नई दिल्ली, (नवोदय टाइम्स)। कृषि क्षेत्र में सुधार संबंधी तीनों कानूनों को लेकर आंदोलनरत किसानों से एक तरफ सरकार वार्ता कर रही है, दूसरी तरफ सुप्रीमकोर्ट में इन्हें वापस लेने से इंकार कर चुकी है। शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में सरकार ने कहा कि तीनों कानूनों का पूरे देश में बड़ा समर्थन मिल रहा है। कृषि कानूनों को लेकर सरकार और आंदोलनरत किसान यूनियन के बीच 15 जनवरी को नौवें दौर की वार्ता प्रस्तावित है।
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इस वार्ता का मुख्य मुद्दा तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी सुरक्षा देना है। लेकिन दो दिन पहले इससे जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे में साफ कहा गया है कि इन तीनों कानूनों को देशभर में बड़ा समर्थन मिला है। कुछ किसान और अन्य लोग इसका विरोध कर रहे हैं, जिनकी मांग है कि ये कानून वापस लिए जाएं। उनकी मांग न तो जायज है और न ही सरकार को स्वीकार्य। हालांकि सरकार की तमाम दलीलों के बाद भी अदालत ने इन कानूनों के अमल पर फिलवक्त के लिए रोक लगा दी है, लेकिन यह अनिश्चितकाल के लिए नहीं है। कोर्ट ने एक कमेटी बना दी है, जो इस मामले की सुनवाई कर दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी, जिसके बाद आगे की प्रक्रिया शुरू होगी।
सुप्रीमकोर्ट में दिए हलफनामे में कहा- तीनों कानूनों का देशभर में बड़ा समर्थन अदालत में दिए सरकार के हलफनामे से साफ हो गया कि वह कानूनों को रद्द करने अथवा वापस लेने के कतई पक्ष में नहीं है। इससे किसानों से प्रस्तावित वार्ता के औचित्य पर अब सवाल उठ रहे हैं। शुक्रवार, 15 जनवरी को प्रस्तावित दोनों पक्षों की वार्ता अब तक न तो टली है और न ही इसके होने को लेकर तस्वीर साफ है। 21 पेज के 41 बिंदुओं वाले इस हलफनामे में सरकार ने कहा कि याचिकाओं की सुनवाई के दौरान ऐसा संदेश गया कि इन कानूनों को पारित करने में सरकार ने जल्दबाजी की और पर्याप्त सलाह-मशविरा नहीं किया। जबकि यह सच नहीं है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि दो दशक से केंद्र सक्रिय रूप से राज्यों के साथ इस मसले को लेकर बातचीत कर रही थी। किसानों को अपनी उपज का बेहतर दाम और इसके लिए मुक्त बाजार मुहैया कराने की कवायद चल रही थी।
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हलफनामे में सरकार ने बताया कि आर्थिक उदारीकरण के साथ ही 90 के दशक में कृषि विपणन क्षेत्र में रिफार्म्स की भी शुरुआत की गई थी। इसके बाद दिसंबर 2000 में शंकर लाल गुरू की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति बनी थी। कमेटी ने मौजूदा कृषि व्यवस्था की समीक्षा कर 2001 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट के सुझाव और सिफारिशों के क्रियान्वयन के लिए जुलाई 2001 में एक अंतर मंत्रालयी टास्क फोर्स का गठन किया गया, जिसने जून 2002 में कृषि विपणन रिफार्म्स पर अपनी रिपोर्ट दी। इसके बाद 2003 में केंद्र सरकार ने मॉडल एपीएमसी एक्ट और नियम 2007 पारित कर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजा और रिफार्म्स को और प्रभावी बनाने के लिए उनसे जरूरी सुझाव मांगा। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 2010 में 10 राज्यों के कृषि मंत्रियों की हाईपावर कमेटी बनाई जिसने 2013 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें बैरियर फ्री बाजार मुहैया कराने की सिफारिश की थी।
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इसे लागू करने के लिए सभी राज्यों को भेजा गया। इसी बीच 2010 में तत्कालीन हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में भी एक वर्किंग ग्रुप बनाया गया, जिसने अपनी रिपोर्ट में कृषि उत्पादों के लिए मुक्त बाजार, व्यापार, भंडारण और निर्यात की पैरवी की थी। इसके बाद 2017 में द स्टेट एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइवस्टॉक मार्केटिंग (फेसिलिटेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट पारित कर राज्यों को उसे लागू करने के लिए भेजा था। लेकिन राज्य अधिक रुचि नहीं ले रहे थे या आंशिक रूप से ही गंभीरता दिखा रहे थे।
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हलफनामे में सरकार ने किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए अदालत को बताया कि किसानों ने दिल्ली आने वाले रास्तों को लंबे समय से रोक रखा है। सात सड़कें पूरी तरह और चार आंशिक रूप से बंद हैं। वहीं 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह, 28 जनवरी को एनसीसी रैली, 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट और 30 जनवरी को शहादी दिवस का कार्यक्रम। इन कार्यक्रमों में किसी भी तरह का अवरोध अथवा डिस्टर्बेंस न केवल कानून-व्यवस्था, पब्लिक ऑर्डर और जन भावना के खिलाफ होगा, बल्कि देश के लिए भी अपमानजनक होगा। इन हालातों से बचने के लिए गतिरोध खत्म कराने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार लगातार किसानों के साथ वार्ता कर रही है। 15 जनवरी को भी अगले दौर की वार्ता प्रस्तावित है।
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