नेपाल के प्रधानमंत्री खडग प्रसाद ओली प्रतिनिधि सभा में पेश विश्वास प्रस्ताव हार गए और नेपाली कांग्रेस जोकि एक भारत समर्थित राजनीतिक दल है, द्वारा वैकल्पिक सरकार के गठन की संभावनाएं उज्ज्वल हो गई हैं। भारत के लिए यह एक अच्छी खबर है जबकि चीन को एक बड़ा झटका है। प्रधानमंत्री ओली की ओर से संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के आहूत विशेष सत्र में पेश विश्वास प्रस्ताव के समर्थन में केवल 93 मत पड़े जबकि 124 सदस्यों ने इसके खिलाफ मत दिया।
ओली के चलते खराब हुए भारत-नेपाल संबंधः प्रेक्षकों का मानना है कि ओली के चीन समॢथत रुख के चलते सदियों पुराने नेपाल और भारत के रिश्ते खराब हो गए क्योंकि ओली की सरकार ने नेपाली नक्शे को फिर से बनाया और उत्तराखंड के भारतीय क्षेत्र को भी इसमें शामिल किया।
इसके अलावा नेपाल ने बार्डर रोड आर्गेनाइजेशन द्वारा कैलाश मानसरोवर तक सड़क के निर्माण का भी विरोध किया जिसे भारत ने नकार दिया मगर इसके चलते दोनों देशों के बीच खटास बढ़ गई और नेपाल को निंदा झेलनी पड़ी। दूसरी बात यह है कि ओली ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मई 2019 में नेपाल की यात्रा के दौरान उनके साथ 18 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए। जिनपिंग ने अगले 2 वर्षों के लिए नेपाल को 56 बिलियन डालर की आर्थिक सहायता देने की घोषणा भी की थी जिसने भारत को अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर किया।
चीन की मदद से कुर्सी से चिपके रहे ओलीः नेपाली प्रधानमंत्री खडग प्रसाद ओली के ताबूत में अंतिम कील उस समय ठोंकी गई जब उनकी अपनी पार्टी के एक शक्तिशाली गुट जिसका नेतृत्व पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल और झलनाथ खनाल कर रहे थे, के 28 सदस्य प्रतिनिधि सभा में गैर हाजिर रहे तथा 17 सांसदों के साथ जनता समाजवादी पार्टी व नेपाली कांग्रेस (61 सांसद) ने सबसे ज्यादा विवादास्पद सरकार के खिलाफ संसद में वोट किए। यही ओली के पतन का कारण बना।
ऐसे दौर में पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देयोबा प्रधानमंत्री बन सकते हैं क्योंकि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी तथा प्रभावशाली ग्रुप जनता समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रपति विद्या भंडारी को आग्राह किया है कि उन्हें संविधान के आर्टिकल 76 (2) के तहत नई सरकार के गठन का मौका दिया जाए क्योंकि
उनके पास सांसदों का पर्याप्त बहुमत है। सदन की कुल गिनती 275 की है। राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने भी वीरवार को सांसदों के समर्थन के साथ दावा पेश करने को कहा है। आर्टिकल 76 (2) के अनुसार यदि किसी भी दल को प्रतिनिधि सभा में स्पष्ट बहुमत न हो तो राष्ट्रपति प्रतिनिधि सभा के एक सदस्य को बतौर प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकते हैं जो प्रतिनिधि सभा में 2 या अधिक पार्टियों के समर्थन के साथ बहुमत रखता हो।
ओली का सत्ता से बाहर होना भारत के लिए एक अच्छा लक्षण माना जा रहा है, परंतु इससे चीन को बड़ा झटका लगा है क्योंकि वह नेपाल का भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा था। कोविड से हुई देशव्यापी मौतें और संक्रमण के बावजूद ओली ने विश्वास मत जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी मगर उनके नेतृत्व के खिलाफ एक बड़ा आक्रोष था।
ओली ने एक शर्मनाक हार झेली क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल प्रचंड (नेपाली कांग्रेस) तथा उपेंद्र यादव गुट ने उनके खिलाफ हाथ से हाथ मिलाया। वहीं जनता समाजवादी पार्टी जिसका नेतृत्व महंत ठाकुर करते हैं, संगठन में ज्यादा बिखराव को रोकने के लिए तटस्थ रहे। ओली को संसद के 16 और सदस्यों की जरूरत थी जिनका समर्थन जुटाने में वह असफल रहे। यही उनकी हार का कारण बना।
भारत-नेपाल रिश्तों में एक नया युग शुरू होगाः अब भारत-नेपाल के रिश्तों में एक नया युग आरंभ होगा। अलग हुए प्रचंड गुट ने पहले से ही नेपाली कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की है। वह ओली सरकार से पीछा छुड़वाना चाहते थे क्योंकि ओली सरकार कई भ्रष्टाचार के मामलों में संलिप्त थी और देश में कोविड से निपटने में नाकामयाब रही।
काठमांडू में कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार चीनी राजदूत हाऊ यान्की ने सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों ग्रुपों को समझाने का अंतिम प्रयास किया। चीन नहीं चाहता था कि ऐसे कोई कदम उठाए जाएं मगर गुटीय नेता अपने स्टैंड पर अड़े रहे और अंतत: ओली सरकार का पतन हुआ। ओली सरकार के अपने विशेष कार्यकाल के दो वर्ष रहते थे क्योंकि नेपाल में आम चुनाव 2023 में होने हैं।
वहीं प्रेक्षकों का मानना है कि इस सारे घटनाक्रम के पीछे कई कारक हैं जिससे प्रधानमंत्री की छवि बिगड़ी। इन कारकों में सुप्रीमकोर्ट का विपरीत फैसला, पार्टी में दो फाड़, चीनी दखलअंदाजी, भारत विरोधी रवैया इत्यादि शामिल हैं।
सुप्रीमकोर्ट ने लोकतंत्र बचाया जिस पर खतरा मंडरा रहा थाः एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व निर्णय में सुप्रीमकोर्ट ने नेपाली संसद को फिर से बहाल किया तथा प्रधानमंत्री के.पी. ओली के प्रतिनिधि सभा को भंग करने की कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया।
मुख्य न्यायाधीश चौलेंद्र शमशेर के नेतृत्व वाले पांच सदस्यीय संवैधानिक बैंच ने 275 सदस्यों वाले निचले सदन प्रतिनिधि सभा को भंग करने के निर्णय को अमान्य करार दिया क्योंकि यह असंवैधानिक था।
नेपाल में राजनीतिक माहौल में उथल-पुथल ने ओली को संसद को समयपूर्व भंग करने के लिए बाध्य किया। ओली के अपने ही सहयोगी उनको हटने के लिए कह रहे थे। अपनी कुर्सी को बचाने के चक्कर में ओली ने कोविड संकट से निपटने की जरूरत को नहीं भांपा। के.एस. तोमर
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