अमरीका (America) में अविश्वसनीय चीजें हो रही हैं। राष्ट्रपति का पद खाली करने से ट्रम्प अनसुना कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) वह कर रहे हैं जो किसी अमरीकी राष्ट्रपति ने अतीत में नहीं किया। वास्तव में लोकतंत्र में किसी भी सरकारी प्रमुख ने ट्रम्प की तरह नहीं किया। नतीजा केवल अमरीकी लोकतंत्र का चरमराना नहीं बल्कि वहां पर एक समूह द्वारा दूसरे के खिलाफ शारीरिक हमले किए जा रहे हैं। बराक ओबामा ने इसे सही बताया जब उन्होंने कहा था कि अमरीकी कैपिटोल हिल में हिंसा ने देश को शर्मसार किया है।
अमरीका में जो घट रहा है (अमरीका के सभी स्थानों में उसे लोकतंत्र का एक माडल माना जाता है) उसे लेकर 2014 में भारत में जो हुआ उसके बारे में सोचें। उस वर्ष अप्रैल-मई में आम चुनाव हुए। भाजपा के नेतृत्व ने व्यापक जीत हासिल की। उसने 336 सीटें प्राप्त कीं। हालांकि भाजपा ने केवल 31 प्रतिशत वोट हासिल किए। अन्य दल उस तथ्य को भाजपा को बाहर करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल कर सकते थे। लेकिन जब भाजपा गठबंधन ने सरकार बनाई तो किसी ने विरोध नहीं किया।
कोरोना महामारी के बीच ‘बर्ड फ्लू’ का कहर
अमरीका में जो हुआ वह भारत में जो हुआ उसके विपरीत था। ट्रम्प के हजारों समर्थकों ने दंगे शुरू कर दिए और अमरीकी कांग्रेस के एक संयुक्त सत्र को बाधित कर दिया। वाशिंगटन डी.सी. में सामान्य तबाही मचाई गई। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि ‘‘आज कैपिटोल में हुई हिंसा को इतिहास याद रखेगा। इसे राष्ट्रपति द्वारा उकसाया गया जो निरंतर ही एक वैध चुनाव के नतीजे को झूठ बोल कर उसे गलत बताने की कोशिश कर रहे हैं। यह हमारे राष्ट्र के लिए महान अपमान और शर्म की बात है।’’ उन्होंने आगे कहा कि, ‘‘अगर हिंसा को हम आश्चर्य के रूप में मानते हैं तो हम खुद का उपहास उड़ा रहे हैं।’’
ट्रम्प समर्थकों ने स्पष्ट इरादे के साथ कैपिटोल इमारत पर हमला किया। उन्होंने चुनावी गिनती को बाधित किया। विजेता को औपचारिक रूप से घोषित करने के लिए गिनती को औपचारिक रूप से पूरा किया जाना था। ट्रम्प समर्थक दंगाई इस हमले के लिए पूरी तरह से तैयार थे। वाशिंगटन डी.सी. का पूरा शहर अराजकता में था। ङ्क्षहसा में 4 व्यक्ति मारे गए तथा मेयर को कफ्र्यू लागू करना पड़ा। जो बाइडेन को अंतत: विजेता घोषित किया गया और उनका शपथ ग्रहण समारोह 20 जनवरी को होना तय है। क्या अमरीकी राजधानी एक राष्ट्रपति द्वारा अपने मतदाताओं के खिलाफ विद्रोह करने के कारण अधिक हिंसा देख पाएगी?
अर्थव्यवस्था सुस्त होने के कारण रोजगार की संभावनाएं कम
पूर्व में कोई भी अमरीकी राष्ट्रपति इतना स्वार्थी नहीं था और न ही उसने मतदाताओं के बचाव में काम किया था। यहां तक कि जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने कहा कि,‘‘यह एक बीमार और दिल तोडऩे वाली दृष्टि थी। कैसे चुनावी नतीजे विवादित बन गए। ऐसा हमारे लोकतांत्रिक गणराज्य में नहीं है।’’एक अन्य पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बिल किं्लटन जो अधिक ईमानदार थे, ने ट्रम्प की स्व:केन्द्रित राजनीति को ध्यान में रखते हुए कहा कि कैपिटोल पर हमले को 4 साल की ‘जहर वाली राजनीति’ द्वारा भड़काया गया था। ट्रम्प ब्रांड वाले नेतृत्व के संदर्भ में यह आरोप लगाया गया था कि यह राष्ट्रपति अमरीकियों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना चाहता है। हिलेरी क्लिंटन ने ट्रम्प तथा उनके सहयोगियों को ‘घरेलू आतंकवादी’ तक कह दिया।
अमरीका में इस तरह की हिंसा एक अभूतपूर्व थी। दुनिया के सभी कोनों में इस घटना से आघात पहुंचा। भारतीय जनमत इतना मजबूत था कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया का तोड़-फोड़ न केवल गैर-कानूनी था बल्कि खतरनाक भी था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतत: उस व्यक्ति से दूरी बनाई जिसको उन्होंने गर्व से हाऊडी-मोदी दिनों में एक दोस्त कहा था जब ट्रम्प के अमरीका ने मोदी को मेधावी सेवा के लिए अमरीकी पदक से सम्मानित किया था। अमरीकी हथियारों के खरीददार के तौर पर बेशक भारत अमरीका के लिए महत्ता रखता है। लेकिन यहां जो दिखा वह भारत-अमरीका संबंधों का नहीं बल्कि मोदी ट्रम्प का संबंध था।
‘खेती के असली मुद्दों पर ध्यान क्यों नहीं’
भारत के लिए ट्रम्प को एक क्लाइंट के रूप में देखना एक सामरिक गलती थी। मोदी की उस भूल की कीमत बाइडेन के कार्यकाल के दौरान चुकानी पड़ सकती है। यह आसान न होगा। मोदी एक स्वाभाविक अवतार हैं। उनके लिए इस वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन होगा कि हरेक को गले लगाना पसंद नहीं है। 2019 में चीन के वुहान में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मोदी का स्वागत हाथ मिलाकर किया।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हाथ मिलाना और गले लगाना राजनीति में नतीजे पैदा करते हैं? मोदी का हरेक को गले लगाना पूरे विश्व भर में उनके शोमैनशिप के तौर पर देखा जाता है। उन्होंने भारत के लिए कोई दोस्त नहीं जीता यहां तक कि पड़ोस में भी नहीं। भारत को सत्ता में व्यक्तियों की पहचान से परे बढऩे की जरूरत है। महान अमरीका के लिए एक मौजूदा राष्ट्रपति के पागलपन से ऊपर उठने की आवश्यकता है।
-टी.जे.एस. जॉर्ज
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