नई दिल्ली/टीम डिजिटल। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने वीरवार को कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने और जरूरी तकनीकी सहयोग करके विकासशील देशों के विकास लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। भूपेन्द्र यादव ने वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते कहा, विकसित दुनिया ने अपने हिस्से के जलवायु संसाधनों का उपभोग कर लिया है और अब समय आ गया है कि वे पिछले कार्यों की जिम्मेदारी स्वीकार करें। उन्होंने कहा कि भारत विकासशील देशों और छोटे द्विपीय राष्ट्रों की असुरक्षा को समझता है, ऐसे में अत्यावश्यक वैश्विक जलवायु कार्रवाई वक्त की जरूरत है। वन एवं पर्यावरण मंत्री ने कहा कि यह समानता तथा साझी एवं अलग अलग जिम्मेदारियों सहित जलवायु न्याय और अपनी अपनी क्षमता पर आधारित सिद्धांत के तहत मार्गदर्शित होना चाहिए । गौरतलब है कि यहां समानता का मतलब यह है कि सभी देशों का कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन का हिस्सा वैश्विक जनसंख्या में उसके हिस्से के बराबर हो। भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए और जरूरी तकनीकी सहयोग करके विकासशील देशों के विकास लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत ने हमेशा एक ऐसी वैश्विक पहल को प्रोत्साहित किया है जो विकासशील देशों के हितों एवं चिंताओं से जुड़ी हुयी हो। उन्होने कहा, जलवायु परिवर्तन का गंभीर प्रभाव ऐसे कई विकासशील देशों पर गहरा रहा है जिनका इसमें कम योगदान रहा है। विकसित दुनिया ने अपने हिस्से के जलवायु संसाधनों का उपभोग कर लिया है और अब समय आ गया है कि वे पिछले कार्यों की जिम्मेदारी स्वीकार करें। देश का विकास और जैवविविधता संरक्षण दोनों महत्वपूर्ण पहलू हैं और इनमें से किसी को भी छोड़ नहीं सकते। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण का समाधान तभी संभव है, जब हम साथ मिलकर साझे लक्ष्य की दिशा में काम करें। भारत 12-13 जनवरी को दो दिवसीय वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है, जो यूक्रेन संघर्ष के कारण उत्पन्न खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा सहित विभिन्न वैश्विक चुनौतियों के मद्देनजर विकासशील देशों को अपनी चिंताएं साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा। ग्लोबल साउथ व्यापक रूप से एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के विकासशील देशों एवं उभरती अर्थव्यवस्थाओं को कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए खाद्य, ईंधन और उर्वरकों की बढ़ती कीमतों, कोविड-19 वैश्विक महामारी के आर्थिक प्रभावों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्राकृतिक आपदाओं पर भी चिंता व्यक्त की। इस सत्र में उत्तरी मेसिडोनिया, मालडोवा, किर्गिस्तान, मार्शल आइलैंड, ताजिकिस्तान, गिनी, इथोयोपिया, किरीबाती, तूवालू, सेसेल्स, मेडागास्कर और टोंगो ने हिस्सा लिया।
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