नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। मृतक आश्रित कोटे को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High court) ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसके तहत बेटे की तरह बेटी को भी समान अधिकार मिलेगा, कोर्ट ने कहा बेटे की तरह बेटी भी परिवार की सदस्य होती है चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित। कोर्ट ने कहा कि जब हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित सेवा नियमावली के अविवाहित शब्द को लिंग के आधार पर भेद करने वाला मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया है तो पुत्री के आधार पर आश्रित की नियुक्ति पर विचार किया जाएगा, इसके लिए नियम में संशोधन की आवश्यकता नहीं है। ये आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने मंजुल श्रीवास्तव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
दो महिने में निर्णय लेने का निर्देश वहीं कोर्ट ने याची के विवाहित होने के आधार पर मृतक आश्रित के रूप में नियुक्ति देने से इनकार करने के बीएसए प्रयागराज के आदेश को रद्द कर दिया है और मामले में दो महिने में निर्णय लेने का निर्देश दिया है साथ ही कोर्ट ने कहा कि अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देने के बाद नियमावली में पुत्री शब्द बचा है। तो बीएसए विवाहित पुत्री को नियम न बदले जाने के आधार पर नियुक्ति देने से इनकार नही कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि शब्द हटने से नियम बदलने की जरूरत ही नहीं है।
सरकार ने अभी नही बदला नियम दरअसल याचिका पर अधिवक्ता घनश्याम मौर्य ने बहस की उनका कहना था कि विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने नियमावली में अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है इसलिए विवाहित बेटी को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि बीएसए ने कोर्ट के फैसले के विपरीत आदेश दिया है, जो अवैध है। इसे सरकार की असंवैधानिक कहा गया है लेकिन सरकार ने अभी नियम बदला नहीं है इसलिए विवाहित पुत्री को नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है।
बता दें कि याची की मां प्राइमरी स्कूल चाका में प्रधानाध्यापिका थीं और सेवा काल में उनका निधन हो गया। उसके पिता बेरोजगार हैं। मां की मौत के बाद परिवार के जीवनयापन का कोई साधन उनके पास नहीं है। उनकी तीन बेटियां हैं जिनकी शादी हो चुकी है। याची ने आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
कोरोना काल के कारण 65 फीसदी मामलों की पेशी दरअसल कोरोना काल और लॉकडाउन के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट में गंभीर मामलों की पेशी में करीब 65 फीसदी आयी। राष्ट्रीय न्यायिक जांच ग्रिड के मुताबिक साल 2019 में हर माह लगभग 20 हजार केस की पेशी होती थी। वहीं पेशी जुलाई 2020 में घटकर महज 5 हजार पर आ गई है। जुलाई 2020 में अब तक 5,157 केस की पेशी हुई है। ग्रिड के मुताबिक जब मार्च महीने में लॉकडाउन की शुरूआत हो रही थी तब तक 8 हजार केस की पेशी हाईकोर्ट में हो चुकी थी। उससे पहले जनवरी और फरवरी के माह में 22 हजार केस की पेशी होती थी।
यहां पढ़े अन्य बड़ी खबरें...
किसान ट्र्र्रैक्टर परेड में हिंसा: कई जगह इंटरनेट सर्विस बंद, अमित...
किसान ट्रैक्टर परेड में हिंसा : सोशल मीडिया में दीप सिद्धू को लेकर...
आचार्य प्रमोद का तंज- लाल किले का इतना “अपमान” तो किसी “कमजोर” PM के...
किसान ट्रैक्टर परेडः सियासी दल बोले-हिंसा के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार
हिंसा से आहत संयुक्त किसान मोर्चा ने तत्काल प्रभाव से किसान ट्रैक्टर...
दिल्ली दंगों में चर्चा में रहे कपिल मिश्रा ने योगेंद्र यादव और राकेश...
किसान ट्रैक्टर परेड : लालकिले में होता नुकसान, उससे पहले सजग हुई ASI
किसानों ने नांगलोई में मचाया बवाल, बैरिकेड्स तोड़े, पुलिस ने दागे...
उग्र प्रदर्शन पर 'सयुंक्त किसान मोर्चा' ने दी सफाई- घटनाओं में...
किसान आंदोलन में भड़की हिंसा के बाद दिल्ली के कई इलाकों में आज...