नई दिल्ली,टीम डिजिटल। पिछले कुछ दशकों में महिलाएं न सिर्फ निर्देशन, फिल्म निर्माण, लेखन और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के तकनीकी क्षेत्रों पर अपनी छाप छोड़ रही हैं बल्कि कहानियों की दिशा जिसे अब तक पुरुष निर्धारित करते थे, को भी बदल रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, मिलिए पांच ऐसी शक्तिशाली महिलाओं से जिन्होंने मौलिकता से कुछ नया करने और कहने का साहस दिखाया है।
शैलजा केजरीवाल:
शैलजा केजरीवाल , चीफ क्रिएटिव ऑफिसर- स्पेशल प्रोजेक्ट्स, ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड , एक अग्रणी शख्सियत हैं, जो न केवल संस्कृति की विविध धाराओं को उजागर करने का प्रयास करती हैं बल्कि #RiseofWomeninTheatre की जीती जागती मिसाल हैं। चाहे बात जिंदगी चैनल की हो, सीमा पार की कहानियों को भारतीय दर्शकों तक पहुँचाना हो, या ज़ी थिएटर की रचना करना हो जहां आज भारतीय रंगमंच की सभी विधाएँ और सुनहरी प्रतिभाएं सुरक्षित हैं, शैलजा ने अथक रूप से यही दिखाने का प्रयास किया है कि किस तरह सामूहिक मनोरंजन और अधिक सार्थक और समृद्ध हो सकता है। ज़ी थिएटर ने न केवल भावी पीढ़ियों के लिए भारतीय और वैश्विक रंगमंच की समृद्धि को संरक्षित रखा है, बल्कि 'द साउंड ऑफ़ म्यूज़िक लाइव!', 'हेयरस्प्रे लाइव!', 'पीटर पैन लाइव!' जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगीत ब्लॉकबस्टर भी पहेली बार भारत में प्रसारित किए हैं। 'शट अप सोना' जैसे पुरस्कृत वृत्तचित्रों को दिखाने के साथ साथ उन्होंने 'गुनेहगार', 'षड़यंत्र', 'ये शादी नहीं हो सकती' जैसे मूल नाटकों का निर्माण भी किया है। साथ ही 'चुडैलस' , 'कातिल हसीनों के नाम', जैसे शानदार शो बना कर , शैलजा ने महिलाओं और उनकी कहानियों पर ध्यान केंद्रित करने के भरपूर चेष्टा की है ।
अलंकृता श्रीवास्तव:
अलंकृता श्रीवास्तव का काम दर्शाता है की एक महिला द्वारा सुनाई गई कहानियों में कितनी शक्ति होती है। उनकी 2017 की फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' ने विभिन्न आयु और सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं को चित्रित किया और दिखाया कि महिलाओं का उत्पीड़न सार्वभौमिक है और कई रूप लेता है। इस फिल्म को अब तक की सबसे महत्वपूर्ण नारीवादी कहानियों में से एक माना गया है और इसने 80 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों की यात्रा की और 18 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। अपनी तीसरी फिल्म 'डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे', वेब-शो 'बॉम्बे बेगम' और 2019 की 'मेड इन हेवन' में भी उन्होंने महिला पात्रों की इच्छाओं, अपराधबोध, महत्वाकांक्षाओं जैसे विषयों कुछ इस तरह से चित्रित किया जो पहले कभी नहीं देखा गया था।
गौरी शिंदे:
इंग्लिश विंग्लिश' और 'डियर जिंदगी' जैसी गहरी फिल्मों में गौरी शिंदे की संवेदनशील, सहानुभूतिपूर्ण निगाहें महिलाओं की कमजोरियों और अव्यक्त भावनाओं को दर्शाती हैं। 'इंग्लिश विंग्लिश' ने श्रीदेवी जैसी बड़ी सुपरस्टार को एक कम आत्मविश्वास वाली गृहिणी के रूप में पेश किया और 'डियर जिंदगी' में आलिआ भट्ट को एक ऐसी युवा लड़की के रूप में दिखाया जिसके अंदर बहुत सा रोष और कुंठाएं हैं. इस फिल्म ने आत्म-प्रेम और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बहुत जरूरी टिप्पणियां कीं। गौरी एक विज्ञापन फिल्म निर्माता के रूप में भी लैंगिक सवालों से जुड़ी रहीं और 2004 में, उन्होंने 'वाई नॉट?' बनाई, जो एक लघु फिल्म थी, और जिसने देश में पुत्र प्राप्ति की तीव्र इच्छा पर सवाल खड़े किये. उन्होंने एरियल इंडिया के साथ 'शेयर द लोड' अभियान और व्हाट्सएप इंडिया के लिए 'इट्स बिटवीन यू' जैसे कैंपेन भी बनाये।
जोया अख्तर:
अपनी पहली ही फिल्म 'लक बाय चांस' (2009) से, ज़ोया अख्तर ने खुद को एक अलग शैली की अद्वितीय निर्देशिका के रूप में स्थापित किया। 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' (2011) और दिल धड़कने दो (2015) के साथ, वह उन निर्माताओं की श्रेणी में शामिल हो गईं, जिन्हें समीक्षकों द्वारा सराहा भी गया और दर्शकों ने भी भरपूर प्यार दिया। 2015 में, उन्होंने रीमा कागती के साथ टाइगर बेबी फिल्म्स की स्थापना की, और वेब श्रृंखला, 'मेड इन हेवन' और 'गली बॉय' की सफलता के साथ अपनी बहुमुखी प्रतिभा को रेखांकित किया। एक प्रमुख निर्देशिका और निर्मात्री के रूप में, आज पुरुष-प्रभुत्व वाले व्यवसाय में उनका एक अलग मुकाम है और वे न केवल असामान्य कहानियों के लिए जगह बना रही हैं, बल्कि ऐसी महिला पात्रों को दर्शा रही हैं जिनमें गरिमा है, शक्ति है और जो न केवल पितृसत्ता का मुकाबला करती हैं बल्कि जीतती भी हैं।
गुनीत मोंगा:
सिख्या एंटरटेनमेंट की संस्थापिका के रूप में, गुनीत मोंगा ने सफलता की हर चोटी को अकेले ही माप लिया है। शेवेलियर डैन्स ल'ऑर्ड्रे डेस आर्ट्स एट डेस लेट्रेस पुरस्कार की इस विजेता ने अकादमी पुरस्कार भी जीता है वृत्तचित्र 'पीरियड- एंड ऑफ सेंटेंस' के लिए। और अब उनका वृत्तचित्र 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स', एक और अकादमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है। जहाँ तक फिल्मों की बात है तो उन्होंने बाफ्टा नामांकित, 'द लंचबॉक्स' और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' - भाग 1, 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' - भाग 2, 'मसान', 'जुबान' और 'पगलेट' जैसी लीक से हटकर बनाई गयी फिल्मों में भी बड़ा योगदान दिया है । 2018 में, उन्हें एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज में शामिल किया गया था और हॉलीवुड रिपोर्टर द्वारा वैश्विक मनोरंजन उद्योग में शीर्ष 12 महिलाओं में से एक के रूप में चुना गया था।
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