नई दिल्ली/टीम डिजिटल। साहिर लुधियानवी यानी की लेखन के 'जादूगर' का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था। जिंदगी के उतार चढ़ाव और प्यार भरे लम्हों को अपनी शायरी और गानों में उतारने वाले साहिर 25 अक्टूबर, 1980 को दुनिया से अलविदा कह गए थे। साहिर बहुत ही रईस खानदान से ताल्लुक रखते थे।
लाहौर से वे दिल्ली चले आए और कुछ समय यहां गुजारने के बाद वे मुंबई जा बसे। 'आजादी की राह पर (1949)' के लिए उन्होंने पहली बार गीत लिखे। लेकिन 'नौजवान' के गीतों से उन्हें पहचान मिली। साहिर ने गुरुदत्त की 'प्यासा' के लिए भी गीत लिखे और ये गीत सुपरहिट रहे। इसके अलावा 'साधनी', 'बाजी' और 'फिर सुबह होगी' जैसी फिल्मों में भी उनका जादू चला। आइए उनसे जुड़े कुछ किस्से सुनाते हैं-
अमृता प्रीतम को सिगरेट की नहीं, साहिर लुधियानवी की लत थी
साहिर की वजह से अमृता को लग गई थी सिगरेट की लत
अमृता प्रीतम साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत करती थीं । उनकी साहिर से पहली मुलाकात साल 1944 में हुई थी। वह एक मुशायरे में शिरकत कर रही थीं और वहीं उनकी मुलाकात साहिर से हुई। वहां से लौटने पर बारिश हो रही थी।
अपनी जीवनी 'रसीदी टिकट' में अमृता एक दौर का जिक्र करते हुए बताती हैं कि किस तरह साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे और लगातार सिगरेट पिया करते थे। अमृता को साहिर की लत थी। साहिर का चले जाना उन्हें नाकाबिल-ए-बर्दाश्त था। अमृता का प्रेम साहिर के लिए इस कदर परवान चढ़ चुका था कि उनके जाने के बाद वह साहिर के पिए हुए सिगरेट की बटों को जमा करती थीं और उन्हें एक के बाद एक अपने होटो से लगाकर साहिर को महसूस किया करती थीं। ये वो आदत थी जिसने अमृता को सिगरेट की लत लगा दी थी।
अमृता ही नहीं साहिर भी उनके इस कदर दीवाने थे
सिर्फ अमृता ही उनकी सिगरेट नहीं संभलाती थी बल्कि साहिर भी उनकी चाय की प्याली संभाल कर रखते थे। एक बार की बात है साहिर से मिलने कोई कवि या मशहूर शायर आए हुए थे। उन्होंने देखा साहिर की टेबल पर एक कप रखा है जो गंदा पड़ गया है। उन्होंने साहिर से कहा कि आप ने ये क्यों रख रखा है? और इतना कहते हुए उन्होंने कप को उठा कर डस्टबीन में डालने के लिए हाथ बढाया कि तभी साहिर ने उन्हें तेज आवाज में चेताया कि ये अमृता की चाय पी हुई कप है इसे फेंकने की गलती न करें।
साहिर और जावेद का रिश्ता जानिसार अख्तर के बेटे जावेद को उस समय प्यार से जादू बुलाया जाता था। एक बार जावेद ने घर छोड़ दिया था और वे फिल्मिस्तान स्टूडियो के गोदाम में रहने लगे। उनकी कोई कमाई नहीं थी। एक दिन वे साहिर के घर पहुंचे, कई दिन से नहाए नहीं थे, तो उनके घर नहाए और नहाकर जब आए तो उनके सामने टेबल पर सौ रुपए रखे थे। साहिर ने कहा, जादू ये रुपए रख लो। सौ रुपए उन दिनों बड़ी रकम थी। उन्होंने बोला जब कमाने लगो तो वापस कर देना। जावेद मजबूर थे तो रुपए रख लिए। काफी समय बाद ऐसे दिन आए कि अब जादू,जावेद अख्तर हो गए थे।
साहिर ने उनसे कहते कि मेरे सौ रुपए दो तो जावेद कहते मैं वो खा गया अब नहीं दूंगा। इसपर साहिर कहते मैं लेकर रहूंगा। दोनों के बीच ऐसी प्यार भरी नोक-झोंक चलती रहती थी। एक दिन साहिर अपने डॉक्टर से मिलने उसके घर गए। इस बार तबीयत डॉक्टर साहब की खराब थी। वहां बातें करते हुए उन्हें दिल का दौरा पड़ा और मौत हो गई।
डॉक्टर ने जावेद अख्तर को ही फोन मिलाया। जावेद चुपचाप उनकी लाश को घर लेकर आए और उस टैक्सी वाले से पूछा कितने पैसे हुए उसने कहा सौ रुपए। तब जावेद बोले मरते-मरते भी अपने पैसे ले ही गया।
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