नई दिल्ली/ब्यूरो। दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक काउंसिल (एसी) और एग्जिक्यूटिव काउंसिल (ईसी) चुनाव में 9 फरवरी को होने वाले मतदान के लिए दो दिन शेष रहे हैं। ऐसे में प्रत्याशियों ने प्रचार में अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। प्रत्याशी एक-एक शिक्षक का वोट पाने के लिए कॉलेजों से लेकर विभागों तक के चक्कर लगा रहे हैं। हर प्रत्याशी अपने समर्थन में वोट पाने की जुगत में तमाम तरह के वादें शिक्षकों से कर रहा है।
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डीयू में 10 सालों से अनेकों समस्याओं से शिक्षक जूझ रहे हैं। डीयू से जुड़े सभी नीतिगत फैसले एसी और ईसी में ही लिए जाते हैं। इसलिए यह चुनाव शिक्षकों के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।
ईसी के दो सदस्य चुने जाएंगे, जिसके लिए मैदान में 6 प्रत्याशी और एसी के 22 सदस्य चुने जाने के लिए 32 प्रत्याशी मैदान में हैं। एसी के 26 सदस्यों में से 4 सदस्य पहले ही निर्विरोध चुने जा चुके हैं। ईसी और एसी चुनाव के लिए इस बार लगभग 10 शिक्षक वोट डालेंगे। जिसमें लगभग 4500 एडहॉक शिक्षक भी शामिल हैं।
इस वक्त डीयू में लगभग 4500 से एडहॉक शिक्षक स्थाई नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया का विज्ञापन विवि प्रशासन की तरफ से जारी कर दिया गया है। लम्बे समय से डीयू में एडहॉक शिक्षकों की स्थाई नियुक्ति का मुद्दा चुनाव में सबसे ज्यादा ज्वलंत रहता आ रहा है और इस बार भी सबसे महत्वपूर्ण यही बना हुआ है। इसको लेकर प्रत्याशी एडहॉक शिक्षकों को लुभाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा अन्य मुद्दों को लेकर भी प्रत्याशी शिक्षकों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगे हुए हैं।
इस सम्बंध में एनडीटीएफ से एसी चुनाव में प्रत्याशी और वर्तमान में एसी सदस्य डॉ.सुनील कुमार का कहना है कि दो साल पहले शिक्षकों ने मुझ पर विश्वास करके मुझे एसी में पहुंचाया था और मैं भी पूरे दो साल शिक्षकों के मुद्दों को एसी की बैठकों में लगातार उठाता आया हूं। दो साल मैं फिल्ड में एक्टिव रहा हूं इसका फायदा चुनाव में पूरे पैनल को मिलेगा और पैनल जीत दर्ज करेगा।
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वहीं डीटीएफएसजे के प्रत्याशी हंसराज सुमन का कहना है कि सभी अपनी जीत का दावा ठोक रहे हैं। अब चुनाव में दो दिन बाकी रह गए हैं। इसलिए सभी प्रत्याशी प्रचार करने में पूरी तरह से व्यस्त हैं।
शिक्षक राजनीति के दंगल में सुल्तान बनने के सबके अलग दांव दिल्ली विश्वविद्यालय इन दिनों शिक्षक राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। 9 फरवरी को होने वाले एकेडमिक काउंसिल (एसी) और एग्जिक्यूटिव काउंसिल (ईसी) के चुनाव के लिए खूब दंगल हो रहा है। डीयू के इस चुनावी दंगल में ईसी के दो पदों के लिए 6 और एसी के 22 पदों के लिए 32 प्रत्याशी शिक्षक राजनीति का सुल्तान बनने के लिए अपने-अपने दांव चल रहे हैं। अब देखना यह है कि कौन अपने दांव से सामने वाले को चित कर इस दंगल का असली सुल्तान बनता है। एसी और ईसी डीयू की सर्वोच्च संस्थाएं होती हैं।
एनडीटीएफ, इंटेक, एएडी, डीटीएफ और डीटीएफएसजे सहित अन्य शिक्षक संगठन के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। एएडी से ईसी के प्रत्याशी राजेश झा का कहना है कि डीयू के सामने जो गंभीर चुनौतियां हैं उनको अपने संघर्ष से पूरा करना उनके मुद्दों में शामिल है। डीयू में 60 प्रतिशत से अधिक तदर्थ शिक्षक हैं।
नई प्रक्रिया के तहत 80 प्रतिशत से अधिक इन शिक्षकों को बाहर का रास्ता देखना पड़ सकता है। उनका मानना है कि जो शिक्षक जहां पढ़ा रहा है, वो वहीं स्थाई किया जाए। इसके अलावा हाईकोर्ट ने जो सातवें पे कमिशन पर जजमेंट दिया है, उसको भी जल्द लागू किया जाए। सातवें वेतन आयोग में 30 प्रतिशत ग्रांट कट करने की बात की जा रही है। हम उसका विरोध करेंगे। इसके अलावा कॉलेजों की स्वायत्तता का भी हम विरोध करेंगे। एनडीटीएफ के अध्यक्ष वर्तमान ईसी सदस्य और इसबार भी ईसी के प्रत्याशी डॉ. ए.के भागी कॉलेजों की स्वायत्तता के मुददे पर मुखर दिखाई दे रहे हैं।
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उनका कहना है कि यूजीसी को प्रशासनिक और एकेडमिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है, इसे बंद करना होगा। इसके अलावा विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता को प्रभावित करने के लिए 2009 से जारी कोशिशों को भी संगठन रोकने के लिए प्रयासरत है। वहीं डीटीएफ एसजे के प्रत्याशी हंसराज सुमन के मुद्दो में करेक्ट रोस्टर द्वारा कॉलेजों में नियुक्ति की प्रक्रिया जल्द शुरू करवाना है।
लंबे समय से रुकी हुई प्रमोशन की प्रक्रिया शुरू हों, पूर्व वीसी दिनेश सिंह के कार्यकाल का रोस्टर समाप्त हो और भारतीय संविधान के अनुसार आरक्षण नीति लागू होना भी उनके मुद्दों में शामिल रहेेगा।? इंटेक के चेयरमैन अश्विनी शंकर का कहना है कि पहला मुद्दा एडहॉक शिक्षकों की स्थाई नियुक्ति है। अब तक का बनाया गया 50:30:20 का फार्मूला पारदर्शी नहीं है। नियुक्ति पर आम सहमति बनाई जाएगी। प्रमोशन का मुद्दा भी अहम है। कॉलेजों की स्वयत्तता के मुद्दे पर डूटा बिल्कुल मौन है।
अपना प्रत्याशी नहीं होने का एडहॉक शिक्षकों को मलाल
दिल्ली विश्वविद्यालय के ईसी और एसी चुनाव में प्रत्याशियों की जीत हार को तय करने में सबसे अहम भूमिका एडहॉक शिक्षकों के मतदान की होती है। एडहॉक शिक्षक जिस तरफ वोट डालते हैं, जीत भी उधर की तरफ होती है। ऐसे में एडहॉक शिक्षकों को यह मलाल है कि चुनाव में उनका कोई प्रत्याशी नहीं है।
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एडहॉक शिक्षक राजेंद्र का कहना है कि वैसे तो सभी शिक्षक संगठन और प्रत्याशी एडहॉक शिक्षकों के हक की बात करते हैं। मगर यदि कोई एडहॉक चुनाव में लड़े और जीते तो वह हमारी समस्या को अच्छे से समझेगा, क्योंकि वह हमारे बीच का होगा। इसलिए उसे हमारी पूरी स्थिति की जानकारी होगी।
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