Friday, Sep 29, 2023
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गर्भ में पल रहे बच्चे को रखें मधुमेह से सुरक्षित, जानें कुछ खास बातें

  • Updated on 11/27/2017

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। मधुमेह का प्रभाव गर्भावस्था के समय महिलाओं और उनके अजन्मे शिशु पर भी पड़ता है। अगर गर्भवती महिला का ब्लड शुगर नियंत्रित नहीं है तो यह शिशु तक पहुंच जाता है और इससे गर्भ में पल रहे शिशु का वजन छठे महीने में बढऩे की संभावना अधिक होती है। अधिक वजन की वजह से प्रसव के समय दिक्कत आती है। यहां तक कि बच्चे की गर्भ में ही मौत भी हो सकती है। 

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अनियंत्रित मधुमेह की वजह से शिशु के आसपास अत्याधिक पानी या एमनियोटिक द्रव्य भर जाता है, इस स्थिति को पॉलीहाइड्रेमनिओज कहा जाता है। डायबिटिक गर्भावस्था की स्तिथि में भी अधिकांश महिलाएं स्वस्थ शिशु को जन्म देती हैं। लेकिन ऐसे बच्चों में भविष्य में मोटापे और मधुमेह का खतरा अन्य बच्चों की तुलना में अधिक रहता है। लाइफलाइन प्रयोगशाला की सह-संस्थापक डॉ. अंजलि मिश्रा का कहना है की डायबिटीज के लक्षणों को सामान्य मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि होने के लिए तो आम बात है कभी भी प्यास लगना, अचानक ज्यादा भूख होना, थकान लगना इत्यादि रोजमर्रा की जीवनशैली का ही एक हिस्सा लगता है। पर इसे अनदेखा न करके डॉक्टर से उचित सलाह लेनी चाहिए और जांच करवानी चाहिए।

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गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण आसानी से नहीं पहचाने जाते, इसलिए शुगर स्तर की जांच कराना जरूरी है।पेशाब की जांच आपकी प्रसव से पहले देखभाल वाली प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा है। पेशाब की जांच से हमें यह भी पता चलता है कि आपके पेशाब में शुगर का स्तर कितना है। अगर शुगर का स्तर सामान्य से अधिक है, तो यह गर्भावधि मधुमेह होने का संकेत हो सकता है। इन बुनियादी परीक्षणों से गर्भावधि मधुमेह होने का आभास होता है तो फिर आपको अपने डॉक्टर से सुझाव लेते हुए फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट कराने की जरूरत पड़ती है। 

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