देश में ट्रेनों की रफ्तार अभी इतनी ज्यादा नहीं हुई है कि आप हवाई जहाज से पहले अपने गंतव्य तक पहुंच जाएं, ऐसे में हमारी तथाकथित सुपरफास्ट ट्रेनों का किराया हवाई जहाज के किराए के बराबर या उससे ज्यादा कर देने का तर्क समझ में नहीं आता। जब हवाई जहाज ट्रेन के किराए में उपलब्ध है तो कोई क्यों शताब्दी, दूरंतो या राजधानी एक्सप्रेस में सफर कर अपना बेशकीमती वक्त बर्बाद करेगा। त्यौहारों के मौसम में ट्रेनों में यात्रियों की भारी भीड रहती है और उसका फायदा उठाने के लिए रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने शताब्दी, दूरंतो और राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों का किराया 10 से लेकर 50 प्रतिशत तक बढा दिया।
उनका मकसद समझ में आता है कि रेलवे को ज्यादा से ज्यादा कमाई हो लेकिन वह अपने इरादे में शायद ही कामयाब हो पाएं। आम आदमी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप चीन या पाकिस्तान को कितना घेर रहे हैं या उन पर कितने बरस रहे हैं, वह तो अपनी जेब के बारे में ज्यादा से ज्यादा चिंतित रहता है। देश पर कोई गंभीर संकट हो तो वह कोई भी कुर्बानी दे देगा, लेकिन बिना वजह उसका बजट बिगाड़ने की किसी हरकत को बर्दाश्त भी नहीं करेगा।
असमय बढाए गए रेल किराए का कोई तर्क नजर नहीं आता। यदि रेलवे के विकास और उसके आधुनिकीकरण के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाना ही था तो फरवरी में पेश किए गए रेल बजट में उपाय किए जा सकते थे। रेल बजट में किराया न बढाकर प्रभु ने वाहवाही तो बटोर ली थी, लेकिन 9 सितंबर से चुनिंदा सुपरफास्ट ट्रेनों के किराए में बेतहाशा वृद्धि कर उन्होंने रेलयात्रियों का विश्वास खो दिया। अब अगले बजट में रेल किराया नहीं भी बढ़ा तो लोगों को भरोसा नहीं होगा कि आगे भी किराया ज्यों का त्यों रहेगा।
संप्रग सरकार के सत्ता से हटते ही पिछले ढाई साल में ऐसा क्या हो गया कि रेलवे को आईसीयू में बताकर किराया तथा मालभाडा बढाया जाने लगा। मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही सबसे पहला काम रेलवे का किराया बढाने का किया था। सत्ता संभालने के एक-डेढ. महीने बाद रेल किराया 14 फीसदी बढ़ा दिया गया। तर्क दिया गया कि यह फैसला संप्रग सरकार का था, लेकिन आपने उस फैसले पर अमल क्यों किया?
उसके बाद से किसी न किसी बहाने से रेल किराया बढ़ता चला गया। ढाई साल में मोदी सरकार ने रेल किराए में 25 से 30 फीसदी की वृद्धि की है। शताब्दी, दूरंतो और राजधानी में सफर करनेवाले मंत्रियों और उच्चाधिकारियों, अरबपतियों एवं करोडपतियों पर प्रभु की कृपा हो गई। यह तबका जिस एक्जीक्यूटिव क्लास में सफर करता है, उसका किराया प्रभु ने नहीं बढाया। किराया उन लोगों के लिए बढ़ा है जिनमें मध्यम या उच्च मध्यम वर्ग सफर करता है। प्रभु से उम्मीद थी कि रेल मंत्री के रूप में रेलवे की सेहत सुधारने के लिए वह नई सोच के साथ काम करेंगे लेकिन जनता को निराशा ही हाथ लगी है।
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