Saturday, Jun 03, 2023
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फिनलैंड के बाद अब पौलेंड में तिरंगा फहराने की तैयारी में जूटी नजफगढ़ की दादी

  • Updated on 7/14/2022

नई दिल्ली। अनामिका सिंह। अगर हौसले बुलंद हों तो उम्र कभी बाधा नहीं बन सकती, इन वाक्यों को चरितार्थ कर दिखाया है नजफगढ़ के मलिकपुर गांव की दादी भगवानी देवी डागर ने। जिन्होंने अपने हौसले से फिनलैंड में हुए 90-94 वर्ष आयुवर्ग में वल्र्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 100 मीटर दौड़ में विश्व चैंपियनशिप रिकॉर्ड और नेशनल रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक व गोला फेंक और डिसकस थ्रो में कांस्य पदक जीतकर तिरंगा फहराया है। अब वो नजफगढ़ की दादी के नाम से मशहूर हो गई हैं। जिनसे मिलने बुजुर्ग ही नहीं बल्कि युवा भी आ रहे हैं और जमकर सेल्फी ले रहे हैं। बता दें कि दादी फिनलैंड में झंडा फहराने के बाद अब पौलेंड इंडोर मास्टर्स एथेलेटिक्स चैंपियनशिप की तैयारियों के लिए जमकर पसीना बहा रही हैं वो सप्ताह में तीन दिन ककरौला के स्टेडियम में तीन से चार घंटे अभ्यास करती हैं। उन्हें ट्रेंनिग उनके पाते विकास डागर देते हैं।
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दादी को अपने पोते से मिली प्रेरणा
बता दें कि जहां 100 मीटर दौड़ में उन्होंने मात्र 24.74 सेकंड का समय निकाला जो कि राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। हालांकि वो विश्व रिकॉर्ड 23.15 सेकंड है जिसे तोडऩे से चूक गईं। दादी भगवानी देवी डागर से जब इस मुकाम तक पहुंचने के बारे में पूछा तो उन्होंने इसका श्रेय अपने पोते विकास डागर को दिया जोकि खुद एक अंतर्राष्ट्रीय पैरा एथलीट हैं और राजीव गांधी स्पोट्र्स अवार्डी हैं। उन्होंने बताया कि वो बचपन में कबड्डी खेलती थीं लेकिन जिम्मेदारियों के चलते कभी खेलों में भाग नहीं ले सकीं। अब जब उनके पूरे परिवार ने उनका साथ दिया तो उन्होंने जो सपना बचपन में देखा था कि वो देश के लिए करें, उसे पूरा करने में पूरे परिवार ने उनकी मदद की। बता दें कि उनके परिवार में पुत्र हवा सिंह डागर, पुत्रवधु सुनीता, पौत्र विकास डागर, विनीत डागर, नीतू डागर के अलावा 3 पड़पौत्र और 2 पुत्रवधुएं भी हैं।
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63 साल पहले पति दुनिया से कर चुके थे अलविदा
भगवानी देवी बताती हैं कि उनके पति करीब 63 साल पहले इस दुनिया से अलविदा कर चुके थे। तब उन्होंने अकेले अपने दम पर अपने बेटे की परवरिश की और पूरी जिंदगी संघर्षों में गुजार दी। पोते विकास डागर ने जब 40 से ज्यादा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते तो इनको भी हौसला आया और खेलों में भाग लेकर देश का नाम रोशन करने की बात परिवार से बताई। जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बचपन में जिम्मेदारियों के बोझ तले खोती प्रतिभा को आखिर 90 साल से अधिक बीतने के बाद मौका मिला।
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कई ओर पदक भी जीत चुकी हैं दादी : विकास 
नजफगढ़ की दादी के पोते विकास डागर ने बताया कि दादी इससे पहले भी कई पदक जीत चुकी हैं। उन्होंने दिल्ली स्टेट में 3 गोल्ड मैडल, चेन्नई नेशनल में 3 गोल्ड मैडल जीतने के बाद अब विश्व चैंपियनशिप में 1 गोल्ड व 2 कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। पूरे मलिकपुर गांव को गौरव है कि उन्होंने देश का झंडा फिनलैंड में फहराकर दिल्ली देहात को गौरवान्वित करते हुए यह साबित किया है कि उम्र हौसलों के आड़े कभी नहीं आ सकती। जरूरत सिर्फ एकाग्रचित होकर लगातार मेहनत करने की होती है। 

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