पूर्वी लद्दाख में करीब एक महीने से सीमा पर जारी गतिरोध के समाधान के लिए भारत और चीन के बीच शनिवार को लैफ्टिनैंट जनरल स्तरीय बातचीत हुई। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के जनरल आफिसर कमांडिंग हरिंद्र सिंह ने किया जबकि चीनी पक्ष का नेतृत्व तिब्बत सैन्य जिला कमांडर ने किया। इस बैठक में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि सीमा पर अप्रैल-2020 वाली स्थिति बहाल होनी चाहिए। भारत की ओर से यह कहा गया है कि हम अपनी सीमा के अंदर कोई भी निर्माण कार्य कर सकते हैं। हालांकि दोनों देशों ने शांतिपूर्ण ढंग से इस गतिरोध का हल निकालने की कोशिश पर जोर दिया।
भारत क्या चाहता है? लद्दाख में एक जोन ऐसा था जिसमें दोनों पक्ष मई तक गश्त कर रहे थे वे एक क्षेत्र से सैन्य समूह भेजते थे जिन्हें ङ्क्षफगर 4 कहा जाता था जो भारतीय बेस के पास था। ङ्क्षफगर 8 नामक एक अन्य क्षेत्र चीनी बेस के पास था। यह गश्त बिना हथियारों के हो रही थी और इनमें से 90 प्रतिशत मामलों में कोई झड़प या कोई टकराव नहीं होता था। उनमें 10 प्रतिशत मामले में ही कुछ धक्का-मुक्की हुई थी परंतु शायद इतना कुछ गंभीर न हुआ हो।
जटिल रास्ते पर भी अडिग भारतीय सैनिक भारत की ओर से फिगर 4 की ओर जाने वाली सड़क जटिल है और केवल पैदल ही और अकेले-अकेले ही एक पहाड़ी की यात्रा की जा सकती है। चीनियों का वहां पहुंचना आसान है और उन्होंने अपने वाहनों के लिए वहां सड़कें बना लीं। मुश्किलों के बावजूद भारत निरंतर ङ्क्षफगर 8 पर पहुंच रहा है और वहां गश्त कर रहा है क्योंकि यह हमारी भूमि है और 1962 के युद्ध में अपनी मातृ भूमि की रक्षा में असंख्य सैनिकों ने अपनी जानें गंवाईं।
मई से चीन ने भारतीय गश्त को फिगर 4 क्षेत्र से आगे बढऩे से रोक दिया है जिससे प्रभावी रूप से पूरे क्षेत्र पर चीन का नियंत्रण हो गया है। रिपोर्टों में कहा गया है कि चीनी 5000 से लेकर 10,000 सैनिकों के बीच तीन स्थानों पर चले गए हैं जो अब भारत के लिए सुलभ नहीं है। यही समस्या है और यही कारण है कि जिसकी हम आज बात कर रहे हैं। भारत जो चाहता है और पिछली बातचीत में पाने में विफल रहा है कि चीन हमारी जमीन से दूर नहीं जा रहा है।
6 जून की वार्ता से एक दिन पहले भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन के साथ मुलाकात की और एक बयान दिया जिसमें कहा गया था कि इस मुद्दे को ‘शांतिपूर्वक’ वार्ता से हल कर लिया जाएगा। मतलब कि नरेंद्र मोदी ने अपनी जमीन वापस लेने के लिए लडऩे से इंकार कर दिया है और मानते हैं कि हम इसे बातचीत द्वारा वापस ले सकते हैं। संभवत: वार्ता में चीनी जनरल के साथ भारत की सामान्य दलील शामिल नहीं होगी। भारत को लगता है कि जब चीन लद्दाख में घुसपैठ और कब्जे की बात करता है तो वह विकल्प छोड़ देता है। क्या यह बातचीत से पहले एक समझदारी वाला निर्णय है? वह निर्भर करता है कि विरोधी क्या चाहता है।
यहां समस्या है। हम जानते हैं कि भारत क्या चाहता है लेकिन चीन क्या चाहता है और वह लद्दाख में ऐसी हिमाकत क्यों कर रहा है, इस पर कोई सहमति नहीं है। इसके विशेषज्ञ जो पूर्व सैनिक हैं जो अब मीडिया के लिए विश्लेषक हैं उनके पास कुछ थ्यूरियां भी हैं।
एक यह कि धारा अनुच्छेद-370 हटने के साथ ही लद्दाख के केंद्रीय शासित प्रदेश का गठन, नए नक्शे जारी करना और गृह मंत्री द्वारा संसद में किया गया दावा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन (जो चीन के साथ है) जान की कीमत पर भी वापस ले लिया जाएगा, इससे चीन परेशान था। दूसरी बात यह भी है कि शी जिनपिंग का मानना है कि मोदी वुहान समझौते का उल्लंघन कर रहे हैं जिस पर दोनों ने कुछ साल पहले हस्ताक्षर किए थे। भारत और चीन मित्र और साझीदार होने के लिए सहमत थे और प्रतिद्वंद्वी नहीं थे परंतु भारत की वर्तमान कार्रवाइयों जैसे कि भारतीय कम्पनियों में चीनी निवेश पर विशेष रूप से अंकुश लगाना उस भावना को नहीं दर्शाता। भारत ने नियमित रूप से नौसेना अभ्यास करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ गठबंधन भी किया था। उससे चीन को खतरा हो गया था। तीसरा यह है कि चीन यह सुनिश्चित करना चाहता है कि उत्तर में भारतीय पहुंच को रोक कर अपने बैल्ट एवं रोड एनीशिएटिव पर उसका अधिक नियंत्रण हो जाए। लद्दाख के जिन हिस्सों पर चीन ने कब्जा कर लिया है उस हिस्से तक ले जाएगा यही चीन चाहता है।
चौथी बात यह भी है कि यह शी द्वारा फैलाई जा रही राष्ट्रवादी व्याकुलता भी है क्योंकि कोविड-19 के कारण उनका सत्तावादी शासन कमजोर हो गया है इसलिए चीन हांगकांग और भारत के खिलाफ आक्रामक हो रहा है।
ये कुछ ऐसी बातें हैं जिनको विशेषज्ञों द्वारा आगे रखा गया है। उनके बीच इस सिद्धांत को लेकर कोई सहमति नहीं है कि चीन आखिर ऐसा क्यों कर रहा है। यह सैनिक विशेषज्ञों द्वारा बताए गए कारण हैं जो स्वीकार करते हैं कि उनके पास जो इनपुट है वह उसके अनुसार अटकलें लगा रहे हैं। आमतौर पर सरकार के पक्ष में कुछ लोगों ने कहा है कि लद्दाख में कोई घुसपैठ नहीं है और कोई समस्या नहीं है।
भारत के पास कम हैं विकल्प संक्षेप में चीन जानता है कि हम क्या चाहते हैं लेकिन हम नहीं जानते कि वह क्या चाहते हैं। यह बातचीत के लिए अच्छा शुरूआती ङ्क्षबदू नहीं। भारत एक लोकतंत्र है इसलिए इसके कुछ मायनों में इसके विकल्प कम हैं। सरकार पर मीडिया और विपक्ष द्वारा तत्काल समाधान प्रदान करने का अधिक दबाव है (जिसका अर्थ है चीनी सैनिकों की वापसी) और यदि कुछ ऐसा होता है तो जीत घोषित की जा सकती है।
स्वयं मोदी ने भारत या विपक्षी दलों को विश्वास में नहीं लिया कि क्या हो रहा है और क्या हुआ है? हमें आधिकारिक तौर पर यह नहीं बताया गया है कि ङ्क्षफगर चार से 8 के बीच खोई जमीन के संबंध में स्थिति क्या है। मीडिया जो ऐसे समय में अन्य दलों को दबाव में रखता है वह मोदी को बहुत बल दे रहा है।
चीन रणनीतिक रूप से लम्बा और बड़ा खेल खेल सकता है। इसके नेतृत्व पर मीडिया का कोई दबाव नहीं है और इसके लिए यह इस मौजूदा कब्जे के रूप में इस तरह की चीजों के माध्यम से अपने प्रतिद्वंद्वियों को अस्थिर करके अपने दीर्घकालिक उद्देश्यों का पीछा कर सकता है।
- आकार पटेल
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