इस समय जबकि पूर्वी लद्दाख (Ladakh) में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच तनाव शिखर पर है, 16 सितम्बर को लोकसभा (Lok Sabha) में विदेश राज्यमंत्री श्री वी. मुरलीधरण ने एक लिखित प्रश्र के उत्तर में बताया कि ‘‘चीन तथा पांच अन्य पड़ोसी देशों नेपाल, बंगलादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान और म्यांमार के साथ भारत के संबंध बदतर नहीं हुए हैं।’’ उन्होंने कहा कि ‘‘भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ शिक्षा, संस्कृति, व्यापार और निवेश के मामले में अच्छे संबंध हैं तथा सरकार अपने पड़ोसियों से संबंधों को अधिकतम अधिमान देती है।’’ उनका यह कहना सही है पर इसका यह अर्थ नहीं कि ये देश भी हमारे प्रति ऐसा ही दृष्टिïकोण रखते हैं।
पहला उदाहरण चीन का है जिसके नेताओं के साथ विभिन्न स्तरों पर वार्ताओं के बावजूद सीमा पर टकराव अभी जारी है। गत 15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के खूनी टकराव में भारत के 20 जवान शहीद व अनेक घायल हुए और चीन के भी 60 सैनिक मारे गए थे। इसके अलावा पिछले 20 दिनों में चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तीन बार गोलीबारी कर चुके हैं। पहले 29-31 अगस्त के बीच चीनी सैनिकों ने दक्षिणी पैंगोंग की ऊंचाई वाली चोटी पर कब्जा करने की नाकाम कोशिश की और फिर 7 सितम्बर तथा 8 सितम्बर को पैंगोंग झील के उत्तरी छोर पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच गोलीबारी हुई।
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चीन की बदनीयती का एक सबूत देते हुए 14 सितम्बर को भारत के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि ‘‘लम्बे समय तक सीमा पर टिके रहने की अपनी साजिश के अंतर्गत चीन अपना सूचना तंत्र मजबूत करने के लिए पैंगोंग झील के निकट फाइबर ऑप्टिकल केबल बिछा रहा है तथा उसने वास्तविक नियंत्रण रेखा और आंतरिक क्षेत्रों में भारी मात्रा में गोला बारूद इकट्ठा करने के अलावा बड़ी संख्या में सैनिक तैनात कर दिए हैं।’’ चीन अब अरुणाचल के साथ लगते इलाकों में भी अपनी नापाक करतूतों में जुट गया है और वहां अपने जवानों की तैनाती बढ़ा रहा है।
सीमा पर जारी गतिरोध सुलझाने के लिए 5 सूत्रीय योजना पर दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की सहमति के बावजूद पूर्वी लद्दाख के गतिरोध वाले बिंदुओं पर स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसी को देखते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 15 सितम्बर को चीन को चेतावनी दी है कि भारत अपनी सम्प्रभुता और अखंडता की रक्षा करने की खातिर हर परिस्थिति के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘दोनों देशों के बीच 1993 और 1996 में हुए समझौतों में वास्तविक नियंत्रण रेखा को मान्यता देने तथा वहां न्यूनतम सेना रखने पर सहमति के बावजूद चीन वहां सेना बढ़ा कर इसका उल्लंघन कर रहा है तथा 15 जून को गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं में खूनी टकराव की स्थिति भी चीन ने ही पैदा की थी।’’
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नेपाल के साथ भी भारत के संबंधों में लम्बे समय से तनातनी चली आ रही है। नेपाल सरकार न सिर्फ भारत सरकार द्वारा उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे तक भारत द्वारा सड़क बिछाने पर आपत्ति जता चुकी है बल्कि नेपाल सरकार ने ङ्क्षलपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी पर अपना दावा जताया है और उन्हें नेपाल के नए नक्शे में शामिल भी कर लिया है। नेपाल सरकार ने लिपुलेख क्षेत्र में सेना तैनात करके अपने सैनिकों को भारतीय सैनिकों पर पैनी नजर रखने के निर्देश भी दिए हैं। उसने भारतीय सीमा से मात्र 12 कि.मी. दूर 3 हैलीपैड भी बना दिए हैं और वहां नेपाली सेना के लिए स्थायी बैरक और हथियार रखने के लिए बंकर भी बनाने जा रहा है जो सुरक्षा की दृष्टिï से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
हालांकि मंत्री महोदय ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है परंतु यह बात सर्वविदित ही है कि पाकिस्तान के साथ भी हमारे संबंध किसी भी दृष्टि से सामान्य नहीं हैं तथा वह इस वर्ष 1 जनवरी से 7 सितम्बर के बीच जम्मू क्षेत्र में 3186 बार युद्ध विराम का उल्लंघन कर चुका है। पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों की घुसपैठ करवाने के लिए सुरंगों का सहारा लेने के अलावा ड्रोन के जरिए भी हथियार गिराए जा रहे हैं तथा पाकिस्तान से भारत में हथियारों की तस्करी में भी भारी वृद्धि हुई है। उक्त तथ्यों को देखते हुए विदेश राज्यमंत्री श्री मुरलीधरण का यह कहना सही नहीं लगता कि चीन से हमारे संबंध बदतर नहीं हैं। इसी कारण हम लिखते रहते हैं कि हमारे नेताओं को बयान तथ्यों की पड़ताल करके ही देने चाहिएं।
‘यह है भारत देश हमारा’
चीन ही नहीं बल्कि कम से कम दो अन्य पड़ोसी देशों नेपाल और पाकिस्तान के साथ भी हमारे संबंध सुखद नहीं हैं जिस कारण हमें सतत सजग रहने की आवश्यकता है। इसके साथ ही हमें उक्त पड़ोसी देशों से सम्बन्ध सुधारने के लिए कड़े प्रयास करने की भी जरूरत है, हालांकि यह काम आसान नहीं होगा क्योंकि चीन ने विश्व के अधिकांश देशों को किसी न किसी रूप में मदद देकर या उन पर एहसान करके उन्हें अपने प्रभाव में ले रखा है।
—विजय कुमार
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