नई दिल्ली/टीम डिजिटल। वो लोग हमारा इतिहास बता रहें है जिनका जन्म ही कुछ वर्ष पूर्व हुआ है । आर्य भारतीय हैं इसका प्रतिपादन करते हुए उन्होने कहा कि यूरोप का व्यक्ति सघोष महाप्राण ध्वनियां नहीं बोल सकता, इन ध्वनियों को केवल भारतीय जनमानस ही बोल सकता है । भारत व्यक्ति की नहीं व्यक्तित्व की पूजा करता है । जो दृश्यमान है वह नश्वर है, केवल यश ही चिरस्थायी है एवं यश से तात्पर्य धर्म से है । यह बाते राष्ट्रीय स्वयं सेव संघ के सह-कार्यवाह डॉ.कृष्णगोपाल ने बतौर मुख्यअतिथि कहीं। वह डीयू संस्कृत विभाग द्वारा पुरातत्त्व एवं अभिलेखशास्त्र के आलोक में भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन विषय पर एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। डॉ.कृष्ण गोपाल ने कहा कि संस्कृत जैसी पूर्ण भाषा कोई नहीं है। पुनर्लेखन की आवश्यकता का प्रतिपादन करते हुए कहा कि 200-300 वर्ष पूर्व में आए हुए लोगों ने हमारा इतिहास लिखा। उन्होंने माक्र्सवादी इतिहासकारों को भारतीय इतिहास के ऊपर काली छाया के रूप में प्रतिपादित किया। ऑनलाइन परीक्षा की मांग को लेकर एनएसयूआई का डीयू में हल्लाबोल
विश्व का प्रथम गणराज्य भारत ने दिया कुछ लोगों के द्वारा कहा जाता है कि आंग्लों के द्वारा ही भारत में लोकतान्त्रिक परम्पराएं स्थापित की गई किन्तु विश्व का प्रथम गणराज्य भारत ने दिया । जैसे वैशाली मगध इत्यादि । वैशाली में 7000 से अधिक प्रतिनिधियों ने अपने राजा का चुनाव किया। अंग्रेजों के आने के बाद भातर में साक्षरता आई ऐसा कहा गया किंतु अंग्रेजों के आने के बाद निरक्षरता आई। अंग्रेजों के आने से पूर्वा भारत में 73 प्रतिशत और जाने के बाद 14 प्रतिशत सााक्षरता दर थी। क्योंकि संस्कृत द्वारा भारत राष्ट्र एकता के सूत्र में बंधा हुआ था। नेशन एवं राष्ट्र की वयाख्या करते हुए कहा कि अंग्रेजों द्वारा प्रतिपादित नेशन असहिष्णु है जबकि राष्ट्र के रूप में भारत हमेशा से सहिष्णु रहा है। यूक्रेन इस दा कॉन्सेप्ट ऑफ नेशन। भारत मरने के लिए नहीं जीने के लिए पैदा हुआ है- अमृतस्य पुत्रा: वयम् । हमारा इतिहास 15000 वर्षों का है 300 या 400 वर्षो का नहीं है । उन्होने कहा कि हम दूर तक पीछे जाए जिससे दूर तक अनुसन्धान कर सके । आठ डीम्ड विश्वविद्यालय सीयूर्ईटी से दाखिले के इच्छुक: एम. जगदीश कुमार
डूटा अध्यक्ष ने किया स्वागत कार्यक्रम का विधिवत प्रारंभ दीपप्रज्वलन के साथ हुआ। संगोष्ठी में सारस्वत अतिथि के रूप में संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठिान निदेशक प्रो.चांदकिरण, विशिष्ठ अतिथि प्रो.बीआरमणि आदि उपस्थित रहे।कार्यक्रम में बीज वक्तव्य डीयू संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो.रमेश चंद्र भारद्वाज और स्वागत भाषण डीयू दक्षिणी परिसर संस्कृत विभाग निदेशक प्रो.ओमनाथ बिमली ने दिया। इससे पहले डूटा अध्यक्ष डॉ.एके भागी एवं प्रो.वीएस नेगी ने मुख्यअतिथि डॉ.कृष्णगोपाल का स्वागत किया। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र के प्रथम वक्ता डा.रवीन्द्र वशिष्ठ रहे व द्वितीय वक्ता के रूप में भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद सदस्य प्रो.हीरामन तिवारी ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम के समापन में संस्कृत विभाग की प्रो.मीरा द्विवेदी द्वारा कार्यक्रम प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। प्रो.भारतेंदु पांडेय ने सभी के प्रति धन्यवाद प्रस्तुत किया।
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