नेपाल (Nepal) के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद ओली (K. P. Sharma Oli) की कुर्सी से चिपके रहने की आकांक्षा उस समय धूल धूसरित हो गई जब एक अप्रत्याशित निर्णय के तहत नेपाली सुप्रीमकोर्ट ने देश की संसद को बहाल करने का निर्णय लिया और ओली के संसद को भंग करने के निर्णय को असंवैधानिक बताया जिसने चीन को एक बड़ा झटका तथा भारत को राहत पहुंचाई।
प्रधानमंत्री ओली ने चीन की शह पर भारत के साथ दुश्मनी मोल ली जो खुल कर उन्हें बचाने का प्रयास कर रहा था मगर असफल रहा। सत्ता से चिपके रहने की अति महत्वांकाक्षा के साथ-साथ उन्होंने शीर्ष इकाई कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल (सी.पी.एन.) के साथ भी सीधा झगड़ा मोल ले लिया और संसद को भंग कर दिया जिसने देश को एक उथल-पुथल की स्थिति में पहुंचा दिया। यह एक ऐसे समय में हुआ जब सरकार कोविड-19 संकट से निपटने में असफल रही।
‘कार्य शुरू होने से पहले मोदी नतीजे चाहते हैं’
लोकतंत्र की रक्षक के तौर पर कार्य करते हुए मुख्य न्यायाधीश चोलेन्द्र शमशेर के नेतृत्व वाली सुप्रीमकोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने ओली सरकार के संसद के 275 सदस्यीय निचले सदन को भंग करने के फैसले को खारिज कर दिया जिसका नेपाल के लोगों ने स्वागत किया और इस ऐतिहासिक पल का जश्न मनाने के लिए सड़कों पर निकल आए।
अदालत ने सरकार को अगले 13 दिनों के भीतर सदन का सत्र बुलाने का भी आदेश दिया। सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष के चलते प्रधानमंत्री ओली के कहने पर राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा सदन को भंग करने तथा 30 अप्रैल व 10 मई को ताजा चुनाव करने के फैसले के बाद नेपाल 20 दिसम्बर को एक राजनीतिक संकट में घिर गया था।
‘उत्तराखंड आपदा से मिलते चेतावनी के संकेत’
विरोधी धड़े के नेता पुष्प कुमार दहल ‘प्रचंड’ नीत सांसदों की संसद में संख्या को देखते हुए विशेषज्ञों की राय है कि ओली की पराजय निश्चित है जो गेंद को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के पाले में फैंक देगी जिनके पास एक वैकल्पिक सरकार बनाने के अवसर तलाशने की बाध्यता होगी।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ‘प्रचंड’ एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में उभरेंगे और नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर एक गठबंधन बनाकर नई सरकार का गठन करेंगे। भारत भी उनकी इस व्यवस्था के पक्ष में होगा और चीन समर्थक कठपुतली ओली को जाते देखना पसंद करेगा जिन्होंने पहले ही दोनों देशों के बीच संबंधों को खराब कर दिया है और वह भी चीन की शह पर। नेपाली कांग्रेस के भारत की एक के बाद एक आने वाली सरकारों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं और उसने पहले ही नेपाल में सरकार बनाने के ओली के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
‘चुनाव घोषणा पत्र या मतदाताओं को लॉलीपॉप?’
नेपाल में संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान के आर्टीकल-85 के अनुसार ‘सदन का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होगा यदि इसे संविधान के अनुसार पहले भंग नहीं कर दिया जाता’। संविधान के अंतर्गत आर्टीकल 76 (7) एकमात्र प्रावधान है जो सदन को भंग करने की परिकल्पना करता है। आर्टीकल 76 के अंतर्गत राष्ट्रपति को बहुमत वाली पार्टी के नेता के साथ सरकार बनाने के सभी प्रयास करने थे।
काठमांडू स्थित संवैधानिक विशेषज्ञों, कानूनी विशेषज्ञों, विद्वानों आदि की राय है कि राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने एक वैकल्पिक सरकार बनाने की उपलब्ध संभावना का इस्तेमाल नहीं किया है और सदन को सीधे भंग कर दिया जो गैर-कानूनी है।
‘विचार बंदूक से अधिक खतरनाक’
अतीत में संविधान प्रधानमंत्री को मध्यवर्ती चुनाव करवाने की इजाजत देता था लेकिन बार-बार मध्यवर्ती चुनाव होने के कारण 1990 के बाद, 2015 में एक नया संविधान बनाए जाने की प्रक्रिया के दौरान, राजनीतिक दलों में मध्यवर्ती चुनाव करवाने के प्रधानमंत्री के अधिकार के संबंध में कुछ बदलाव करने पर सहमति बनी।
कमजोर ओली को बचाने के चीन के प्रयास असफल हो गए क्योंकि प्रचंड ने उन्हें पद से हटाने के अपने प्रयास तेज कर दिए थे। उन्होंने 16 पृष्ठों का एक दस्तावेज जारी किया जिसमें प्रशासन में उनकी सभी असफलताओं का जिक्र था, उनके भ्रष्टाचार के घोटालों का विवरण और कैसे उन्होंने पार्टी को नष्ट किया, इसका ब्यौरा था। उनकी मांग थी-ओली का तुरन्त त्यागपत्र।
‘क्या ममता के लिए प्रशांत सिरदर्द हैं या शान’
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सकारात्मक पहल करते हुए दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को सुधारने के लिए अपने विदेश सचिव हर्षवद्र्धन शृंगला, सेना प्रमुख मनोज मुकंद नरवणे तथा भारत की विदेशी खुफिया एजैंसी के प्रमुख सामंत गोयल को नेपाल भेजा। विदेश सचिव ने विभिन्न स्तरों पर बातचीत की तथा नेपाल सरकार ने दोनों देशों के बीच मतभेदों को कम करने के लिए विचारों के आदान-प्रदान पर अपना संतोष प्रकट किया।
मगर विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान तरल राजनीतिक स्थिति के मद्देनजर भारत को प्रतीक्षा करने की जरूरत है क्योंकि प्रधानमंत्री तथा उनके विरोधी प्रचंड के बीच संघर्ष जारी है और देखना है कि वह क्या करवट लेता है।
- के.एस. तोमर
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