राजधानी दिल्ली में आए दिन आ रहे हैं ऐसे मामले, कई युवा आए चपेट में -टीवी की दवा दे रहे है डॉक्टरों की लापरवाही भी आ रही सामने
नई दिल्ली/प्रगनेश सिंह।
कोरोना संक्रमण के बाद से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली और अन्य कई निजी अस्पतालों में इन दिनों टीबी की दवा खाने से आंख की रोशनी के गायब होने के मामले सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि टीबी की दवाई खाने से आंख की रोशनी की प्रमुख नस सूख जा रही है, जिसकी वजह से मरीज को दिखाई नहीं दे रहा। चौकाने वाली बात तो ये है कि दोबारा से रोशनी वापस लाने के लिए बाजार में कोई दवा उपलब्ध नहीं है न ही अभी तक कोई ऐसी दवाई बनाई गई है। केवल मल्टीविटामिन की गोली ही मरीजों के पास एक मात्र उपाय है।
पिछले छह महीने से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में टीबी का इलाज करा रहे बरकत अली ने बताया कि वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के रहने वाले हैं। विगत जून माह में वह फेफड़े में दर्द, बुखार और खांसी की शिकायत लेकर ए स में इलाज कराने के लिए आए थे। यहां पर डॉक्टरों ने उन्हें टीबी होने की बात कही और टीबी की दवा लगातार छह माह तक लेने की सलाह दी। डॉक्टरों के बताए अनुसार वह दवा लेना शुरू कर दिए। करीब तीन माह के बाद उनकी आंख की रोशनी कम होने लगी। इस बात की जानकारी इलाज कर रहे डॉक्टर को दी तो उन्होंने आंख के डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी, हालांकि डॉक्टर ने दवा के साइड इफेक्ट के बारे में जानकारी नहीं दी। आरोप है कि ए स के नेत्र रोग विभाग के डॉक्टरों ने भी गंभीरता से नहीं लिया, जांच करने के बाद दवा निरंतर लेने की सलाह दे दी। आलम ये है कि अब उनकी दोनों आंख की रोशनी बहुत कम हो चुकी है। जांच में आया कि टीबी की दवा लेने की वजह से उनकी दोनों आंख की नस सूख गई है। जिसकी वजह से उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है। फिलहाल उनका दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में इलाज चल रहा है।
आंख की रोशनी में आए फर्क तो विशेषज्ञ से लें सलाह
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. टिंकू बली रजदान ने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद से आए दिन उनके पास आंख की रोशनी के गायब होने के मामले आ रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा टीबी की दवा सेवन करने के हैं। उनका कहना है कि टीबी की दवा में एक ऐसी मेडिसीन डॉक्टर चलाते है, जो सीधे आंख की रोशनी वाली नस पर असर डालता है। जिसकी वजह से मरीज की रोशनी चली जाती है। चौकाने वाली बात तो ये है कि ये दवा भी चलाना जरूरी होता है। इसका एक मात्र उपाय यह है कि जैसे ही आंखों में धंूधला पन, पीला या लाल दिखाई दे, तुरंत ही वो दवा बंद कर किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी। जिससे रोशनी बचाई जा सके। उन्होंने बताया हाल ही में एक इंजीनियरिंग की छात्र भी उनके पास ऐसी शिकायत लेकर आई थी, खासबात है कि दवा बंद करने के बाद भी उसकी रोशनी काफी प्रभावित हो गई है।
100 में एक या दो मरीज हो रहे प्रभावित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पल्मोनरी मेडिसीन विभाग के प्रोफेसर डॉ. विजय हाड्डा ने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद से टीबी की मरीजों की सं या बढ़ी है। कोरोना काल में नियमित रूप से उपचार नहीं मिल पाने के कारण कई टीबी के मरीजों की आंख की रोशनी भी प्रभावित हुई है। उन्होंने बताया कि 100 टीबी के मरीजों की सं या में एक या दो मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिनकी टीबी की दवा का सेवन करने से रोशनी पर फर्क पड़ा है। उन्होंने कहा टीबी की दवा चलाने के दौरान डॉक्टर को तत्काल मरीज को उसके दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी दे देनी चाहिए, जिससे मरीज भी सतर्क रहे। जैसे ही उसकी रोशनी पर कोई असर पड़े वह डॉक्टर से सलाह तुरंत ले और नुकसान कर रही दवा को लेना बंद कर दे।
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