नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। यूथ-आइकन और बॉलीवुड स्टार आयुष्मान खुराना (ayushmann khurrana) सही मायने में एक थॉट-लीडर हैं, जो अपनी प्रोग्रेसिव और सोशल मैसेज वाली एंटरटेनिंग फिल्मों के जरिए समाज में रचनात्मक, सकारात्मक बदलाव लाने का इरादा रखते हैं। टाइम मैगजीन ने आयुष्मान को दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक माना है, और हाल ही में यूनिसेफ ने उन्हें अपने ग्लोबल कैंपेन, EVAC (बच्चों के खिलाफ हिंसा का अंत) का सेलिब्रिटी एडवोकेट बनाया है।
आज सेफर इंटरनेट डे के मौके पर, आयुष्मान और यूनिसेफ फिर से साथ मिलकर लोगों के बीच इस बारे में जागरूकता फैला रहे हैं कि, कैसे एजुकेशन के जरिए बच्चों को इंटरनेट का सही तरीके से फायदा उठाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
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आयुष्मान ने बच्चों की सुरक्षा के लिए कही ये बात डफ एंड फेल्प्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, आयुष्मान आज के दौर में इंटरनेट पर सबसे तेजी से लोकप्रियता पाने वाले बॉलीवुड स्टार हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 की तुलना में सोशल मीडिया पर उनकी फॉलोइंग में 70 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। आयुष्मान कहते हैं, 'ऑनलाइन वर्ल्ड बच्चों को कुछ नया सीखने और अपने आइडियाज को दूसरों के साथ शेयर करने का मौका देता है। इस बार सेफर इंटरनेट डे के मौके पर, आइए हम सभी साथ मिलकर बच्चों को, खास तौर पर लड़कियों का हौसला बढ़ाएं ताकि वे इंटरनेट को सही तरीके से एक्सप्लोर कर सकें और अपने उज्जवल भविष्य के लिए अपने अरमानों और सपनों को पूरा कर सकें।'
वे कहते हैं, “इंटरनेट हम सभी को जो अपॉर्चुनिटी प्रदान करता है उसकी कोई सीमा नहीं है। बच्चे इसकी मदद से ज्यादा-से-ज्यादा बातें सीख सकते हैं और अपने आइडियाज को पूरी दुनिया के साथ शेयर कर सकते हैं। बच्चों के दिमाग की तरह इंटरनेट भी तरह-तरह के आइडिया और इमेजिनेशन का खजाना है। इसमें कई खतरे भी हैं, लेकिन एजुकेशन के जरिए हम बच्चों को एम्पावर बना सकते हैं। इस बार सेफ़र इंटरनेट डे के मौके पर, आइए हम ऑनलाइन वायलेंस को खत्म करने की दिशा में काम करें और ऑनलाइन वर्ल्ड को हर बच्चे के लिए सुरक्षित बनाएं।'
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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (2018) के अनुसार, भारत में हर घंटे चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज के 5 मामले सामने आते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- 4 के आंकड़ों से पता चलता है कि 5 में से 1 किशोर लड़की को 15 साल की उम्र से फिजिकल वायलेंस का सामना करना पड़ता है; जबकि स्कूल जाने वाले 99% स्कूली बच्चे अपने शिक्षकों द्वारा फिजिकल और मेंटल एब्यूज के शिकार होते हैं (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, 2012 के अनुसार)। यहां सिर्फ रिपोर्ट किए गए आंकड़े दिए गए हैं।
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