Saturday, Dec 09, 2023
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The great festival Chhath Puja ended with the offering of fire to the rising Sun God.

उदय होते सूर्यदेव को अघ्र्य अर्पित करने के साथ ही महापर्व छठ पूजा संपन्न

  • Updated on 11/20/2023


: राजधानी के छठ घाटों पर लाखों लोगों ने लगाई आस्था की डूबकी
नई दिल्ली, 20 नवम्बर (जे के पुष्कर/नवोदय टाइम्स): राष्ट्रीय राजधानी के 1000 घाटों पर श्रद्धालुओं द्वारा उदय (उगते) सूर्यदेव को अघ्र्य देने के साथ ही चार दिवसीय छठ पूजा महापर्व धार्मिक परम्परानुसार सोमवार को धूमधाम से संपन्न हो गया। सूर्य भगवान और छठी मईया की पूजा के लिए 36 घंटे लंबा निर्जला व्रत करने वाले व्रतियों ने सोमवार सुबह घुटने तक गहरे पानी में अनुष्ठान व अराधना किया तथा उदय होते सूर्यदेव को दूध और जल के साथ ‘’अघ्र्य’’ अर्पित किया। अघ्र्य अर्पित करने के उपरांत व्रतियों ने सूर्य भगवान से अपने बच्चों, परिवार और जनकल्याण की कामना की तथा प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण किया।
सुबह तड़के से लोग गाजे-बाजे के साथ छठ पूजा घाटों पर जुटने लगे थे। सुबह यानी कि जब सूर्य भगवान उदय होने लगे तो यमुना सहित अलग-अलग घाटों पर लाखों की संख्या में लोग जमा हो चुके थे। आईटीओ स्थित यमुना किनारे कृत्रिम घाट पर श्रद्धालू रात से ही जुटे थे। रातभर लोग जगराता कर सूर्य भगवान व छठी मईया की गुणगान करते रहे। कब सुबह हो गई लोगों को पता ही नहीं चला और वे घाट पर अघ्र्य अर्पित करने के बाद क्षमा याचना करते हुए अपने घर को विदा हुए।
इस साल छठ पर्व के अंतिम दिन लाखों श्रद्धालु दिल्ली में स्थायी घाटों और अस्थायी तालाबों में सूर्य भगवान की पूजा करने के लिए उमड़े। बता दें कि छठ पूजा दीवाली के बाद छठे दिन, षष्टी तिथि को होती है और इसे सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है क्योंकि यह पर्व सूर्य भगवान को समर्पित है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड वासियों के लिए  सबसे लोकप्रिय महापर्व  है। गौरतलब है कि भगवान सूर्यदेव और छठी मईया को समर्पित लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा में संतान के स्वास्थ्य, सफलता और दीघार्यु के लिए पूरे 36 घंटे का निर्जला उपवास किया जाता है। इस साल इस चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत शुक्रवार 17 नवम्बर को नहाय खाय के साथ हुई थी, उसके बाद शनिवार 18 नवम्बर को व्रती महिलाओं व पुरूषों ने दूसरे दिन का पूजा खरना किया। तत्पश्चात व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू किया और तीसरे दिन 19 नवम्बर रविवार को छठी मईया और अस्ताचलगामी भगवान सूर्यदेव व उनकी पत्नी प्रत्यूषा को पहला अघ्र्य अर्पित किया। इसके बाद सोमवार को व्रतियों ने दूसरे और अंतिम अघ्र्य उगते सूर्यदेव व उनकी दूसरी पत्नी उषा को अर्पित कर व्रत और महापर्व का समापन किया। 

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