हाल ही में कोरोना (Coronavirus) पर बोलते हुए हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। लगभग साढ़े तीन मिनट के इस वीडियो में सुरेन्द्र शर्मा जी ने जो बातें कही हैं वे पूरी तरह सत्य हैं। शर्मा जी कहते हैं कि 76 वर्ष की अपनी आयु में उन्होंने देश पर ऐसी विपदा कभी नहीं देखी जिसके चलते आदमी से आदमी दूर हो जाए।
नि:संदेह आज ऐसा हो ही रहा है। कोरोना का खौफ हमारे दिलो-दिमाग में इस कदर भर गया है कि हम एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं? हमें कोरोना से बचने को सोशल डिस्टैंसिंग के लिए कहा गया है। यानी एक-दूसरे से दूरी रखने के लिए किंतु ऐसा लगने लगा है कि हम तन की दूरी के साथ-साथ मन की दूरी का भी पालन करने लगे हैं।
यह समय ‘अहम दिखाने’ और ‘राजनीति खेलने का नहीं’
इतना खौफ हमारे दिमाग में भरने के लिए सुरेन्द्र शर्मा जी टैलीविजन पर प्रसारित हो रही खबरों को बताते हैं। टी.वी. पर हर छोटी-बड़ी खबर को सनसनीखेज तरीके से पेश किया जाता है। देश की जनता न्यूज चैनलों पर भरोसा करती है। विशेषकर ग्रामीण भारत में न्यूज चैनलों की हर झूठी-सच्ची बातों को लोग गंभीरता से लेते हैं।
दुर्भाग्य से न्यूज चैनल उनका भावनात्मक शोषण करते हैं। शायद ऐसा वह अपने-अपने चैनलों की लोकप्रियता बढ़ाने को करते होंगे। जितना ज्यादा लोग उन्हें देख-सुनेंगे, उतने हिसाब से उन्हें विज्ञापन मिलेंगे, आखिर उनकी कमाई का दूसरा रास्ता भी तो नहीं। मेरा मानना है कि न्यूज चैनल लोगों में डर खौफ पैदा करने वाली चीजों से परहेज करें।
देश के लिए ‘युद्ध काल’ है यह संकट काल
आज गांवों में असुरक्षा और भय का माहौल इस कदर बना है कि गांव में अजनबियों को घुसने भी नहीं दिया जा रहा। कल ही अखबार में एक छोटी-सी खबर पढ़ी कि बागपत जिले के एक गांव में आई बिजली विभाग की टीम को ग्रामीणों ने दौड़ा दिया।
भारत में ज्यादातर गांवों में हालात यह हैं कि ग्रामीण अपनी कोरोना जांच को भी राजी नहीं होते इसलिए नहीं कि उन्हें कोरोना से डर है बल्कि इसलिए कि अगर पता चल गया कि उन्हें कोरोना है तो जैसा कि वह टी.वी. पर देखते हैं कि अस्पतालों में बैड नहीं, दवा नहीं, डाक्टर नहीं तो उनका क्या होगा? तो सोचते हैं कि इससे अच्छा तो यही है कि उन्हें पता ही न चले कि उनमें से किसी को कोरोना है।
शांति, सहअस्तित्व एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता : बुद्ध दर्शन
ग्रामीण यह भी कहते हैं कि अस्पतालों में दुर्दशा के कारण वह न मरें, अपने घर में ही ठीक है जो होगा देखा जाएगा। हालात ऐसे हैं कि न तो सरकार को दोष दिया जा सकता है और न ही स्वयं को। अदालतें सरकारों को आदेश पर आदेश दे रही हैं। सत्ताधीश बहरे नहीं हैं और वे अंधे भी नहीं कि उन्हें पता ही न हो क्या हो रहा है? यह अलग बात है कि कहीं कान पर जूं रेंग रही है और कहीं नहीं।
अपने वीडियो में सुरेन्द्र जी कहते हैं कि कोरोना 2 करोड़ लोगों को हुआ किंतु डर और भय के इस वातावरण में कोरोना 135 करोड़ लोगों के दिमाग में बुरी तरह से घुस गया है। लोगों के दिमाग से इसका खौफ दूर करने के लिए सरकार को कदम उठाने थे। किंतु सरकार के लोग विपक्ष पर हमला करने में मस्त हैं।
तीसरी लहर से इस तरह ही बच सकते हैं
उन्हें इस कठिन समय में भी प्रधानमंत्री की छवि की चिंता है। वह विपक्ष को इसके लिए दोष दे रहे हैं। विपक्ष अगर सरकार से सवाल करे या सुझाव भी दे तो उल्टे उनसे सवाल किया जाने लगता है कि आपने 70 वर्षों में क्या किया? जनता इस तमाशे को देख रही है। लोगों का काम-धंधा ठप्प है। उन्हें अपने रोजमर्रा के खर्चों से जूझना पड़ रहा है।
पैट्रोल-डीजल और खाने-पीने की चीजें लोग अत्यधिक महंगा खरीद रहे हैं। इस हालत में जब कुछ लोग अपनी जमा पूंजी तो कुछ लोग एक-दूसरे से उधार लेकर अपना काम चला रहे हैं। आम आदमी यही सोचता है कि इतना महंगा सब कुछ वह खरीद कर सरकार को टैक्स भी अदा करे और वक्त पडऩे पर उसे अस्पताल में एक बैड भी न मिले।
उनका ढंग से इलाज भी न हो, मैं समझता हूं कि हमारी सरकारें सोचें न सोचें! लेकिन हमें सामाजिक दूरी का पालन तन की दूरी से करना है। मन की दूरी से नहीं क्योंकि एक-दूसरे के सुख-दुख में हमने ही एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखा है। किसी सरकार ने नहीं।
- वकील अहमद
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