नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को ‘‘पूरे देश के कृषक समुदाय के लिए खतरा बताते हुए’’ देशभर से एवं विदेशी विश्वविद्यालयों से 400 से अधिक शिक्षाविदों ने इन्हें तत्काल वापस लिए जाने का आग्रह किया है। इन शिक्षाविदों ने बुधवार को संयुक्त बयान में दिल्ली सीमा पर जारी किसानों के आंदोलन और उनको होने वाली कठिनाइयों पर चिंता जताई।
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गौरतलब है कि पिछले महीने, देश के विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के 850 से अधिक शिक्षाविदों ने इन कानूनों के समर्थन में एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। संयुक्त बयान में 400 से अधिक शिक्षाविदों ने कहा, ‘‘सरकार की ओर से लागू किए गए तीन नए कृषि कानूनों का लक्ष्य देश में खेती करने के तरीकों में बुनियादी बदलाव लाना है लेकिन ये कानून पूरे देश में कृषक वर्ग के लिए एक बड़ा खतरा हैं ।’’
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इसमें कहा गया है, ‘‘सरकार को निश्चित तौर पर इन मुद्दों को दोबारा देखना चाहिए । किसानों एवं अन्य वंचित तबकों की मदद के लिए कानून बनाने से पहले देशभर में इसपर चर्चा शुरू की जानी चाहिए, जिसकी शुरुआत गांव स्तर से हो जिसमें समाज के सभी वर्गों के पक्षकारों को शामिल किया जाना चाहिए ।’’ बयान में कहा गया है, ‘‘किसानों के मुद्दों के समाधान के लिए मौजूदा कृषि कानूनों को अविलंब वापस लिया जाना चाहिए ।’’
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संयुक्त बयान पर 413 शिक्षाविदों के हस्ताक्षर हैं । इनमें जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, यादवपुर विश्वविद्यालय, आईआईटी एवं आईआईएम जैसे संस्थानों के अलावा अन्य विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों के शिक्षाविद शामिल हैं। बयान पर कुछ हस्ताक्षर विदेशी विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों के भी हैं। इनमें यूनिर्विसटी ऑफ जगरेब (क्रोएशिया), लंदन फिल्म स्कूल, यूनिर्विसटी ऑफ जोहानिसबर्ग, यूनिर्विसटी ऑफ ओस्लो, यूनिर्विसटी आफ मैसाचुसेट्स एवं यूनिर्विसटी ऑफ पिट्सबर्ग के शिक्षाविद शामिल हैं।
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बयान में चेताया गया है कि केंद्र का प्रस्तावित ‘कमोडिटी मार्केट मॉडल’ भारत में व्यावहारिक नहीं है क्योंकि इससे खाद्य अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है एवं छोटे कृषकों का शोषण हो सकता है। उल्लेखनीय है कि संबंधित कानूनों के खिलाफ हजारों किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं ।
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