सितारे केवल वही नहीं होते जो फिल्म के पर्दे पर दिखाई देते हैं। नायक केवल वही नहीं होते जो युद्ध जीतते हैं बल्कि हर वह व्यक्ति जो अपने कार्य क्षेत्र में अपनी मेहनत, लगन और निष्ठा से छाप छोड़ता है वह जनता की दृष्टि में सितारा ही होता है। चाहे वह खेल में हो, समाजसेवा में हो, साहित्य या पत्रकारिता में हो या कला व संगीत में हो, एेसे ‘रियल लाइफ हीरो’ की जिंदगी के हर पहलू को जानने की जिज्ञासा आम लोगों में हमेशा रहती है। उनका कहां जन्म हुआ, वह कैसे इस क्षेत्र में आए, उन्होंने कितना और कैसे संघर्ष किया और फिर उन्हें कब और कैसी कामयाबी मिली, एेसी जीवन गाथा सुनना और सुनाना दोनों ही आनंददायक होते हैं। इसलिए ये फिल्में प्राय: सफल होती हैं।
सितारा चाहे बीते जमाने का हो या आज के जमाने का, उसकी उपलब्धियां हर एक के लिए प्रेरणादायक होती हैं, विशेषकर नई पीढ़ी के लिए। इसलिए बॉलीवुड के उन निर्माताआें के हम आभारी हैं, जो नाच, ङ्क्षहसा, इश्क जैसे घिसे-पिटे ढर्रे से बाहर निकल कर एेसे नए प्रयोग कर रहे हैं। शुरू में शायद यह जोखिम भरा प्रयास रहा हो क्योंकि अगर फिल्म बॉक्स आफिस पर सफल न हो तो वह उस फिल्म के निर्माण से जुड़े हर महत्वपूर्ण व्यक्ति को बड़ा झटका दे देती है। लेकिन जबसे नैटफ्लिक्स जैसे प्लेटफॉर्म वजूद में आए हैं तब से यह जोखिम भी खत्म हो गया है।
क्योंकि अब बिना टिकट खरीदे ही या बिना थिएटर तक जाए ही, घर बैठे-बैठे करोड़ों दर्शक दुनिया के हर कोने में अपनी सुविधा से इन फिल्मों को देख सकते हैं। इसलिए यह और भी जरूरी हो जाता है कि किसी के ‘बायोपिक’ (जीवनी) पर फि़ल्म बनाने वाले जहां तक सम्भव हो, फिल्म को तथ्यात्मक ही बनाएं। उसमें नाटकीयता न आने दें। हम जानते हैं कि अपनी प्रेमिका के आगे-पीछे बैकग्राऊंड संगीत के साथ बाग-बगीचों में दौड़-दौड़ कर प्रेम का इजहार कभी कोई नहीं करता।
प्रेम प्रदर्शन का यह तरीका बॉलीवुड ने ही ईजाद किया और आजतक ढो रहा है। आम जीवन में प्रेमी-प्रेमिका बिल्कुल ही सामान्य तरीके से केवल बातचीत में ही प्रेम का इजहार करते हैं। इसलिए जब मिलखा सिंह को अपनी प्रेमिका के साथ गीत गाते दिखाया गया तो वह किसी के गले नहीं उतरा। फिल्म में बिना वजह गाने ठूंसने से वह अनावश्यक रूप से लम्बी है। फिर भी दर्शक टिका रहा क्योंकि मिलखा सिंह की जीवनी में बहुत आकर्षण था।
बॉलीवुड में आए इस नए ट्रैंड के साथ दर्शकों की भी पसंद बदल रही है। टैलीविजन के आने से पहले नाटक और फिल्में ही आम जनता के मनोरंजन का मुख्य स्रोत होते थे। टैलीविजन के आने के बाद, खासकर निजी चैनलों के आने के बाद मनोरंजन के स्रोतों का भारी विस्तार हुआ है। अब हर व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार अपने मनोरंजन के लिए अनेक तरह के कार्यक्रम देख सकता है। एेसे में बॉलीवुड के लिए भी ये बाध्यता नहीं है कि वह केवल मनोरंजन को ही लक्ष्य बना कर फिल्मेेंं बनाए। मनोरंजन के अलावा, सूचना देना और शिक्षित करना भी इनका दायित्व होता है, जिसे निभाने में बॉलीवुड काफी पीछे रहा है। लेकिन इन बदली हुई परिस्थितियों में आम दर्शक भी बहुत जागरूक हो गया है। उसे इतिहास,धर्म, संस्कृति या ‘रियल लाइफ हीरोज’ की जीवनी पर आधारित फिल्में देखना अच्छा लगता हैं।
-विनीत नारायण
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