नई दिल्ली/टीम डिजिटल। जिक्र अगर संगीत की हो और उस्ताद बिस्मिल्लाह खां (Ustad Bismillah Khan) का नाम ना आए, ये तो मुमकिन ही नहीं। शहनाई की गुंजों से लोगों को मोहित करने वाले बिस्मिल्लाह खां की पुण्यतिथि (death anniversary) 21 अगस्त को मनाई जाती है। बिस्मिल्लाह खां ने भले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया है लेकिन आज भी उनके शहनाई के मधुर स्वर सभी को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। वहीं अपना पूरा जीवन संगीत को समर्पित करने वाले बिस्मिल्लाह खां के बारे में आज हम आपको एक ऐसी बात बताएंगे जिसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे।
पुण्यतिथि विशेष : राष्ट्रीय पर्व पर आज भी गुंजती हैं बिस्मिल्लाह खां की शहनाई
बिस्मिल्लाह खां की अंतिम इच्छा रह गई थी अधूरी कहा जाता है कि मरने से पहले बिस्मिल्लाह खां इंडिया गेट पर शहनाई बजाना चाहते थें लेकिन ऐसा कभी मुमकिन नहीं हो पाया और अपनी आखिरी इच्छा दिल में लिए साल 2006, 21 अगस्त को वे इस दुनिया से चले गए। बता दें कि बिस्मिल्लाह खां का जन्म 1916 में हुआ था और उन्बिहोंने साल 2006 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
बिहार के छोटे से गांव डुमराव के रहने वाले बिस्मिल्लाह खां को बचपन से ही शहनाई बजाने का सोख था। कहा जाता है जब भी वो अपने मामा को शहनाई बजाते हुए सुनते तो उनका भी मन करता था कि वो भी शहनाई को अपनी हाथों में लेकर इसे बजाए। बस फिर क्या थे देखते ही देखते वो शहनाई में मधुर स्वर घोलने लगें और एक आम इंसान से बिस्मिल्लाह खां बन गएं। आपको बता दें कि महज 6 साल की उम्र में वो अपने परिवार वालों के साथ बनारस आकर बस गए थें। यहीं से उन्होंने अपने संगीत की शुरूआत की थी।
पुण्यतिथि: बनारस को अपनी पहचान बनाकर पेश किया करते थे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां
आपको सबसे खास बात बता दें कि हमारे स्वतंत्र दिवस और खान साहब की शहनाई की एक अलग ही कहानी है। जी हां, साल 1947 में जब लालकिले पर भारत का पहला झंडा फहराया जा रहा था तो वहां पर खान साहब की भी शहनाई की धुनें बज रही थी जोकि लोगों के बीच आजादी का संदेश बांट रही थी। वहीं आज भी हर साल 15 अगस्त को जब भी हमारे देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर भाषण देते हैं तो उसके फौरण बाद खान साहब की शहनाई बजती ही बजती है।
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