Monday, Sep 25, 2023
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कोरोनाकाल में डिजिटल टैक्स से भारत की आमदनी बढ़ी

  • Updated on 5/18/2021

एक बार फिर कोरोना की दूसरी घातक लहर के कारण देश के कुछ प्रदेशों में लॉकडाउन (Lockdown), तो कुछ प्रदेशों में लॉकडाउन जैसी कठोर पाबंदियों और जनता कर्फ्यू के बीच डिजिटल  कम्पनियों का कारोबार छलांगे लगाकर बढ़ रहा है। ऐसे में तेजी से बढ़ रहे ई-कॉमर्स, वर्क फ्रॉम होम और डिजिटलीकरण के बीच भारत द्वारा विदेशी कम्पनियों के डिजिटल  कारोबार पर लगाया गया डिजिटल  टैक्स यानी गूगल टैक्स भारत की आमदनी का तेजी से बढ़ता हुआ चमकीला स्रोत दिखाई दे रहा है।  

हाल ही में वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए पिछले वर्ष 2020-21 में कर संग्रह संबंधी आंकड़ों के अनुसार देश में इक्वलाइजेशन लेवी या गूगल टैक्स 2,057  करोड़ रुपए रहा, जबकि वर्ष 2019-20 में यह 1,136 करोड़ रुपए ही था। इससे पता चलता है कि वित्त वर्ष 2020-21 में गूगल टैक्स पूर्ववर्ती वर्ष के मुकाबले करीब दो गुना बढ़ गया है। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि देश की सिलीकॉन वैली कहे जाने वाले बेंगलुरु की गूगल टैक्स संग्रह में 1,020 करोड़ रुपए के साथ करीब आधी हिस्सेदारी रही है। 

गौरतलब है कि भारत में दो करोड़ रुपए से अधिक का वाॢषक कारोबार करने वाली विदेशी डिजिटल  कम्पनियों  द्वारा किए जाने वाले व्यापार एवं सेवाओं पर भारत में अर्जित आय पर दो फीसदी गूगल टैक्स लगाया जाता है। इस कर के दायरे में भारत में काम करने वाली अमरीका और चीन सहित दुनिया के विभिन्न देशों की ई-कॉमर्स करने वाली कम्पनियां शामिल हैं।

आपदा में भी कालाबाजारी के मौके तलाशते लोग 

देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कारण जिस तेजी से ई-कॉमर्स आगे बढ़ रहा है, उसी तेजी से विदेशी ई-कॉमर्स कम्पनियों की आमदनी बढ़ती जा रही है। देश में ई-कॉमर्स कितनी तेजी से बढ़ रहा है, इसका अनुमान ई-कॉमर्स से संबंधित कुछ नई रिपोर्टों से लगाया जा सकता है। विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल प्रोफैशनल सॢवसिज फर्म अलवारेज एंड मार्सल इंडिया और सी.आई.आई. इंस्टीच्यूट ऑफ लॉजिस्टिक्स द्वारा तैयार रिपोर्ट 2020 के मुताबिक भारत में ई-कॉमर्स का जो कारोबार वर्ष 2010 में एक अरब डॉलर से भी कम था, वह वर्ष 2019 में 30 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है और अब 2024 तक 100 अरब डॉलर के पार पहुंच सकता है। 

नि:संदेह  देश  बढ़ते डिजिटलीकरण, इंटरनैट के उपयोगकर्ताओं की लगातार बढ़ती संख्या, मोबाइल और डाटा पैकेज दोनों का सस्ता होना भी भारत में ई-कॉमर्स और डिजिटल  कारोबार के बढऩे के प्रमुख कारण हैं। मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडिया ट्रैफिक (एम.बीट.) इंडैक्स 2021 के मुताबिक डाटा खपत बढ़ने की रफ्तार पूरी दुनिया में सबसे अधिक भारत में है। पिछले वर्ष 2020 में 10 करोड़ नए 4जी उपभोक्ताओं के जुड़ने से देश में 4जी उपभोक्ताओं की संख्या 70 करोड़ से अधिक हो गई है। ट्राई के मुताबिक जनवरी 2021 में भारत में ब्राडबैंड उपयोग करने वालों की संख्या बढ़कर 75.76 करोड़ पहुंच चुकी है। विश्व प्रसिद्ध रेडसीर कंसटिंग की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2019-20 में जो डिजिटल  भुगतान बाजार करीब 2,162 हजार अरब रुपए का रहा है, वह वर्ष 2025 तक तीन गुणा से भी अधिक बढ़कर 7,092 हजार अरब रुपए पर पहुंच जाना अनुमानित है।  

देश से लेकर परदेस तक अपनों की चिंता

इस समय जब देश में ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ रहा है और विदेशी ई-कॉमर्स कम्पनियां भारी कमाई कर रही हैं, तब देश के ई-कॉमर्स परिदृश्य पर एक ओर देश के छोटे उद्योग-कारोबारियों के द्वारा तो दूसरी ओर वैश्विक ई-कॉमर्स कम्पनियों के द्वारा दो अलग-अलग तरह की शिकायतें लगातार बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। देश के विभिन्न औद्योगिक संगठनों और छोटे उद्योग-कारोबारियों का कहना है कि विदेशी ई-कॉमर्स कम्पनियों द्वारा गलाकाट प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपने मार्कीट प्लेटफॉर्मों के संचालन के लिए भारत में लाखों करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। देश के छोटे उद्योग कारोबारियों के द्वारा यह भी कहा गया है  कि एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कम्पनियों के द्वारा अपने प्लेटफॉर्म पर विक्रेताओं द्वारा गुपचुप तरीके से भारी छूट उपलब्ध कराकर छोटे उद्योग-कारोबार के भविष्य के सामने ङ्क्षचताएं की लकीरें खींची जा रही हैं। 

दूसरी ओर भारत द्वारा लगाए गए गूगल टैक्स पर एमेजॉन, फेसबुक और गूगल जैसी अमरीका की कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने गूगल टैक्स की न्यायसंगतता पर आपत्ति जताते हुए अमरीकी व्यापार प्रशासन के समक्ष शिकायत दर्ज की है। इसमें कहा गया है कि भारत की ओर से दो फीसदी  डिजिटल कर लगाया जाना अनुचित, बोझ बढ़ाने वाला और अमरीकी कम्पनियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है। 

संकटकाल के दौरान सेना की प्रशंसनीय भूमिका मगर...

ऐसे में अब देश में नई ई-कॉमर्स नीति तैयार करते समय सरकार का दायित्व है कि ई-कॉमर्स से देश की विकास आकांक्षाएं पूरी हों तथा उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिए नियामक भी सुनिश्चित किया जाए। साथ ही नई ई-कॉमर्स नीति के तहत डाटा की अहमियत को समझते हुए विदेशी डिजिटल  कम्पनियों से टैक्स वसूली की व्यवस्था बनाने के लिए ठोस पहल और कारगर नियमन सुनिश्चित किए जाने होंगे।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि डिजिटल  कर लगाने का कदम भारत का  संप्रभु अधिकार है। यह कर अमरीकी कम्पनियों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी डिजीटल कम्पनियों के लिए समान नियम से लागू है। भारत द्वारा लगाया गया गूगल टैक्स विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी.ओ.) के नियमों का उल्लंघन नहीं है। वस्तुत: डाटा एक ऐसी सम्पत्ति है, जिस पर भारत के हितों का ध्यान रखा जाना जरूरी है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोविड-19 के बाद नई वैश्विक आॢथक व्यवस्था के तहत भविष्य में डाटा की वही अहमियत होगी जो आज पैट्रोलियम पदार्थों और सोने की है। चूंकि डिजिटल  कारोबार का आधार डाटा है। अतएव जब तक डाटा पर कोई स्पष्ट, ठोस और प्रभावी कानून नहीं बनेगा, तब तक विदेशी डिजिटल  कम्पनियों से पूरे टैक्स की वसूली में मुश्किलें आती ही रहेंगी और उनकी आपत्ति भी बढ़ती ही जाएगी।

हम उम्मीद करें कि भारत गूगल टैक्स के लिए अपने पक्ष को अमरीका के व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय और विश्व व्यापार संगठन सहित विभिन्न वैश्विक संगठनों के समक्ष सम्पूर्ण इच्छाशक्ति और न्यायसंगत के साथ दृढ़तापूर्वक प्रस्तुत करेगा। 

- डॉ. जयंतीलाल भंडारी

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख (ब्लाग) में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इसमें सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इसमें दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार पंजाब केसरी समूह के नहीं हैं, तथा पंजाब केसरी समूह उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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