दिल्ली (Delhi) की सीमाओं पर पिछले 3 महीनों से चल रहे किसान आंदोलन ने देश तथा विदेशी लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। पंजाब से शुरू हुआ यह आंदोलन हरियाणा (Haryana), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), राजस्थान (Rajasthan), उत्तराखंड (Uttarakhand) के बाद पूरे देश में फैल रहा है। यह आंदोलन मोदी सरकार की ओर से कृषि से संबंधित बनाए गए 3 कानूनों को रद्द करने, बिजली संशोधित बिल 2020 को वापस लेने तथा कृषि उपज की कम से कम कीमत को कानूनी जामा पहनाने के लिए शुरू किया गया। इस आंदोलन में 250 से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है। सरकार तथा किसान नेताओं के बीच 12 दौर की बातचीत के दौरान इस आंदोलन की मांगों का निपटारा नहीं हो सका।
मोदी सरकार की ओर से अगली बातचीत के बारे में सिर्फ बयानबाजी और दिलासे के सिवाय न तो कोई ठोस तारीख तय की जा रही है न ही कोई नया समाधान पेश किया जा रहा है। दोनों के बीच ठकराव तथा खटास बढऩे के आसार बनते जा रहे हैं। यह आंदोलन पूर्णरूप में शांतिपूर्ण तथा अनुशासित ढंग से चल रहा है।
‘नानाजी देशमुख कार्यों से एक रत्न थे’
संयुक्त किसान मोर्चा के निमंत्रण पर 26 जनवरी को लाखों किसानों की ओर से दिल्ली की सड़कों पर ट्रैक्टर परेड के दौरान कुछ शरारती लोगों की ओर से पुलिस तथा सरकार की मिलीभगत से गैर-कानूनी ङ्क्षहसक कार्रवाइयां की गईं जिसका बहाना बनाकर ‘गोदी मीडिया’ तथा सरकार ने समस्त आंदोलन को बदनाम करने का प्रयत्न किया। इन शरारती तत्वों का नेतृत्व कौन कर रहा है और उस दिन दिल्ली में लाल किले में हुई अफसोसजनक घटनाओं के लिए कौन जिम्मेदार है इसकी उच्चस्तरीय जांच किसी निष्पक्ष एजैंसी द्वारा करवाई जानी चाहिए।
क्या ट्विटर की जगह ले पाएगा भारत का ‘कू’
यह आंदोलन धर्म निरपेक्ष, लोकतंत्र तथा देशभक्ति की रिवायतों के अनुसार चलाया जा रहा है। एक-दूसरे की सहायता करना तथा अपने हक के लिए किसी भी कुर्बानी देने की परम्परा इस आंदोलन में स्पष्ट नजर आ रही है। सभी धर्मों, जातियों तथा राजनीतिक विचारों के लोग बिना किसी भेदभाव के इसमें शामिल हुए हैं। खालिस्तान समर्थक मुट्ठी भर लोग किसी न किसी बहाने इस आंदोलन को अपने निजी हितों के लिए इस्तेमाल करने के मौके तलाश रहे हैं। इसी तरह आर.एस.एस. तथा सरकारी एजैंसियों के लोग छिपे ढंग से अपने षड्यंत्रों के माध्यम से आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठनों के नेताओं के बारे में भ्रामक तथ्य फैलाने के प्रयास में है।
‘देश की मजबूती केवल सैन्य तथा हथियारों की ताकत पर ही नहीं’
खालिस्तानी तथा अन्य साम्प्रदायिक तत्वों के बारे में सरकार के पास पूरी जानकारी है। टेढ़े-मेढ़े तरीके से उनकी कार्रवाइयों को रोकने की बजाय उनकी पीठ थपथपाई जा रही है ताकि किसान आंदोलन को लोगों की नजरों में बदनाम किया जा सके। सरकार को यह बहुत ही महंगा सौदा साबित होगा। पंजाब के खालिस्तानी आतंकवाद के काले दौर में ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम देने के भयानक नतीजे पूरा देश पहले से ही भुगत चुका है। उसका दर्द अभी तक महसूस किया जा रहा है।
‘उत्तराखंड आपदा से मिलते चेतावनी के संकेत’
लोकतंत्र में सरकार की किसी नीति का विरोध तथा लोगों की मांगों की प्राप्ति के लिए आंदोलन करना सबका संवैधानिक अधिकार है। यह अधिकार ही किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था की खूबसूरती भी है। केन्द्र सरकार को देश की संवैधानिक मर्यादाओं तथा लोकतांत्रिक अधिकारों की कद्र करते किसी जुल्म करने के रास्ते को अपनाने की जगह शीघ्र ही संघर्षशील किसान नेताओं से फिर से बातचीत शुरू करनी चाहिए ताकि इस मुद्दे का हल ढूंढा जा सके।
आंदोलन के लम्बे खींचे जाने से नई मुश्किलें खड़े होने की सम्भावनाएं स्पष्ट नजर आ रही हैं। क्या मोदी सरकार समय की नब्ज को पहचानते हुए किसान आंदोलन के प्रति अपनाए गए हठधर्मी वाले तथा अडिय़ल रवैया को त्याग कर बातचीत के द्वारा मामले के समाधान हेतु पहलकदमी करेगी? इस सवाल के जवाब का इंतजार लोग उत्सुकता से कर रहे हैं।
-मंगत राम पासला
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