स्थिति देखकर विशेषज्ञ भी हैरान
नई दिल्ली/अंकुर शुक्ला | कोविड की दूसरी और अबतक की सबसे मारक लहर को बीते एक साल से भी अधिक वक्त बीत चुके हैं। फिलहाल मामले नियंत्रण में हैं और लोग राहत में हैं लेकिन कोविड की दूसरी लहर में गंभीर रूप से प्रभावित होकर बच निकलने वाले मरीजों की मुसीबत अब भी कायम है। ऐसे मरीजों को एक के बाद एक शारीरिक और स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
ब्लैक फंगस के बाद अब पॉलिसाइथीमिया (Polycythemia) ने मरीजों की जान मुसीबत में डाल दी है। विशेषज्ञ भी ऐसे मरीजों की तादाद देखकर हैरान हैं। महत्वपूर्ण यह है कि यह बीमारी एक तरह का कैंसर है, जो अन्य ब्लड कैंसर के मुकाबले कम जानलेवा है। फिलहाल, विशेषज्ञ इस पर बारीकी से निगाह रखे हुए हैं। यह भी संभव है कि जल्दी ही इस मामले को लेकर शोध और अध्ययनों का भी सिलसिला शुरू हो लेकिन फिलहाल बीमार हो रहे लोगों का बचाव ही प्रमुख प्राथमिकता है।
तथ्यों को इकठ्ठा करने की जरूरत : सफदरजंग अस्पताल के सामुदायिक मेडिसिन विभाग के निदेशक और एचओडी प्रो. जुगल किशोर के मुताबिक इस मामले को लेकर चिंतित होने से अधिक इससे जुड़े तथ्यों को उजागर करने की जरूरत है। इसके लिए हमें एविडेंस इकठ्ठा करना पड़ेगा। ऐसा हम संबंधित मामले में रिसर्च और स्टडी की बदौलत ही कर सकते हैं। यह भी सही है कि हम ऐसी समस्याओं को हल्के में नहीं ले सकते।
बारीकी से रखे हुए हैं नजर : मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के सामुदायिक मेडिसिन विभाग की विशेषज्ञ डॉ. सुनीला गर्ग के मुताबिक कोविड की दूसरी लहर में गंभीर स्थिति से उबरकर बचने वाले मरीजों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन पॉलिसाइथीमिया एक प्रमुख और चिंता पैदा करने वाला कारण है। इस मामले को गंभीरता से लेना होगा। हम इसपर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। यहां बता दें कि सामान्य लोगों में भी कई बार कुछ शारीरिक और स्वास्थ्य कारणों से हिमोग्लोबिन के स्तर असामान्य हो जाते हैं। जो कॉज रूट खत्म होते ही सामान्य हो सकते हैं।
क्या है पॉलिसाइथीमिया : इस समस्या से पीडि़त मरीजों में हिमोग्लोबिन का स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है। शरीर बोन मौरो की मदद से रेड ब्लड सेल्स बनाता है। अगर शरीर में रेड ब्लड सेल्स जरूरत से अधिक हो जाए तो इस कंडिशन को पॉलिसाइथीमिया कहते हैं। शरीर में ऑक्सीजन की कमी भी इस समस्या को हवा दे सकती है।
आमातौर पर यह समस्या 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों में ही होती है। यह एक तरह का ब्लड कैंसर भी हो सकता है लेकिन यह अन्य ब्ल्ड कैंसर के मुकाबले कम जानलेवा होता है। समय रहते उपचार नहीं कराने पर यह ल्यूकिमिया में भी परिवर्तित हो सकता है। इसकी वजह से शरीर में खून गाढ़ा हो जाता है और इससे ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम बढ़ जाता है। एक लाख की आबादी में से 50 लोगों में यह बीमारी पाई जाती है। 90 प्रतिशत मरीजों में यह जैक -2 नामक जीन में म्यूटेशन के कारण होता है।
सामान्य हिमोग्लोबिन का स्तर : पुरूष - 13.2 से 16.6 महिला - 11.6 से 15
कोविड से क्या है संबंध : विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना से गंभीर रूप से प्रभावित लोगों में ऑक्सीजन की कमी प्रमुख कारण है। ऐसे मरीजों का लंग्स भी प्रभावित होता है और जरूरत के मुताबिक शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं मिल पाती है। कोरोना की दूसरी लहर के में प्रभावित मरीजों में ही 'यादातर पॉलिसाइथीमिया की समस्या सामने आ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि कई शोध में इस बात को लेकर आशंका जताई गई है कि कोविड वायरस कई बार मानवीय जीन को भी प्रभावित कर सकता है। हालांकि, इस विषय पर अभी विशेषज्ञों में एक राय कायम नहीं हो सकी है।
लक्षण : सिरदर्द चक्कर आना हाथ पैरों में झनझनाहट थकान हाई ब्लड प्रेशर मसूढ़ो या नाक से खून आना अत्यधिक पसीना खुजली सांस लेने में दिक्कत शरीर में जलन हाथ पैर में लालीपन वजन में कमी आना जोड़ों में दर्द और सूजन
बचाव : कुछ अंतराल पर ब्लड डोनेट करें क्लॉटिंग से बचाव के लिए लो- डोज एस्प्रिन किमोथेरेपी बोनमैरो प्रत्यारोपण
इस स्थिति में भी अधिक हो सकती है हिमोग्लोबिन : अधिक व्यायाम करने से पानी की कमी से स्मोकिंग हाई एंल्टिट्यूट वाले क्षेत्र में अचानक जाने से सीओपीडी वाले मरीजों में
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