कैश संकट से जूझ रहा निजी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण बैंक डगमगा गया है। पापुलर रहा येस बैंक इस समय भंवर में है। उसको बचाने की कोशिश की जा रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने येस बैंक से निकासी की सीमा तय कर दी है। आर.बी.आई. के इस आदेश के बाद अब ग्राहक 50 हजार रुपए से ज्यादा नहीं निकाल सकेंगे। आरबीआई के अनुसार फिलहाल यह रोक 5 मार्च से 3 अप्रैल तक लगी रहेगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने येस बैंक के निदेशक मंडल को भी भंग करते हुए उस पर प्रशासक नियुक्त कर दिया है। आर.बी.आई. ने बैंक के जमाकत्र्ताओं पर निकासी की सीमा सहित इस बैंक के कारोबार पर कई तरह की पाबंदियां भी लगा दी हैं।
सुनते हैं कि सरकार और आर.बी.आई. भी यही विचार कर रहे हैं कि अगर येस बैंक 2 अरब डॉलर नहीं जुटा पाता है तो उनकी क्या रणनीति होनी चाहिए। ऐसे कयास हैं कि अगर येस बैंक की 2 अरब डॉलर जुटाने की योजना में देरी होती है तो सरकार और आर.बी.आई. मिलकर येस बैंक को अंतरिम राहत दे सकते हैं। ऐसा हो सकता है कि सरकार और आर.बी.आई. अगर येस बैंक के फंड जुटाने के प्लान में दखल देती हैं तो वह इसके एसैट्स सरकारी बैंकों को बेच सकती हैं या फिर बैंक की छोटी सी हिस्सेदारी किसी सरकारी बैंक को बेच सकती हैं।
ऐसा क्या हुआ कि आज दिवालिया होने की कगार पर आ गया यह बैंक येस बैंक पर बैड लोन का बोझ है जिसकी वजह से बैंक फंड नहीं जुटा पा रहा है। प्राइवेट सैक्टर का येस बैंक कुछ साल पहले तक मजबूत था लेकिन ऐसा क्या हुआ कि आज यह दिवालिया होने की कगार पर आ गया है। दरअसल बैंक ने एक के बाद एक ऐसी कई कम्पनियों को लोन दिए जो उसे लोन नहीं चुका पाई हैं। इसकी वजह से बैंक की बैलेंस शीट पर बैड लोन का बोझ बढ़ गया। येस बैंक के जितने लोन डूबे हैं उनमें से ज्यादातर उसने 2008 में दिए थे। उस वक्त इकोनॉमिक क्राइसिस थी। फिलहाल बैंक के लोन बुक का 31,000 करोड़ रुपए से ज्यादा लोन बी.बी. रेटिंग या इससे कम की रेटिंग पर है। इस रेटिंग वाली कम्पनियों की क्वालिटी अच्छी नहीं होती है। यहां तक कि बैंक ने खुद माना है कि उसके लोन बुक का 25,000 करोड़ रुपए का लोन बैड लोन बन सकता है।
येस बैंक के ग्राहकों की लिस्ट में रिटेल से ज्यादा कॉर्पोरेट ग्राहक हैं। येस बैंक ने जिन कम्पनियों को लोन दिया, उनमें से अधिकतर घाटे में हैं। कम्पनियां दिवालिया होने की कगार पर हैं, लिहाजा लोन वापस मिलने की गुंजाइश कम है । जब ये कम्पनियां डूबने लगीं तो इस बैंक की हालत भी पतली होने लगी। हो सकता है कि बैंक की खराब हालत देखते हुए आर.बी.आई. और सरकार इसे बेलआऊट कर सकते हैं क्योंकि अगर यह बैंक संकट से नहीं उभर पाया तो हमारी इकोनॉमिक ग्रोथ पर असर पड़ेगा जो पहले से ही मुश्किल दौर में है।
इस बैंक के एक नए सी.ई.ओ. ने अच्छी शुरूआत की थी। एसैट क्वालिटी को लेकर वह पारदर्शी थे। पिछले कुछ महीनों से बैंक ने रियल एस्टेट कम्पनियों और एन.बी.एफ.सी. कम्पनियों को लोन देना बंद कर दिया हैे लेकिन इससे बैलेंस शीट पर कुछ खास असर नहीं हो पाया है। बैंक के पास कैपिटल बेस कम है। लिहाजा वह फंड जुटाने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिल पाई।
आॢथक संकट प्राइवेट बैंकिंग सैक्टर में ऐसे नए बैंक के साथ पहली बार देखने को मिल रहा येस बैंक जैसा आॢथक संकट प्राइवेट बैंकिंग सैक्टर में ऐसे नए बैंक के साथ पहली बार देखने को मिल रहा है। पहले ही पंजाब नैशनल बैंक (पी.एन.बी.) और पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑप्रेटिव बैंक (पी.एम.सी.)को लेकर आलोचना झेल रहे रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आर.बी.आई.)के सामने अब इस बैंक की समस्या खड़ी है। येस बैंक की तरह ही आर.बी.आई. भी कई महीनों से किसी इन्वैस्टर का इंतजार कर रही थी, लेकिन बचाव के लिए किसी इन्वैस्टर के सामने न आने पर उसे आखिरकार बैंक पर कई प्रतिबंध लगाने और मैनेजमैंट टेकओवर करने का कदम उठाना पड़ा है।
आर.बी.आई. ने 14 मई, 2019 के प्रभाव से अपने प्रतिनिधि को बोर्ड में नियुक्त कराया था। इसके पहले बैंक ने वित्त वर्ष 19 की चौथी तिमाही में 1,507 करोड़ का घाटा दर्ज किया था। उस दौरान कुछ रेटिंग एजैंसीज ने भी उसकी लांग-टर्म रेटिंग्स घटा दी थीं। आर.बी.आई. ने इस आधार पर एक्शन लिया था कि राणा कपूर के अंडर में बैंक में कॉर्पोरेट गवर्नैंस को लेकर समस्याएं चल रही हैं और इसकी फाइनैंशियल स्थिति खराब हो रही है। लेकिन एक बड़़ा सवाल यह है कि बोर्ड में अपना नॉमिनी होते हुए भी आर.बी.आई. ने बैंक के अंदर चल रही गड़बडिय़ों पर जल्दी एक्शन क्यों नहीं लिया? अगर सैंट्रल बैंक ने स्थिति को संभालने के लिए पहले एक्शन उठाया होता तो बैंक के पास फंड की कमी जैसी समस्या नहीं होती और इसको बचाना भी उतना मुश्किल नहीं होता।
हालांकि कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि येस बैंक को उम्मीद है कि 14 मार्च तक वह फंड जुटा लेगा। यह भी संभावना है कि अगर डैडलाइन खत्म होने से बैंक फंड का इंतजाम नहीं कर पाता है तो किसी बड़े सरकारी बैंक को येस बैंक की अस्थायी तौर पर मदद करने के लिए कहा जा सकता है। अगर यह होता है तो कोई सरकारी बैंक येस बैंक की मदद करने के बदले उसकी सम्पत्ति ले सकता है। इस समय येस बैंक के लिए बेलआऊट अहम उपाय हो जाता है क्योंकि अभी भी बैंक फंड नहीं जुटा पाया है।
दूसरा बड़ा कारण इस बैंक के प्रोमोटर और कत्र्ता-धत्र्ता लोगों की आपसी पारिवारिक कलह है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्ष 2004 में राणा कपूर ने अपने रिश्तेदार अशोक कपूर के साथ मिलकर इस बैंक की शुरूआत की थी। 26/11 के मुंबई हमले में अशोक कपूर की मौत हो गई, उसके बाद अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और राणा कपूर के बीच बैंक के मालिकाना हक को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। मधु अपनी बेटी के लिए बोर्ड में जगह चाहती थीं। यूं स्थापना के करीब 4 साल बाद ही परिवार की कलह बैंक पर हावी रहने लगी और परिवार की लड़ाई इस बैंक को मुर्झाने तक ले आ गई है। इतिहास गवाह है कि अपने मुल्क में पारिवारिक मतभेदों के कारण कई कारोबारी गुलशन-ए-खिजां में तबदील हो गए जिसका देश और समाज को नुक्सान हुआ।
कुल मिला कर इस बैंक का संकट जो कि मुख्यत: वित्तीय अनुशासन के बिगडऩे से हुआ है इसका देश के दूसरे बैंकों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु यह हमारी पूरी बैंकिंग इंडस्ट्री को चेताने वाला है। जरूरत है हमारे सभी बैंक सख्त वित्तीय अनुशासन के साथ इस तरह से काम करें कि बैंक के ग्राहक का विश्वास अधिक मजबूत हो, टूटे नहीं।
-डा. वरिन्द्र भाटिया
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