देहरादून/ योगेश योगी। केदारनाथ आपदा की सातवीं बरसी से ठीक पहले एक सवाल फिर खड़ा हो गया है कि क्या धारी देवी मंदिर को विस्थापित करने की परिणीति के तौर पर केदारनाथ आपदा सामने आई थी। यह दावा पर्यावरणीय विज्ञान वेत्ता ने किया है। अपने इस दावे के समर्थन में वैज्ञानिक तथ्यों के साथ कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड इंडियन फिलासफी के चेयरमैन प्रभु नारायण ने इसको लेकर उत्तराखंड के मुख्य सचिव को चिट्ठी लिखी है। प्रभु नारायण केन्या सरकार के डिजास्टर मैनेजमेंट सलाहकार भी हैं। उन्होंने पत्र में कहा है कि सही वैज्ञानिक जानकारी और धारी देवी शक्तिपीठ के बारे में पूरी जानकारी जुटाए बगैर ही उसे मूल स्थान से विस्थापित किया गया। जो केदारनाथ में विनाशकारी तबाही का कारण बना। यह एक बहुत बड़ा अपराध है।
उन्होंने इसके लिए अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड पर आईपीसी की धाराओं में मुकदमा दर्ज किए जाने की मांग की है। साथ ही अन्य अधिकारियों को भी दंडित करने की मांग की है। इस अपराधिक साजिश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, पर्यावरण और वन मंत्रालय,केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा तत्कालीन मुख्य सचिव भी शामिल थे।
प्रभु नारायण ने कहा कि मां धारी देवी शक्ति पीठ पृथ्वी पर एक विशिष्ट भंवर है। यह ऊर्जा का एक घूमता केंद्र है। यह प्राकृतिक या प्राथमिक ऊर्जा का बिंदु है जो पृथ्वी के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र को बनाता है। ऊर्जा भंवर दुनिया भर में कहीं भी पाया जा सकता है। उच्च पवित्रता के ये स्थल पृथ्वी के चुंबकीय पोर्टल्स की भूमिका निभाते हैं। ऐसी साइटों पर वैज्ञानिक जांच की जरूरत है।
इसके साथ ही उन्होंने कई वैज्ञानिक दावे किए हैं। उनका कहना है कि धारी देवी शक्ति पीठ ने हिमालय के केदारखंड क्षेत्र में प्रलय को दिखाया था। वह पीजोइलेक्टिसिटी थी जोकि एक विद्युत आवेश है। जो कुछ ठोस पदार्थों जैसे कि क्वार्ट्ज क्रिस्टल, कुछ सिरेमिक और जैविक पदार्थों जैसे हड्डी, डीएनए और विभिन्न प्रोटीनों में लागू यांत्रिक तनाव के जवाब में जमा होता है।
पीजोइलेक्टिसिटी का अर्थ है दबाव और अव्यक्त गर्मी से उत्पन्न बिजली। पीजोइलेक्टिसिटी का उपयोग कई अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि ध्वनि का उत्पादन और उसका पता लगाना। उन्होंने कहा कि अपनी बात को साबित करने के लिए उनके पास अनेक प्रमाण हैं। सरकार ने दोषी अधिकारियों पर एक्शन नहीं लिया तो सभी प्रमाण कोर्ट के सामने रखेंगे।
कुछ ही घंटों बाद आई थी आपदा श्रीनगर के पास स्थित धारी देवी की प्रतिमा को अलकनंदा नदी से अपलिफ्ट किया गया था। 16 जून 2013 की शाम प्राचीन मंदिर से प्रतिमा हटाई गई थी और उसके कुछ ही घंटे बाद केदारनाथ जैसी भीषण आपदा सामने आई थी। इस आपदा में हजारों लोग मारे गए थे। उत्तराखंड में तभी से लोग कहते आए हैं कि धारी देवी के गुस्से से ही केदारनाथ आपदा आई थी।धारी देवी को मां काली का स्वरूप माना जाता है।
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