नई दिल्ली टीम डिजिटल। आज से हिंदी कैलेंडर (hindi calander) का ज्येष्ठ महीना (jayestha month) शुरु हो गया है। तेज गर्मी (heating) के लिए बदनाम इस महीने को पाचन (digestion) की दिक्कतों के लिए भी जाना जाता है। लिहाजा इस पूरे महीने में दिन में एक ही वक्त भोजन करना चाहिए। ये हम नहीं कह रहे हैं। आपको भारतीय शास्त्रों में भी इसका उल्लेख मिल जाएगा।
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एक वक्त भोजन से मिलेगा ऐश्वर्य महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार “ज्येष्ठामूलं तु यो मासमेकभक्तेन संक्षिपेत्। ऐश्वर्यमतुलं श्रेष्ठं पुमान्स्त्री वा प्रपद्यते।।” जो एक समय ही भोजन करके ज्येष्ठ मास को बिताता है वह स्त्री हो या पुरुष, अनुपम श्रेष्ठ एश्वर्य को प्राप्त होता है। दीगर बात है कि इस्लाम में इन दिनों रोजे चल रहे हैं और दिन भर रोजे रखने के बाद एक ही वक्त खाने का नियम अपनाया जा रहा है।
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कई धर्म ग्रन्थों में मिलेगा पूजन का वर्णन जयपुर की आचार्य अरुणा दाधीच बताती हैं कि महाभारत के अलावा भी ज्येष्ठ महीने में पूजन के बारे में कई पौराणिक किताबों में लिखी हुई काम की बातें हम आपके लिए समेट कर लाए हैं।
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उपवास करके होगी त्रिविक्रम की पूजा महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 109 के अनुसार ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके जो भगवान त्रिविक्रम की पूजा करता है, वह गोमेध यज्ञ का फल पाता है।
भगवान विष्णु की पूजा के लिए पूर्णिमा का इंतजार करें ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन मूल नक्षत्र होने पर मथुरा में स्नान करके विधिवत् व्रत-उपवास करके भगवान कृष्ण की पूजा उपासना करते हुए श्री नारद पुराण सुनने से कई जन्मों के पाप से मुक्त होने का दावा किया जाता है। माया के जाल से मुक्त होकर निरंजन हो जाता है। भगवान् विष्णु के चरणों में वृत्ति रखने वाला संसार के प्रति अनासक्त होकर फलस्वरूप जीव मुक्ति को प्राप्त करता हुआ वैकुंठ वासी हो जाता है।
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विष्णुपुराण के अनुसार
यमुनासलिले स्त्रातः पुरुषो मुनिसत्तम! ज्येष्ठामूलेऽमले पक्षे द्रादश्यामुपवासकृत् ।। ६-८-३३ ।। तमभ्यर्च्च्याच्युतं संम्यङू मथुरायां समाहितः अश्वमेधस्य यज्ञस्य प्राप्तोत्यविकलं फलम् ।। ६-८-३४ ।।
यमुनासलिले स्त्रातः पुरुषो मुनिसत्तम! ज्येष्ठामूलेऽमले पक्षे द्रादश्यामुपवासकृत् ।। ६-८-३३ ।।
तमभ्यर्च्च्याच्युतं संम्यङू मथुरायां समाहितः अश्वमेधस्य यज्ञस्य प्राप्तोत्यविकलं फलम् ।। ६-८-३४ ।।
ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को मथुरापुरी में उपवास करते हुए यमुना स्नान करके समाहितचित से श्रीअच्युत का भलीप्रकार पूजन करने से मनुष्य को अश्वमेध-यज्ञ का सम्पूर्ण फल मिलता है।
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