कोविड (Covid19) ने देश पर प्रहार किया है लेकिन हमारी प्रतिक्रियाएं पर्याप्त रूप से दूर हैं। वास्तव में यह उन लोगों के लिए ज्यादा बुरी हैं जिनको इसने एक वर्ष पूर्व पहली बार प्रभावित किया था। जबकि लोग दूसरी लहर को हल्के में ले रहे हैं। उन्हें अपने ढीले रवैये के लिए दोष स्वीकार करना चाहिए क्योंकि उन्होंने निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया। सरकार को भी वर्तमान संकट के खराब प्रबंधन के लिए जिम्मेदारी लेनी चाहिए। वर्तमान स्थिति का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू नेताओं द्वारा खुद ही स्थापित की गई बुरी उदाहरण है। आम लोगों को परामर्श देते हुए उन्होंने खुद ही नियमों की धज्जियां उड़ा डालीं। उनके रवैये के कारण आम लोग भी ढीले ढंग से लोगों को सलाह देने लग पड़े हैं।
चार राज्यों में विशेषकर पश्चिम बंगाल में वर्तमान चुनावी मुहिम के दौरान राजनीतिक नेताओं ने अपनी सत्ता हासिल करने के लिए एक गैर-जिम्मेदाराना ढंग अपनाया। इसका मतलब है कि अधिकतर लोग कोविड से पीड़ित हो रहे हैं या महामारी के कारण अपना जीवन खो रहे हैं। हम अभी भी नहीं जानते कि राजनीतिक रैलियों ने वायरस को फैलाने में कितनी मदद की।
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कुछ प्रारंभिक रिपोर्टों में संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में कई गुणा वृद्धि का संकेत मिला है लेकिन नेताओं द्वारा आयोजित राजनीतिक रैलियों में भीड़ सभी को देखने के लिए उमड़ती है। नि:संदेह यह केवल भाजपा नहीं है जो पश्चिम बंगाल में एक बड़े चुनावी माहौल के लिए जिम्मेदार है बल्कि उसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी तृणमूल कांग्रेस ने भी कुछ बेहतर नहीं किया। कांग्रेस तथा वामदल राज्य में अब किसी गिनती में ही नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में चुनावों ने राजनीतिज्ञों का बुरा हाल कर दिया है। अन्य राज्यों के लिए भी यही सत्य है जहां चुनाव हो रहे हैं।
यदि प्रधानमंत्री सहित देश के नेताओं के लोगों के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को हतोत्साहित करने के लिए कुछ नहीं किया तो अन्य नेताओं से कुछ भी बेहतर होने की उम्मीद करना मुश्किल है। ‘दो गज की दूरी है जरूरी’ और ‘मास्क पहनना जरूरी’ जैसे नेताओं के नारों को लोगों ने कुछ भी नहीं समझा, जब लोगों ने उनको और उनकी टीम को चुनावों के लिए रैलियां करने के दौरान देखा। जैसे कि यह काफी नहीं था सरकार ने हरिद्वार में महाकुंभ के संचालन में बहुत गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार किया। इसमें लाखों भक्तों ने भाग लिया जिन्होंने किसी भी प्रकार की कोई सावधानी नहीं बरती। यदि कुंभ को टाला नहीं जा सकता था तो बेहतर आयोजन तो किया जा सकता है। पिछले वर्ष जब तब्लीगी जमात को वायरस का सुपर ‘स्प्रैडर’ कहा गया था तो सरकार और मीडिया इस जमात की निंदा करने के लिए बाहर आ गए थे। अब इस पर कोई भी एक शब्द भी नहीं बोल रहा।
जहां संवाद न हो-वहां विवाद ही रहता है
भले ही इसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता था लेकिन बेहतर व्यवस्थाओं से बहुत फर्क पड़ता है। लेकिन मैंने पहले भी कहा था कि यह खुद लोग हैं जिन्हें वर्तमान बुरी हालत के लिए जिम्मेदारी लेनी चाहिए। कुछ लोग तो वर्तमान स्थिति को बड़े हल्के अंदाज में ले रहे हैं। उनका मानना है कि बुरा दौर खत्म हो चुका है और अब डरने की कोई आवश्यकता नहीं। प्रतिबंधों की लम्बी अवधि के कारण थकान होने के बारे में समझ तो होती है लेकिन खुद को जोखिम में डालना और बुजुर्गों को भी एक बड़े जोखिम में शामिल करना अधिक असंवेदनशील कार्य था। कोविड की दूसरी लहर के मामले में जबकि महाराष्ट्र देश में सबसे ऊपर है, पंजाब में स्थिति और भी बदतर है। राज्य सरकार जिम्मेदारी से हाथ नहीं धो सकती। यहां तक कि मास्क पहनने की मूल जरूरत से भी लोग बेखबर है। इस मामले में पुलिस भी बहुत कम कार्रवाई कर रही है।
धार्मिक समारोह और राजनीतिक रैलियों के अलावा दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन के दौरान भी लोग सभी दिशा-निर्देशों को हवा में उड़ा रहे हैं। अभी तक करीब 135 करोड़ लोगों में से करीब 10 करोड़ नागरिकों ने ही टीकाकरण में भाग लिया है। पूरी जनसंख्या के लिए टीकाकरण करना या भीड़ की प्रतिरक्षा विकसित करने में डेढ़ साल लगेगा। लोगों को अपने और अपनों से बड़ों के प्रति अधिक जिम्मेदारी से काम करने की जरूरत है। साथ ही सरकार को दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ भारी कार्रवाई करनी चाहिए।
-विपिन पब्बी
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