Thursday, Nov 30, 2023
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इच्छाओं में उलझे बिना जोश में कैसे जिएं: सदगुरु

  • Updated on 7/1/2017

Navodayatimesनई दिल्ली/टीम डिजिटल।  कुछ समय पहले मैं एक आदमी से बातचीत कर रहा था। वह आदमी ब्रह्मचारी बनना चाहता था। मैंने उससे पूछा कि वह ब्रह्मचारी क्यों बनना चाहता है? उसने कहा ‘क्योंकि मुझे आत्म-ज्ञान चाहिए।’ मैंने कहा ‘तो दिक्कत क्या है? इसे पाने के कई दूसरे तरीके भी हैं।’ उसने कहा ‘नहीं, मैं जल्दी पाना चाहता हूं। मुझे ज्ञान जल्दी चाहिए।’ अच्छी बात है कि किसी की इतनी बड़ी, लेकिन सरल सी इच्छा है कि वह आत्म-ज्ञानी होना चाहता है।

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एक तरह से देखा जाए तो यह पूरी दुनिया को जीत लेने जैसा है। दूसरी तरह से देखें तो बस आप अपनी जगह पर बैठे रहते हैं, आपको कहीं नहीं जाना है, बस थोड़ा-सा अपने भीतर की ओर मुडऩा है। कोई भी इंसान अभी जैसा है, उससे अलग कुछ और बनने की चाहत में वह इस जीवन के सरल तौर-तरीके समझ नहीं पाता। यह जीवन, यह मन, यह सृष्टि, इन सभी के बीच का रिश्ता, यह सब कैसे घटित हो रहा है, इन सभी चीजों से वह पूरी तरह से चूक जाता है।

इच्छा के बिना आगे नहीं बढ़ सकते
आपको समझना होगा कि यह आपकी इच्छा ही है जिसने भूत, वर्तमान और भविष्य जैसी चीजों को बनाया है। चूंकि इच्छा है, इसीलिए भविष्य जैसी चीज है। एक बार जब आप अपने मन में एक भविष्य गढ़ते हैं, तो अतीत एक बहुत बड़ा हिस्सा घेर लेता है। दरअसल भविष्य के साथ संतुलन बनाने के लिए अतीत अपना महत्व भी बहुत अधिक बढ़ा लेता है, नहीं तो आप गिर पड़ेंगे। इस तरह जब भूत और भविष्य की अहमियत बढ़ जाती है तो लोग इन दोनों के बीच सी-सॉ की तरह झूलने लगते हैं। वे कभी हकीकत में नहीं जीते।

अब अगर आपके भीतर इच्छा नहीं है, तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि आगे कैसे बढऩा है। इच्छा के अभाव में आज आप यहां नहीं होते। साथ ही जिस पल आपने इच्छा पैदा की, आपने एक भविष्य की भी रचना कर ली, हर तरह की योजनाएं आपके भीतर चलने लगी, लेकिन मन की सीमाओं के चलते कोई भी भविष्य में प्रवेश नहीं कर सकता, आप योजनाएं तो बना ही सकते हैं।

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यह प्रोजेक्टेड मिरर जैसा होगा मतलब शीशे के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग दिशाओं को दिखा रहे हैं। आप सोच सकते हैं कि ये दर्पण कितना खराब होगा। हम जो भी साधना करते हैं, वह मन को ठीक करने के लिए नहीं है। उसका मकसद किसी कबाड़ में से कोई काम की चीज निकालना नहीं है। लोग तीन दिन राम-राम जपते हैं, और दावा करने लगते हैं कि उनका मन पवित्र हो गया है। सच्चाई तो यह है कि मन बस एक कूड़ादान है। उसके पवित्र होने का सवाल ही नहीं है।

एक बार की बात है। एक जैन शिष्य ज्ञान प्राप्ति को लेकर बहुत उत्सुक था। उसे जो भी मंत्र बताया जाता, वह पूरे जोश के साथ उसका जाप करने लगता। उस मंत्र का पूरी लगन के साथ जाप करते हुए उसे एक महीने से भी ज्यादा हो गया था। उसके गुरु ने उसकी इन कोशिशों को देखा। कुछ देर बाद वह एक ईंट लेकर उसके पास गए और ईंट को उसी लय के साथ पत्थर पर घिसना शुरू कर दिया।

झर्र, झर्र, झर्र . . . यह आवाज सुनकर शिष्य को गुस्सा आने लगा। वह सोचने लगा कि कौन मेरे मंत्र जाप के वक्त मुझे परेशान कर रहा है? लेकिन, वह अपनी आंखें नहीं खोलना चाहता था। जब उससे न रहा गया तो उसने आंखें खोल दी। गुरु को सामने पाकर वह बोला ‘यह सब क्या है? मैं मंत्र जाप कर रहा हूं और आप मुझे परेशान कर रहे हैं। क्या आप प्रतियोगिता से डर गए हैं?’

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गुरु ने कहा ‘तुम क्या करने की कोशिश कर रहे हो?’ उसने कहा ‘मैं अपने मन को गढऩे की कोशिश कर रहा हूं। मैं उसे एक स्वच्छ तालाब जैसा बनाना चाहता हूं।’ गुरु बोले ‘मैं भी यही करना चाहता हूं। मैं इस ईंट को शीशे की तरह बनाना चाहता हूं।’ हम दोनों ही अपना-अपना काम कर रहे हैं, लेकिन न तो मेरी ईंट शीशे के आसपास भी पहुंच पाई है और न ही तुम्हारा मन शांति और स्थिरता की ओर बढ़ पाया है। ऐसे में यह सब करने का क्या फायदा?’

इच्छा के बिना भी तीव्रता बनाए रखने के तरीके
अब सवाल यह है कि साधना करने का मतलब क्या है? साधना के बिना कोई चारा नहीं है, लेकिन साधना रास्ता नहीं है। बिना इच्छा के कोई गति नहीं होती, लेकिन इच्छा कभी मुक्ति नहीं हो सकती। बस इतना है कि इस तरह की चाहत के साथ, इस तरह के काम करके, इस तरह ईंट को घिसकर आप उसे थोड़ा पतला कर सकते हैं और अचानक आपको अहसास होता है कि आपको वो नहीं मिला जो आप चाहते थे।

बिना इच्छा के बड़ी तीव्रता के साथ किसी काम को करने का मतलब है कि वह इंसान या तो पागल हो गया है या फिर किसी चीज या किसी इंसान के प्यार में बुरी तरह पड़ा हो। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वह आत्म-ज्ञानी हो। इन चीजों के अलावा कोई और रास्ता है ही नहीं। अब आप देखें कि आप इनमें से किस श्रेणी में आते हैं। आपको खुद को देखते रहना होगा। या तो आप पागल होंगे या किसी के प्यार में होंगे या आपको आत्म-ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी होगी, तभी आप यह सब कर सकते हैं, नहीं तो आप बगैर इच्छा के यह सब नहीं कर पाएंगे।

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बिना किसी जरूरत के लगातार उसी काम को करते जाने के लिए आपको इन तीन श्रेणियों में से किसी एक में होना होगा। इन तीनों चीजों को या कम-से-कम पहली दो चीजों को करने के लिए आपके भीतर एक खास किस्म का साहस होना चाहिए। किसी चीज के पीछे पागलों की तरह पडऩे के लिए एक विशेष साहस होना चाहिए। किसी के प्यार में बुरी तरह पागल होने के लिए आपके भीतर एक खास तरह की हिम्मत होनी चाहिए। आत्म-ज्ञानी होने के लिए भी साहस की जरूरत है, लेकिन वह अलग तरह का साहस होगा।

वर्तमान पल में पूरी तरह जीने का साहस
साहस अलग-अलग तरह का होता है। लोग हमेशा खुद में क्रोध या उत्साह जगाकर ही साहस का काम करने की कोशिश करते हैं। आपने युद्ध नहीं देखा होगा। न ही देखें तो अच्छा है। फिल्में तो देखी ही होंगी। फिल्मों में भी अगर कोई किसी पर हमला करता है तो वह गुस्से से तेज आवाज निकालता है, क्योंकि गुस्से या घृणा के दम पर ही लोग साहस बटोर पाते हैं। शांत रहते हुए साहस जुटा पाना पूरी तरह से एक अलग पहलू है।

जब आपका मन पूरी तरह से आपके काबू में हो, ताकि वह उन चीजों की कल्पना न करे जो मौजूद नहीं है, केवल तभी मुमकिन है कि आप बिना गुस्से और नफरत के पूरी तरह साहसी हो सकते हैं। लेकिन, चूंकि आपका मन मौजूदा चीजों के अलावा कुछ और देख ही नहीं सकता, इसलिए भय हमेशा इस बात को लेकर रहता है कि अगले पल क्या होने वाला है। अगर आपका मन अगले पल के बारे में योजनाएं नहीं बनाता, तो आपके पास साहस है। यह साहस भी नहीं है, यह तो बस निडरता है। आपने डर पैदा करना छोड़ दिया है। डर पैदा करना सिर्फ तभी बंद होता है, जब कोई इंसान खुद को वर्तमान पल में ले आता है।

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