Friday, Jun 02, 2023
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this is how you can survive the third wave of coronavirus aljwnt

तीसरी लहर से इस तरह ही बच सकते हैं

  • Updated on 5/25/2021

माना जा रहा है कि कोरोना (Coronavirus) की दूसरी लहर जाते-जाते ही जाएगी और तीसरी लहर आते-आते ही आएगी। यानी जुलाई-अगस्त तक दूसरी लहर विदा हो सकती है और तीसरी लहर अगर आई तो अक्तूबर में दस्तक देती नजर आ सकती है। तो इस जाते-जाते और आते-आते के बीच हमारे पास 90 से 120 दिन ही तैयारी के लिए बचते हैं। इस दौरान देश की 60 से 70 फीसदी जनता को टीका लगाना सबसे ज्यादा जरूरी है। ऑक्सीजन से  लेकर वैंटीलेटर और जरूरी दवा का भंडारण  करना और वितरण की व्यवस्था करना दूसरे नंबर पर आता है। 

कुल मिलाकर हमें यह मानकर चलना है कि तीसरी लहर देश में आएगी ही आएगी। उसके हिसाब से हमें तैयारियां करनी हैं। ऐसे में तीसरी लहर आती भी है तो बेदम साबित होगी और अगर तीसरी लहर नहीं आई तो इस बहाने देश के हैल्थ सैक्टर की सेहत काफी हद तक सुधर जाएगी। यानी दोनों की स्थितियों में हमारे पास पाने के लिए बहुत कुछ होगा, खोने के लिए कुछ नहीं होगा।

जहां मुसलमान वहां हिंसा क्यों

हम चाहें तो कोरोना के खिलाफ लड़ाई का टाइम टेबल बना सकते हैं। भारत में इस समय टीकाकरण की जो रफ्तार है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि 31 मई तक करीब 20 करोड़ लोगों को टीका लग चुका होगा। हमारे देश में 18 प्लस नागरिक कुल मिलाकर सौ करोड़ पार हैं। 18 से 44 साल के करीब 60 करोड़, 45 से  60 साल के करीब 32 करोड़ और 60 साल से ऊपर के करीब 12 करोड़। यानी एक जुलाई  को हमारे पास करीब 80 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य होगा और इसके लिए हमारे पास होंगे तीन से चार महीने यानी 90 से लेकर 120 दिन। देश में कोरोना की पहली लहर की पीक पिछले साल 17 सितंबर को आई थी और उसके करीब पांच महीने बाद दूसरी लहर ने दस्तक दी थी। 

अब अगर हम यह मान कर चलें कि देश में दूसरी लहर की पीक मध्य मई तक आ गई तो पांच महीने बाद यानी अक्तूबर में तीसरी लहर दस्तक दे सकती है। यानी हमारे पास जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर चार महीने ही बचते हैं। 120 दिन और 80 करोड़ टीके। यानी हर रोज करीब 90 लाख लोगों को टीका। क्या यह संभव है?  

जीवन रक्षा से जुड़ा दवा कारोबार अनैतिक हवस में बदला

भारत सरकार का कहना है कि टीके की सप्लाई में इजाफा होने पर रजिस्ट्रेशन की शर्त में ढील दी जा सकती है  और वॉक-इन वैक्सीनेशन हो सकती है लेकिन इसमें समय लगने वाला है जिसकी हमारे पास कमी है। कुछ राज्यों ने स्वयंसेवी संगठनों का सहयोग मांगा है जो ग्रामीण इलाकों  में रजिस्ट्रेशन का काम कर रहे हैं, कुछ गांवों में स्कूली बच्चों ने यह जिम्मा संभाला है। महाराष्ट्र में आदिवासी इलाकों में ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन हो रहा है और टीका लगने के बाद सरकारी कर्मचारी सारी जानकारी ऑनलाइन भर देते हैं। 

झारखंड और छत्तीसगढ़ सरकारों ने गांव के स्तर पर हैल्प डैस्क गठित किए हैं जहां रजिस्ट्रेशन की जा रही है। छत्तीसगढ़ सरकार ने तो खुद का सीजे टीका नाम से नया एप ही बना डाला है। वहां के स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि 18 से 45 साल आयु वर्ग को लगने वाले टीके के प्रमाण पत्र पर मुख्यमंत्री की तस्वीर लगाई जाएगी। अभी तक प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगाई जा रही है। यह विवाद और राज्यों में भी फैल सकता है। इस बीच शहर के लोग गांवों के टीकाकरण केंद्रों में स्लाट बुक करवा रहे हैं। एक तरह से यह गांवों के लोगों का हक मारने जैसा ही है। 

कोरोनाकाल में डिजिटल टैक्स से भारत की आमदनी बढ़ी

तीसरी लहर से बचना है तो वैंटीलेटर ऑक्सीजन की कमी को पूरा करना है। एक दिलचस्प तस्वीर वैंटीलेटर को लेकर है जो खुद वैंटीलेटर पर हैं। भारत  में कोरोना काल से पहले करीब 47 हजार 500 वैंटीलेटर हुआ करते थे। कोरोना काल में पी.एम. केयर फंड से 58 हजार वैंटीलेटर खरीदे गए। इस पर दो हजार तीन सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए। 

कायदे से इससे राहत मिलनी चाहिए थी लेकिन दूसरी लहर के दौरान राज्यों में वैंटीलेटर की कमी, खराब वैंटीलेटर, डिब्बों में बंद वैंटीलेटर, वैंटीलेटर फिट करने वालों का नदारद होना जैसी खबरें आनी शुरू हो गईं। राज्यों ने केंद्र सरकार पर खराब वैंटीलेटर भेजने के आरोप लगाए तो केंद्र ने राज्यों पर सार-संभाल नहीं करने के आरोप लगाए। इसमें सभी राजनीतिक  दलों  की सरकारें शामिल हैं। 

आपदा में भी कालाबाजारी के मौके तलाशते लोग

कर्नाटक में पी.एम. केयर से दो हजार वैंटीलेटर भेजे गए लेकिन 1600 या तो खराब निकले या फिर उन्हें डिब्बों से  निकालकर चालू नहीं किया गया। राजस्थान में 1900 वैंटीलेटर भेजे गए लेकिन इनमें से 1400 का यही हाल रहा। ऐसी ही शिकायतें बिहार, बंगाल, यू.पी., महाराष्ट्र से आईं। मामला पी.एम. तक पहुंचा और ऑडिट करवाया गया। इस ऑडिट से जो निकला वह चौंकाने वाला था। बहुत से जिला अस्पतालों में मैकेनिक ही नहीं मिले जो वैंटीलेटर को इन्स्टॉल कर पाते, कहीं सॢवस और स्पेयर पार्ट वैंटीलेटर बनाने वाली कम्पनी ने नहीं दिए तो कहीं अपना इंजीनियर नहीं भेजा, वैंटीलेटर को कहीं ऑक्सीजन पाइप से जोडऩे वाला कनैक्टर नहीं मिला तो कहीं जैनरेटर से जोडऩे का उपकरण नहीं मिला। कहीं पांच रुपए का ऑक्सीजन सैंसर फ्यूज हो गया तो उसे बदला नहीं गया तो कहीं  प्रशिक्षित स्टाफ नहीं होने के कारण वैंटीलेटर सीलबंद डिब्बों से बाहर निकाले ही नहीं गए।

ताजा अध्ययन बताता है कि देश में अभी भी 50 फीसदी लोग मास्क नहीं पहनते। 64 फीसदी मास्क पहनते तो हैं लेकिन उसे ठीक से नाक पर नहीं  लगाते।  ऐसे  में ताजा अध्ययन यह भी बताता है कि बंद कमरे में छींकने या खांसने या जोर से बात करने पर कोरोना वायरस के कण हवा में दो से तीन घंटे तक रहते हैं और दस मीटर तक मार कर सकते हैं। अभी तक दो मीटर ही मारक क्षमता बताई जा रही थी। 

लिहाजा तीसरी लहर से बचना है तो कोरोना के बारे में लगातार जनता को सूचित करते रहना है, आगाह करते रहना है और ऐसा जन चेतना अभियान शुरू करना है जो विज्ञान पर आधारित हो। अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से भी हमारी तैयारी और ज्यादा पुख्ता होगी और तीसरी लहर की आशंका उतनी ही कम होगी। कुल मिलाकर अभी तक कोरोना हमसे चार कदम आगे रहा है लेकिन अगर हमें कोरोना को मात देनी है तो इसकी हर चाल का पहले से ही तोड़ निकाल कर  रखना होगा।

- विजय विद्रोही

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख (ब्लाग) में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इसमें सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इसमें दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार पंजाब केसरी समूह के नहीं हैं, तथा पंजाब केसरी समूह उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

 

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