Tuesday, Jun 06, 2023
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हाशिये के हिंदुस्तान का केंद्रीय चेहरा थे ओम

  • Updated on 1/7/2017

Navodayatimes
नई दिल्ली(रीतेश रंजन) :ओम पुरी के साथ सुपर स्टार, मेगा स्टार या ऐसी ही कोई उपाधि या उपनाम तो नहीं जुड़ा था, लेकिन भारतीय सिनेमा और सिनेप्रेमियों के मन में उनके लिए जो स्थान है वह किसी अन्य संबोधन का मोहताज भी नहीं। ओम बड़े कलाकार थे, सच्चे कलाकार थे। नायक-नायिका के रूमानी अफसानों और कभी-कभी सामाजिक समस्याओं को छूकर निकल जाने वाली फिल्मों के चलन के बीच ओमुपरी जैसे अत्यंत ही साधारण या सामान्य नाक-नक्श वाले अभिनेता की स्वीकार्यता और प्रशंसा फिल्मों की लेकर बदलती दिशा और दर्शकों के गंभीर जुड़ाव का द्योतक थी। फिर अपनी मेहनत और शत्-प्रतिशत से कम पर समझौता नहीं करने की जिद ने ओम को हाशिये के हिंदुस्तान का केंद्रीय चेहरा बना दिया।

मनोरंजन के साथ-साथ फिल्में काफी पहले से समाज के हर अक्स का आईना बनने की कोशिश करती रही हैं। सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन जैसे फिल्मकार नए शिल्प के साथ सामाजिक यथार्थ को गढ़ते रहे थे। क्षेत्रीय भाषाओं में भी नए प्रतिमान स्थापित हो रहे थे, लेकिन मुख्यधारा का सिनेमा व्यावसायिक उद्देश्यों के साथ केवल मनोरंजन पर केंद्रित होता जा रहा था। फिर, श्याम बेनेगल और पहलाज निहलानी जैसे फिल्मकारों ने अस्सी के दशक में हिन्दी सिनेमा सीधी पटरी के आसान सफर से सच्चाई की कठोर जमीन पर उतारना शुरू किया। यही वह वक्त था जब ओम पुरी फिल्मों में अपनी पहचान बनाने के लिए कोशिश कर रहे थे। फिल्में अब सामाजिक विसंगतियों एवं व्यवस्था के विद्रूप को उसके पूरे नंगेपन में उजागर कर रही थी और साथ ही उनकी आंखों में आंखें डालकर चुनौती भी दे रही थी।

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इसके बाद तो हर फिल्म के साथ नए प्रतिमान गढ़े जाने लगे, नए कथ्य और शिल्प के साथ बेमिसाल चरित्रों से दर्शकों का परिचय हुआ। ओम पुरी ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत मराठी नाटक पर आधारित फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की थी। लेकिन जिस फिल्म ने उन्हें पहचान दिलाई वह थी 1980 में आई ‘आक्रोश’। मजदूर लाहन्यिा भीखू के इस किरदार में ओम ऐसे घुलमिल गए कि कोई भी चरित्र एवं अभिनेता को अलग करके देख ही नहीं सकता। लाहन्यिा के रूप में उनकी आवाज सिर्फ दो बार फिल्म में है, लेकिन उनके मौन का आक्रोश लोगों के दिल में उतर गया।

‘विजेता’ (1982), ‘आरोहण’ (1982), ‘अर्धसत्य’ (1983), ‘नासूर ’(1985), ‘माचिस’ (1996) के साथ प्रशंसा और पुरस्कारों की झड़ी लग गई। ओम पुरी ने जिस तरह की फिल्म की वैसे ही चरित्र को सिनेमा के पर्दे पर उतार दिया। व्यावसायिक फिल्मों में भी अपने अभिनय और दमदार आवाज की बदौलत नई ऊंचाइयों को छुआ। नरसिम्हा (1991) में ‘बाप जी’ के किरदार को कौन भूल सकता है। कॉमेडी में ओम पुरी का जलवा अलग ही निखार पाता था। जाने भी दो यारों जैसी चर्चित फिल्म का बिल्डर अहूजा हो या चाची 420 का बनवारी लाल पांडेय, मालामाल वीकली का बल्लू या हेराफेरी का खडग़ सिंह, हर भूमिका में ओम पुरी की भूमिका अलग और यादगार रही।

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ओम पुरी एक तरह के चरित्र में भी अलग अभिनय करने का माद्दा रखते थे। उन्होंने कई फिल्मों में पुलिस अधिकारी की भूमिका की, लेकिन अर्धसत्य का पुलिस अधिकारी, देव, द्रोहकाल, गुप्त, प्यार तो होना ही था, और फर्ज का अधिकारी कभी एक जैसा नहीं लगा। रेखाएं खींचकर भविष्यवाणी करने वाला मकबूल का इंस्पेक्टर पंडित तो अलग ही ऊंचाई का चरित्र था। उन्होंने गांधी, ज्वैल इन द क्राउन, सिटी ऑफ जॉय, माई सन द फैनेटिक जैसी अंग्रेजी फिल्मों में काम किया। 1999 में फिल्म ईस्ट इज ईस्ट में एक पाकिस्तानी के किरदार में खूब वाहवाही बटोरी। उन्होंने पाकिस्तानी फिल्म में भी काम किया था। उन चंद कलाकारों में से थे जिन्हें भारत और ब्रिटेन दोनों सरकारों के उच्च पुरस्कार मिले। 1990 में उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्म श्री मिला तो 2004 में ब्रिटिश फिल्मों में योगदान के लिए ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर से नवाजा गया। कई फिल्म फेस्टिवलों में भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार उन्हें मिला।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ओम पुरी अभिनय का स्कूल थे। उन्होंने कई पीढिय़ों के साथ काम किया और उन्हें अभिनय की बारीकियां सिखाई। ओम पुरी का फिल्म इंडस्ट्री में कोई गॉडफादर नहीं था, लेकिन अपनी प्रतिभा और मेहनत की बदौलत एक-एक सीढ़ी चढ़कर उन्होंने अपना अलग मुकाम हासिल किया था। कभी तंगहाली में ढाबे पर नौकरी करने वाले ओम को जीवन ने भी काफी पहाड़े सिखाए थे और यही कारण था कि निजी जीवन में भी वह सही को सही या गलत को गलत कहने का साहस रखते थे। देश और समाज के बारे में आज भी कई स्टार बोलने से हिचकते हैं, वहीं ओम पुरी ने हर अवसर पर वही किया जो सही समझा, पूरी बेबाकी से वही कहा जिसे सही माना। वे अपने विचारों में जितने दृढ़ और पैने थे, दैनिक जीवन में उतने ही मिलनसार और हंसोड़। वे आज हमें छोड़कर चले जरूर गए हैं, लेकिन महान कलाकार के साथ संपूर्ण इंसान के रूप में हमेशा याद किए जाते रहेंगे।

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नहीं रहे ओम पुरी

हर किरदार में ढल जाने के हुनर के बूते भारतीय सिनेमा के कई स्थापित मानकों को तोड़कर अदाकारी की नई इबारत लिखने वाले जाने-माने अभिनेता ओम पुरी का शुक्रवार को दिल का दौरा पडऩे से निधन हो गया। वह 66 साल के थे। उनके परिवार में उनकी परित्यक्त पत्नी नंदिता और बेटा इशान हैं। नंदिता ने बताया कि शुक्रवार सुबह 6-6.30 बजे के बीच उनका निधन हुआ। वह रसोई में फर्श पर गिरे मिले। शाम लगभग 7 बजे ओशीवारा श्मशानघाट में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। 

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