वीरवार को कम्युनिस्ट पार्टी सी.पी.सी. (आज चाइना) ने धूमधाम के साथ अपने शताब्दी वर्ष की शुरूआत की। 1921 में शंघाई के एक मामूली टाऊन हाऊस में 12 लोगों द्वारा स्थापित पार्टी ने एक क्रांति का नेतृत्व किया जिसने अंतत: 1949 में ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (पी.आर.सी.) की स्थापना की। कुछ वर्षगांठें अतीत की सफलताएं मनाने के लिए होती हैं परंतु सी.पी.सी. की यह वर्षगांठ निश्चित रूप से भविष्य पर केंद्रित है जो पार्टी के नेता और अध्यक्ष शी जिनपिंग के भविष्य के इरादों को दर्शाती है। शी जिनपिंग अब अपने पूरे जीवनकाल तक सत्ता में बने रहेंगे।
इसके बाद का घटनाक्रम इतिहास बन चुका है। क्या पार्टी 100 वर्ष की होने पर पुरानी हो चुकी है या अभी भी इसमें जान बाकी है, इस महत्वपूर्ण प्रश्न के उत्तर पर चीन का ही नहीं बल्कि वास्तव में विश्व का भविष्य भी टिका है। वास्तव में यह कहना उचित होगा कि पार्टी के जन्मदिन पर दशकों में पहली बार एक अलग चीन को दिखाया जा रहा है। चीन अब एक ही व्यक्ति की नीतियों और इरादों पर चल रहा है और वह हैं देश के राष्ट्रपति शी जिनपिंग।
सी.पी.सी. अपने 100वें वर्ष में राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर उतनी ही निर्भर है जितनी वह अपने संस्थापक नेता और मुख्य विचारक ‘चेयरमैन’ माओ त्से तुंग पर थी, जिन्होंने 1921 में इसके गठन के बाद से 1976 में अपने निधन तक पार्टी पर पकड़ बनाए रखी थी।
पार्टी और चीन की राजनीतिक व्यवस्था के बारे में दुनिया भर में कितनी भी आलोचना क्यों न होती हो, यह कहना मुश्किल है कि पार्टी सफल नहीं हुई है। 1949 में चीन एक गरीब तथा आंशिक रूप से एक उपनिवेशक देश था जिसके नागरिकों की औसत आयु 41 वर्ष थी।
आज दुनिया के शक्तिशाली जी-7 राष्ट्र चीन को एक गम्भीर चुनौती और प्रतियोगी के रूप में देखते हैं। सबसे बड़ी बात है कि पार्टी ने यह बेजोड़ उपलब्धि 1.4 अरब लोगों की जनसंख्या के बावजूद हासिल की है।
पार्टी को इतने लम्बे समय तक दुनिया में आगे रखने वाली दो स्थायी विशेषताएं हैं। पहली ‘खुद को पहचानना’ और दूसरी ‘बदलना’। यदि पहला लक्ष्य है तो दूसरा उस तक पहुंचने का साधन।
पहली विशेषता तब सामने आई जब पार्टी ने 1949 में खुद को एक क्रांतिकारी लड़ाकू बल से एक प्रशासनिक संस्था में बदला। दूसरा चीन के क्रांतिकारी और राजनेता देंग शियाओपिंग के सुधार थे जिन्होंने दूरगामी बाजार-अर्थव्यवस्था सुधारों की एक शृंखला के माध्यम से चीन का नेतृत्व किया जिससे उन्हें आधुनिक चीन के वास्तुकाल के रूप में प्रतिष्ठा मिली। उन्होंने चीन के लिए ‘ओपन डोर पॉलिसी’ तय की। इस बदलाव ने ही पार्टी को सोवियत संघ की तरह टूटने से बचने में मदद की।
हालांकि चीन की सारी आॢथक प्रगति और उपलब्धियां देंग शियाओपिंग के कार्यकाल में हुई थीं और उनकी खुली आर्थिक व्यवस्था ने चीन को वह बनाया जो वह आज है। मगर इसके बावजूद वर्षगांठ पर देंग शियाओपिंग की बात कोई नहीं कर रहा।
शताब्दी समारोहों में सिर्फ झंडा फहराने और आतिशबाजी करना ही सब नहीं बल्कि देश और विदेश के लोगों को यह दिखाना भी है कि शी जिनपिंग ही चीन के बेताज बादशाह हैं और चीन की सारी राजनीति जिनपिंग के इर्द-गिर्द घूमती है। न केवल शी जिनपिंग के भड़काऊ भाषण जगह-जगह सुनने में आ रहे हैं बल्कि हांगकांग की आजादी के ताबूत पर आखिरी कील ठोंकना और ताइवान की आजादी छिनने की ओर कदम बढ़ाने जैसी भी शी की कुछ नीतियां हैं।
गत 5 से 10 वर्षों के दौरान एक और नया बदलाव हो रहा है जो पार्टी के सामने अवसर और चुनौतियां दोनों रख रहा है। 2019 में पार्टी के 80 प्रतिशत नए सदस्य 35 वर्ष से कम आयु के थे। बेशक दुनिया भर के लिए यह आश्चर्य की बात हो परंतु कम्युनिस्ट पार्टी जानती है कि चीनी युवा ही उसके सबसे बड़े समर्थक बन सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय में पार्टी अब खुद को एक नया रूप देने की महत्वपूर्ण परियोजना में जुट चुकी है, जिसका आधार वह देश के युवाओं को बनाना चाहती है।
ये बातें इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि चीन इन चुनौतियों से किस तरह निपटता है और उसकी भविष्य के लिए रणनीति क्या रुख लेती है, इसका असर उसके पड़ोसियों और दुनिया भर पर होना तय है।
शताब्दी समारोह के जश्र के दौरान माओ जैसे कपड़े पहन कर आए शी जिनपिंग ने यहां तक कह दिया, ‘‘हमें धमकाने या हमारा विरोध करने की कोशिश करने वाली विदेशी ताकतों का सिर महान दीवार से टकरा कर कुचल दिया जाएगा। चीन के लोग न सिर्फ पुरानी दुनिया को खत्म करना जानते हैं बल्कि उन्होंने एक नई दुनिया भी बनाई है।’’
अमरीका के विदेश विभाग के प्रवक्ता नीड प्राइस ने कहा है कि‘‘अमरीका ने शी जिनपिंग की टिप्पणी का नोटिस लिया है लेकिन हम इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे।’’
भारत की सीमाओं पर आक्रामकता से सेनाओं का जमावड़ा करना, अफगानिस्तान में अपना वर्चस्व बढ़ाना, ये दोनों बातें निश्चित रूप से यह दर्शाती हैं कि शी जिनपिंग देश में अपने विरोधियों को जेलों में डालते हुए देश का ध्यान बाहर की आक्रामक नीतियों पर केंद्रित करना चाहते हैं।
कुल मिला कर शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी की 100वीं वर्षगांठ के बहाने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं जिस पर विश्व समुदाय को सोचने की जरूरत है।
- विजय कुमार
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