Wednesday, May 31, 2023
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#MeToo उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने के साथ महिलाओं को होनी चाहिए इस कानून की जानकारी

  • Updated on 10/10/2018

नई‍ दिल्ली/आयुषी त्यागी। जिस देश में शक्ति का स्वरूप मां दुर्गा हो अब उसी देश में महिला होना एक अभिशाप बनता जा रहा है। आधुनिकता के इस दौर में महिलाओं को आज भी अपना वजूद साबित करने के लिए कई तरह की अग्निपरिक्षाओं से गुजरना पड़ता है फिर चाहे वो पारिवारिक जीवन हो या व्यवसायिक।

आगे बढ़ने से पहले थोड़ा अपडेट हो जाता हैं, सोशल मीडिया पर इन दिनों एक #MeToo कैंपेन चल रहा है जिसके तहत महिलाएं अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के बारे में खुलकर सामने आ रही है। तनुश्री दत्ता ने अपने साथ हुए उत्पीड़न के बारे में जब से दुनिया के सामने खुलकर अपनी बात रखी तब से सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने साहस दिखाते हुए इस बारे में बताना शुरू कर दिया है। 

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यूं तो महिलाओं का साथ पहले से ही उत्पीड़न होता आ रहा है। चाहे वो यौन उत्पीड़न हो या मानसिक उत्पीड़न लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब महिला के साथ  दुर्व्यवहार की बातें गुपचुप चर्चाओं में शामिल ये बातें खुलकर सामने आ रही है। 

क्या है हैशटैग मी टू 

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'मी टू' अपने आप में एक मुकम्मल वाक्य है। इस एक हैशटैग के जरिए, जिन महिलाओं के साथ किसी भी तरह का यौन शोषण हुआ है वो सामने आकर बता रही हैं कि मेरे साथ भी ऐसा हुआ है। इस हैशटैग ने एक बाद तो साफ कर दी है कि महिलाओं में किस कदर अपने साथ हुई बदसलूकी को लेकर गुस्सा है। सोशल मीडिया पर #Metoo के नाम से शुरू हुआ ये अभियान अब अक आंदोलन में बदल गया है।

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#MeToo कैसे अभियान से आंदोलन में बदला 
सबसे पहले ये #MeToo शब्द 2006 में सामने आया था। अमेरिका की सामाजिक कार्यकर्ता टैराना बर्क ने महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ 2006 में आवाज उठाई। तब बर्क ने दुनिया भर की महिलाओं से अपील की कि अगर वो भी इसकी शिकार हैं, तो मी-टू शब्द के साथ इस पर खुल कर बात करें।

साल 2017 में फिर ये शब्द सामने आया जब  हॉलीवुड अभिनेत्री एलीसा मिलानो ने खुलासा किया कि दिग्गज प्रोड्यूसर हार्वे वीन्सटीन ने उनका और तमाम अन्य अभिनेत्रियों का यौन उत्पीड़न किया। एलिसा मिलानो ने 16 अक्टूबर 2017 को ट्विटर पर सभी से अपील की अगर आप भी यौन उत्पीड़न का शिकार हुयी हैं तो #MeToo के साथ खुलकर बोलें और उसके बाद .ह अभियान एक आंगोलन की शक्ल ले चुका था। इसके बाद कई महिलाओं ने खुलासे किए की उनके साथ भी उत्पीड़न हुआ है। 

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अमूमन कार्यक्षेत्र में भी महिलाओं को उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। कई बार शरम, इज्जत और कई बार जानकारी ना होने की वजह से महिलाएं चुप हो जाती है। भारत में कार्यक्षेत्र में महिलाओं के साथ उत्पीड़न को लेकर कई तरह के कानून है जिनके बारे में सभी महिलाओं को जानकारी होना बेहद जरुरी है। 

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विशाखा गाइडलाइंस

 वर्ष 1997 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के उद्देश्य से दिशानिर्देशों का एक समूह है। विशाखा दिशा-निर्देशों में शामिल हैं:

  • नियोक्ता द्वारा कार्यस्थल पर एक शिकायत समिति का गठन किया जाना चाहिए।
  • सभी नियोक्ताओं को कानूनों से अवगत होना चाहिए और किसी भी रूप से उत्पीड़न को रोकना चाहिए।
  • यौन उत्पीड़न निषेध।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए कोई प्रतिकूल वातावरण नहीं होना चाहिए।
  • उत्पीड़ित व्यक्ति अपने स्थानान्तरण या दोषी व्यक्ति के स्थानान्तरण के लिए कह सकता है।

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कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
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कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम द्वारा 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित विशाखा दिशा निर्देशों को अधिक्रमित कर दिया गया था। महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए लोकसभा द्वारा 3 सितंबर 2012 को और राज्यसभा द्वारा 26 फरवरी 2013 को यह अधिनियम पारित किया गया था। यह अधिनियम 9 दिसंबर 2013 को लागू हुआ था, लेकिन इस अधिनियम को राष्ट्रपति की सहमति 23 अप्रैल 2013 को मिली थी।

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अधिनियम के प्रावधान

  • सभी कार्यालयों में 10 से अधिक कर्मचारियों के लिए, वहां की शिकायतों से निपटने हेंतु एक अनिवार्य शिकायत समिति होनी चाहिए।
  • कर्मचारियों के बीच के दो सदस्यों को सामाजिक कार्य या कानूनी ज्ञान का अनुभव होना चाहिए।
  • साथ ही शिकायत समिति का एक सदस्य यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों से संबंधित गैर-सरकारी संगठनों से होना चाहिए। नामांकित सदस्यों में से पचास प्रतिशत महिलाएं होनी चाहिए।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों को 90 दिनों के अंदर वहां की शिकायत समितियों द्वारा हल करना होगा। अन्यथा जुर्माना लगाया जाएगा, जिससे कार्यालय का पंजीकरण या लाइसेंस रद्द हो सकता है।
  • यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को बरखास्त किया जा सकता है। इसके अलावा अगर आरोप झूठे साबित होते हैं, तो शिकायतकर्ता को इसी तरह की सजा का सामना करना पड़ सकता है।
  • अधिनियम के तहत उनकी भूमिका और कर्तव्यों का उल्लंघन करने के मामले में दोषी व्यक्ति पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • दंड के रूप में 1 से 3 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना हो सकता है।
  • जैसा कि यौन उत्पीड़न को एक अपराध माना जाता है, इसलिए पीड़िता को अपराधियों की रिपोर्ट करनी चाहिए।
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