नई दिल्ली/टीम डिजिटल। बॉलीवुड के दबंग खान सलमान खान (Salman khan) पर लगे हिरण शिकार (Black buck) और आर्म्स एक्ट मामलों में मंगलवार को जोधपुर कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सलमान खान वहां पर नहीं पहुंचे लेकिन उनके वकील ने हाजरी माफी की अर्जी पेश की।
सलमान नहीं पहुंचे कोर्ट सलमान के वकील ने कहा कि मुंबई और जोधपुर में कोरोना वायरस का संक्रमण फैल रहा है और ऐसे में कोर्ट में पेश होना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए सलमान खान आज पेश नहीं हुए हैं। इस हाजरी माफी पर सुनवाई करते हुए जिला एवं सेशन जिला जज राघवेंद्र काछवाल ने कोर्ट में सुनवाई टाल दी है। अब इस मामले में कोर्ट अगले साल 16 जनवरी को सुनवाई करेगा।
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क्या है पूरा मामला हम साथ-साथ हैं की शूटिंग के दौरान कांकणी गांव में सलमान समेत सैफ अली खान, तब्बू, नीलम, सोनाली बेंद्रे और दुष्यंत सिंह पर काले हिरण के शिकार का मामला दर्ज किया गया था। जिसको लेकर आज कोर्ट में सलमान खान की पेशी थी पर वह कोरोना के कारण वहां नहीं पहुंच पाए।
2018 में मिली सलमान को सजा इस केस में सुनवाई करते हुए 2018 में जोधपुर सेशन कोर्ट ने सलमान खान को दोषी पाते हुए 5 साल की सजा सुनाई थी इतना ही नहीं उन्होंने उनपर 10 हजार का जुर्माना भी लगाया था।आपको बता दें कि इस दौरान फ अली खान, नीलम, सोनाली, तब्बू और दुष्यंत सिंह को बाइज्जत बरी कर दिया गया था। सलमान खान को दोषी साबित करने के लिए कई सालों से जंग लड़ रहे बिश्नोई समुदाय कोर्ट के उस आदेश से काफी खुश था। ऐसा कह सकते हैं कि सलमान खान को सजा दिलाने में इस समुदाय की बड़ी भूमिका रही है।
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आखिर कौन हैं बिश्नोई समुदाय के लोग बिश्नोई भारत का एक सम्प्रदाय है जो जिसके अनुयायी राजस्थान आदि प्रदेशों में पाए जाते हैं। सदगुरु जम्भेश्वर जी पंवार को बिश्नोई पंथ का संस्थापक माना जाता है। 'बिश्नोई' दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है, बीस+नो अर्थात उनतीस अर्थात जो उनतीस नियमों का पालन करता है। इसकी स्थापना 1485 में हुई थी। वन्यजीवों के लिए यह समाज बहुत उदार विचार रखता है औप अपने परिवार की तरह पालता है। यह समाज जात-पात से बढ़कर वन्यजावों की उदारता में यकीन रखता है।इसमें हिंदू और मुसलमान दोंनो ही धर्मों के लोग होते हैं। उदाहरण के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, तेली, धोबी, खाती, नाई, डमरु, भाट, छीपा, मुसलमान, जाट एवं साईं आदि जाति के लोगों ने मंत्रित जल लेकर इस संप्रदाय में दीक्षा ग्रहण की।
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हिरण के लिए खास प्रेम प्रकृति और वन्यजीवों के साथ-साथ हिरण के लिए इस समुदाय में विशेष प्रेम देखा जाता है। इनकी महिलाएं हिरण को अपने बच्चे की तरह मानती हैं। यहां तक की वह उन्हें अपने बच्चों की दूध पिलाती हैं। लावारिस हिरण मिलने पर पुरुष उन्हें अपने घर ले आते हैं और महिलाएं उन्हें पालती हैं। यह परंपरा आज या कल की नहीं बल्कि 500 साल पुरानी बताई जाती है।
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