कुछ वर्षों से देश में जिस प्रकार के हालात बने हुए हैं उन्हें देखते हुए अनेक लोगों का कहना है कि शनि देव इस समय भारत को टेढ़ी नजर से देख रहे हैं और लगातार प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं से हो रही भारी प्राण हानि से लगता है कि देश साढ़ेसाती के प्रभाव में आया हुआ है। एक ओर ‘कोरोना वायरस’ के प्रकोप सेभारत में अभी तक लगभग 18,00 लोग मर चुके हैं तो दूसरी ओर इंसानी लापरवाही से मौतें हो रही हैं।
इसका ज्वलंत उदाहरण 7 मई को तड़के अढ़ाई से तीन बजे के बीच मिला जब विशाखापत्तनम में दक्षिण कोरिया की कम्पनी ‘एलजी पोलिमर्स’ के प्लांट में ‘स्टाइरिन’ नामक बेहद खतरनाक गैस के रिसाव से कम से कम 11 लोगों की दम घुटने से मौत हो गई तथा लगभग 1000 लोगों को इलाज के लिए विभिन्न अस्पतालों में भर्ती करवाना पड़ा। इनमें से कम से कम 20-25 लोग वैंटीलेटर पर हैं, जिनकी हालत अत्यंत नाजुक है।
गैस की तीव्रता इतनी अधिक थी कि गैस फैक्टरी की चिमनी के रास्ते आसपास के कई किलोमीटर इलाके में फैल कर 20 गांवों तक पहुंच गया। लोगों को इसके दुष्प्रभाव से बचाने के लिए आसपास के 6 गांवों को खाली करवा लिया गया और 10,000 लोगों को वहां से निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।
गैस की तीखी गंध से घबरा कर छतों पर सोए हुए लोगों ने कमरों में घुस कर दरवाजे बंद कर लिए परंतु घुटन कम नहीं हुई। अनेक लोग जान बचाने के लिए दौडऩे के प्रयास में बेहोश होकर सड़कों पर ही गिर पड़े तथा उनके पैरों से चप्पलें आदि निकल कर इधर-उधर बिखर गईं।
मकानों के भीतर गैस के प्रभाव से बेहोश होकर पड़े संभावित लोगों का पता लगाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा बलों की टीमें दरवाजे तोड़ कर भीतर दाखिल हुईं। गैस का असर इतना अधिक था कि लोग घरों के भीतर ही नींद में पड़े-पड़े बेहोश हो गए जिनमें अधिकांश बच्चे और बूढ़े हैं क्योंकि यह गैस बच्चों और बूढ़ों के लिए अत्यंत घातक बताई जाती है। कुछ लोगों की सांस इतनी ज्यादा फूलने लगी कि मौत उनकी आंखों के सामने नाचने लगी। लोगों को खांसी, दम घुटने, त्वचा और आंखों में जलन, उल्टी व चक्कर जैसी तकलीफें शुरू हो गईं।
‘स्टाइरिन गैस’ फेफड़ों के लिए घातक होने के अलावा सीधे मस्तिष्क की स्नायु प्रणाली पर हमला करती है जिसके शरीर पर पड़ऩे वाले प्रभाव का पता कुछ दिनों के बाद चलता है। यहां तक कि इसके दुष्प्रभाव से कैंसर जैसा जानलेवा रोग होने की भी आशंका भी जताई जा रही है। अत: इससे मृतकों या प्रभावित होने वालों की संख्या काफी बढ़ भी सकती है।
इस प्लांट में लॉकडाऊन के बावजूद 2000 के लगभग कर्मचारी मौजूद थे। प्रथम दृष्टया यह घटना कम्पनी प्रबंधन और विशाखापट्टनम के प्रशासन की लापरवाही का ही परिणाम प्रतीत होती है। गैस रिसाव होने की चेतावनी देने वाला हूटर भी नहीं बजा और न ही कम्पनी की ओर से यहां कोई ‘आपदा प्रबंधन प्लान’ लागू किया गया था और स्थानीय प्रशासन ने भी प्लांट में कम्पनी द्वारा सुरक्षा मानकों की अवहेलना की ओर से आंखें मूंदे रखी थीं।
यह घटना 35 वर्ष पूर्व 1984 में भोपाल स्थित बहुराष्ट्रीय कम्पनी ‘यूनिअन कार्बाइड’ की गैस त्रासदी से काफी हद तक मेल खाती है। वह त्रासदी भी मध्य रात्रि को ही हुई थी और उसमें सरकारी तौर पर लगभग 4,000 तथा गैर-सरकारी तौर पर 15,274 लोग मारे गए और हजारों लोग सदा के लिए बीमार हो गए थे जो अभी तक न्याय और क्षतिपूॢत के लिए भटक रहे हैं।
विशाखापत्तनम त्रासदी भी मध्य रात्रि के आसपास ही हुई है और दोनों ही मामलों में कम्पनियों के प्रबंधन द्वारा सुरक्षा मानकों का पालन न करने के आरोप सामने आए हैं। बहरहाल अभी यह लेख लिखा ही जा रहा था कि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में एक कागज मिल में टैंक की सफाई के दौरान विषैली गैस के रिसाव से 7 मजदूर घायल हो गए जिनमें से 3 की हालत गम्भीर बताई जाती है।
ये सब घटनाएं सुरक्षा नियमों का पलन न करने की ओर ही इशारा करती हैं। अत: अब आवश्यकता इस बात की है कि देश में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कठोर निगरानी प्रणाली कायम की जाए। जरूरत इस बात की भी है कि इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्दी से जल्दी दंड और पीड़ितों को न्याय दिया जाए।
-विजय कुमार
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