'बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस' के मौके पर गैरसरकारी संस्था 'एजवेल फाउंडेशन' की सामने आई यह अध्ययन रिपोर्ट कि देश के अधिकांश घरों में बुजुर्गों से दुर्व्यवहार होता है, चिंता में डालने वाली है। इस अध्ययन में संस्था ने पाया कि 65 प्रतिशत वृद्ध गरीब हैं और उनकी आय का कोई ज्ञात स्रोत नहीं है।
जबकि 35 प्रतिशत के पास धन या संपत्ति, बचत, निवेश, पैतृक धन या लायक बच्चे हैं, लेकिन आर्थिक स्थिति चाहे जैसी हो, ज्यादातर बुजुर्गों के साथ किसी न किसी तरह का दुर्व्यवहार किया जाता है।
खत्म हो रहे मानवीय मूल्यों का बहुत बडा हाथ
विडंबना यह है कि इस दुर्व्यवहार के खिलाफ अधिकांश बुजुर्ग कोई शिकायत भी नहीं दर्ज करा पाते, क्योंकि दुर्व्यवहार करने वाले लोग प्राय: घर के ही होते हैं और शिकायत करने के बाद उन्हें अपने बच्चों का भावनात्मक आधार खो देने का भय रहता है। निश्चित रूप से इस समस्या के पीछे खत्म हो रहे मानवीय मूल्यों का बहुत बडा हाथ है। आज पैसा ही दुनिया में सबकुछ होता जा रहा है और जो पैसा कमाने में असर्मथ हो जाता है, उसके बारे में आमतौर पर मान लिया जाता है कि वह किसी काम का नहीं है।
बदलते दौर के साथ लोग अपने आप में ही सिमटने लगे
पुराने जमाने में बुजुर्गों का होना घर का सौभाग्य माना जाता था और कठिन मौकों पर घरवालों को उनके अनुभवों का लाभ मिलता था, लेकिन आज जीवन मूल्य इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि पुरानी पीढी के अनुभव आज की नई पीढी को बहुत काम के नहीं लगते, क्योंकि जीवन में आने वाली चुनौतियों का स्वरूप बदलता जा रहा है।
पुराने जमाने में संयुक्त परिवार की प्रथा का भी बुजुर्गों को बहुत लाभ मिलता था और वे कभी अकेलापन नहीं महसूस करते थे। बदलते दौर के साथ लोग अपने आप में ही सिमटने लगे, एकल परिवार को प्राथमिकता दी जाने लगी और बुजुर्ग अपने ही घरों में बोझ समझे जाने लगे।
बुजुर्ग कभी बेकार नहीं होते
समाज की इस संकुचित होती मानसिकता को बदलने की जरूरत है। इस बारे में लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए कि बुजुर्ग कभी बेकार नहीं होते। उम्र ढलने के साथ शारीरिक रूप से वे भले ही अक्षम होते जाएं लेकिन उनके पास जीवन के अनुभवों का जो खजाना होता है वह बच्चों की अंतहीन जिज्ञासा को काफी हद तक तृप्त कर सकता है, क्योंकि घर के युवा सदस्यों को तो अपने रोजगारपरक काम से ही ज्यादा फुर्सत नहीं मिल पाती।
हमें बुजुर्गों का आदर करना सीखना ही होगा
शायद यही कारण है कि बच्चे और बूढे. बहुत जल्दी घुल-मिल जाते हैं। समाज से मूल्यों के क्षरण को अगर रोकना है तो हमें बुजुर्गों का आदर करना सीखना ही होगा। इसके अलावा बुजुर्गों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करने की दिशा में भी सरकार को कदम उठाना चाहिए, क्योंकि भावनात्मक आधार अगर न मिल पाए तब भी उनके पास जीने का कुछ तो सहारा रहे।
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