केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संसद में 1991 के राष्ट्रीय राजधानी के कानून में संशोधन हित जो बिल पेश किया है वह निश्चित ही लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करके लैफ्टीनैंट गवर्नर को मजबूत करने का एक पैंतरा है। ऐसी स्थिति में जन प्रतिनिधि अपने अधिकारों से कई पक्षों से वंचित हो जाएंगे और केंद्रीय शासित प्रदेश दिल्ली (Delhi) की सरकार के अधिकतर अधिकारों का रिमोट कंट्रोल सरकार के पास चला जाएगा।
पहले भी दिल्ली सरकार की कारगुजारी में केंद्रीय दखलअंदाजी को लेकर सियासी तनाव बढ़ता रहा है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार अपनी दूसरी पारी खेल रही है। पिछली बार भी इसी तर्ज पर उक्त सरकार का विवाद विभिन्न मुद्दों पर संगीन होता रहा है और न्यायपालिका तक पहुंच चुका है। केंद्र सरकार यह बिल तब लाई जब हाल ही में हुए एस.सी.डी. के उपचुनावों में उसे निमोशीजनक पराजय का सामना करना पड़ा था।
तरक्की की उम्मीद सरकार से नहीं, खुद से होनी चाहिए
जनता का तर्क है कि केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली में आवाम को दी गई बुनियादी सहूलियतें और प्रशासनिक प्रबंधों में लाई गई पारदर्शिता इस बिल की जीत का बड़ा जरिया बनी है और केंद्र को यह पक्ष किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं है कि कोई अन्य सियासी पक्ष दिल्ली में उसके लिए चुनौती बने और इसका प्रभाव देश के अन्य प्रांतों तक जाए।
इस विवाद को न्यायिक पक्ष से देखें तो 4 जुलाई 2018 को 5 न्यायाधीशों वाली संवैधानिक बैंच का निर्णय लोगों की चुनी हुई सरकार को अधिक महत्व देने वाला था। इसके तहत सरकार को केंद्रीय दायरे में आने वाले जनतक आर्डर, पुलिस व लैंड के अतिरिक्त समूह मामले में तजवीजत निर्णय स्वयं करने चाहिएं और लैफ्टीनैंट गवर्नर को इसके उपरांत ही सूचना देनी चाहिए। इस कानूनी पक्ष पर आधारित अरविंद केजरीवाल केंद्र के इस बिल को न्यायपालिका की तौहीन बता रहे हैं।
हिन्दूवादी ममता ‘बैकफुट’ पर, चोटिल ममता ‘फ्रंटफुट’ पर
वर्णनीय है कि गत 5 वर्षों के शासन के प्रारंभिक समय में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) व केंद्र सरकार (Central Government) के मध्य एन.सी.आर. के चीफ और लैफ्टीनैंट गवर्नर द्वारा सरकारी कार्यों में की जा रही अनावश्यक दखलअंदाजी को लेकर गंभीर विवाद चलता रहा था और अंतरिम वर्षों में केजरीवाल ने इस विवाद को किनारे करते हुए अपना समूचा ध्यान दिल्ली सरकार की कारगुजारी तक ही सीमित कर दिया था। अधिकतर राजसी दल तो इसे केंद्र और दिल्ली सरकार में हुए गुप्त समझौते की कड़ी भी बताते रहे हैं। यहां तक कि कुछ सियासी पक्ष अरविंद केजरीवाल को भाजपा व संघ की बी टीम का हिस्सा भी बता रहे हैं।
केजरीवाल सरकार का शाहीन बाग पर कोई पक्ष स्पष्ट न करना और नागरिकता संशोधन कानून पर जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के मौके केंद्र की हिमायत में जाना इन आरोपों की पुष्टि भी करता था मगर कृषि विरोधी बिलों का डट कर किया गया विरोध विशेषकर दिल्ली पुलिस को अस्थायी जेलें बनाने से स्पष्ट मना करना, इन आरोपों का खंडन भी कर रही थी। केजरीवाल सरकार द्वारा पेश किया गया 69 हजार करोड़ का मिसाली बजट और कोरोना काल की स्थिति के बावजूद आवाम को प्रदान की गई सहूलियतों ने कहीं न कहीं केजरीवाल सरकार का कद ऊंचा किया है।
-शमशेर सिंह डूमेवाल
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