Sunday, Oct 01, 2023
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‘संघर्ष में और निखरती रही हैं ममता’

  • Updated on 3/17/2021

जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Elections) को पूरी तरह युद्ध में तबदील कर दिया है। ऐसे में, हर तरह के दांव अपनाने के अलावा ममता बनर्जी के पास कोई चारा नहीं है। जो दो घटनाएं इस चुनाव की दशा-दिशा तय करेंगी, वे हैं-राजनीतिक मंच से ममता बनर्जी का चंडी पाठ करना और पैर पर प्लास्टर चढ़ाए हुए व्हील चेयर पर चुनाव प्रचार करना। ममता पर निजी हमले करने की अति आक्रामक रणनीति पर बीजेपी को पछताना पड़ सकता है। 

ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) को नेता के रूप में ऊपर से नहीं थोपा गया है। वे सड़क से ऊपर उठी हैं, यदि आज वे अपने आप में एक महत्वपूर्ण नेता हैं तो इसकी वजह सड़क पर लडऩे की उनकी ताकत है। मूल रूप से वे कांग्रेस की हैं, जब 1990 के दशक में उन्हें ऐसा लगा कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनकी महत्वाकांक्षाओं को कुचल रहा है, उन्होंने बग़ावत कर दी और अपनी अलग पार्टी बना ली। यह एक बहुत बड़ा फैसला था। 

उन दिनों यह माना जाता था कि जो नेता पार्टी तोड़ कर अलग हो जाता है वह ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता है, शरद पवार जैसे कुछ लोग इसके अपवाद थे। ममता बनर्जी के विद्रोह के पहले कांग्रेस के दो बड़े दिग्गज- अर्जुन सिंह और एन. डी. तिवारी ने नरसिम्हा राव के नेतृत्व के खिलाफ झंडा बुलंद किया था, अलग पार्टी बनाई थी और चुनाव इस उम्मीद में लड़ा था कि लोग उनकी पार्टी को ही असली कांग्रेस मान लेंगे। यह प्रयोग ज्यादा दिन नहीं चल सका और दोनों नेताओं को मूल संगठन में लौटना पड़ा। 

हिन्दूवादी ममता ‘बैकफुट’ पर, चोटिल ममता ‘फ्रंटफुट’ पर


लेकिन ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोडऩे के बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वे बुरे दिन से गुजरीं, पर प्रणब मुखर्जी की तरह कांग्रेस में लौट जाने का विचार उनके मन में कभी नहीं आया। सोनिया गांधी के साथ मधुर संबंध होने के बावजूद उन्होंने उनके सामने आत्मसमर्पण करने की बजाय बीजेपी से हाथ मिलाना बेहतर समझा। अंत में उनकी मेहनत रंग लाई, 2011 में वे चुनाव जीत गईं, पश्चिम बंगाल में सी.पी.आई.एम. की अगुवार्ई वाले वाम मोर्चा को हराया और सरकार बनाने में कामयाब रहीं। 

पश्चिम बंगाल में किसी समय वाम मोर्चा को अपराजेय समझा जाता था। ममता बनर्जी ने वह कर दिखाया जो उस समय कोई सोच भी नहीं सकता था। एक बार वाम मोर्चा के गुंडों ने उन पर जानलेवा हमला किया। पर इससे वे रुकी नहीं। कोई दूसरा राजनेता नाउम्मीद हो जाता, पर ममता नहीं हुईं और नंदीग्राम व सिंगूर ने उनकी कामयाबी का रास्ता खोल दिया। 
यदि बीजेपी ने यह सोचा है कि लगातार व क्रूर हमलों से ममता बनर्जी को डराया जा सकता है तो यह कहना उचित होगा कि उसने होमवर्क ठीक से नहीं किया है। वे ऐसी नेता हैं जो विपरीत समय में बेहतर प्रदर्शन करती हैं और संघर्ष का आनंद उठाती हैं। 

अब एक और ‘इंदिरा गांधी’ ढूंढे कांग्रेस

पश्चिम बंगाल में नि:संदेह बीजेपी बहुत तेजी से आगे बढ़ी है। उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में 16 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन पांच साल में उसके वोट शेयर में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई और उसे तृणमूल कांग्रेस की 24 सीटों के मुकाबले में 18 सीटें मिलीं। ये डराने वाले आंकड़े हैं। और सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बीजेपी की स्थिति में और सुधार होगा। 

लेकिन इस कहानी में एक मोड़ है। बीजेपी की आशातीत सफलता के बावजूद ममता के सामाजिक आधार में वो सेंध नहीं लगा पाई। वाम मोर्चा को 2011 के चुनाव में हराने के बाद से अब तक तृणमूल कांग्रेस को लगातार 42 प्रतिशत से 45 प्रतिशत वोट मिलते रहे हैं। बीजेपी को फायदा कांग्रेस और वाम मोर्चा की कीमत पर हुआ है। ममता बनर्जी ने कांग्रेस को तोडऩे के बाद उसका सामाजिक आधार भी उससे छीन लिया। कांग्रेस के ज्यादातर मतदाता तृणमूल में आ गए। और जब ‘मोहभंग हुए’ वाम समर्थक वोटरों ने तृणमूल का हाथ थामा, ममता बनर्जी ने वाम मोर्चा को ध्वस्त कर दिया। अब वाम मोर्चा और कांग्रेस साथ-साथ हैं, पर उनसे न तो ममता बनर्जी, न ही बीजेपी को कोई ख़तरा है। 

‘सरकार का हर विरोध देशद्रोही कारनामा करार दिया जाता है’

इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी-आर.एस.एस. ने हिन्दू वोटों के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाने में कामयाबी हासिल कर ली है। पर उत्तर भारत के कुछ राज्यों को छोड़ कर कुल पड़े वोटों में इन वोटों का हिस्सा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होता है। इसमें भी मोदी एक अहम कारक हैं। विधानसभा चुनावों में जहां मोदी उम्मीदवार नहीं होते हैं, बीजेपी के वोट शेयर में 8 से 24 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जाती है। साल 2017 से अब तक हुए 12 राज्यों के विधानसभा चुनाव और आम चुनाव के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। इसी तरह बीजेपी को बिहार में 17 प्रतिशत, दिल्ली में 18 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 8 प्रतिशत और हरियाणा में 22 प्रतिशत वोटों का नुक्सान हुआ। 

बीजेपी के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहरा पाना मुश्किल होगा, इसके अलावा उसे 4 से 5 प्रतिशत वोटों का अतिरिक्त नुक्सान भी हो सकता है। 2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिले वोट 2014 के लोकसभा के वोटों से 6 प्रतिशत कम थे। इस परिप्रेक्ष्य में खुद को हिन्दू नेता के रूप में स्थापित करने की ममता बनर्जी की कोशिशों से बीजेपी की दिक्क़तें बढ़ेंगी। और ऐसे में यदि प्लास्टर चढ़े पैर की वजह से ममता को सहानुभूति के वोट मिले तो बीजेपी की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। 

- आशुतोष

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख (ब्लाग) में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इसमें सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इसमें दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार पंजाब केसरी समूह के नहीं हैं, तथा पंजाब केसरी समूह उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

 

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