Sunday, May 28, 2023
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विश्‍वनाथ मंदिर-मस्‍जिद मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई आज

  • Updated on 5/10/2017

Navodayatimesनई दिल्ली/टीम डिजिटल। आज इलाहाबाद हाईकोर्ट वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्‍जिद विवाद मामले में सुनवाई करेगा। जस्टिस संगीता चंद्रा की कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगी। सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड ने विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट और अंजुमन इस्लामिया वाराणसी के बीच मुकदमे में 1947 की स्थिति बहाल रखने एवं एक अंश ही मस्जिद रखने, शेष मंदिर के उपयोग में रहने के एडीजे वाराणसी के 23 सितम्बर 1998 और 10 अक्टूबर 1997 के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है।

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क्या है विवाद

15 अक्तूबर, 1991 को श्री काशी विश्वेश्वर मुक्ति संघर्ष समिति, ज्ञानवापी वाराणसी तथा प्राचीन मंदिर के पुजारी पं. सोमनाथ भट्ट ने स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में न्यायालय सिविल जज, वाराणसी में मुक़दमा दायर किया था। अन्जुमन इन्तजामिया मस्जिद इसमें प्रतिवादी बना। मुक़दमा की प्रक्रिया के बीच में उ.प्र. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को भी पक्षकार बना दिया गया सन् 1991 से सन् 1998 के बीच इस मुक़दमा में विभिन्न मुद्दों पर दोनों पक्षों ने प्रमाण प्रस्तुत किए।

हिन्दू पक्ष का क्या कहना है

हिन्दू पक्ष ने न्यायालय के समक्ष मंदिर का ऐतिहासिक तथा पौराणिक साक्ष्य रखते हुए जानकारी दी कि सन 1669 में औरंगजेब के कुछ सैनिकों द्वारा मंदिर को आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था परंतु विवादित स्थल पर आज भी शिवलिंग विराजमान है एवं तहखाने तथा उसके आसपास के भाग पर मंदिर प्रशासन का कब्जा है। मुक़दमा करने वाले का कहना था कि मंदिर के एक भाग में निर्मित मस्जिद में अब प्रशासन के हस्तक्षेप से मुसलमान नमाज पढ़ते हैं। वादीगण ने न्यायालय से निर्देश मांगा कि वर्णित स्थान विश्वेश्वर नाथ का मंदिर है और हिन्दुओं को इसमें पूजा-अर्चना का अधिकार है। अत मुसलमानों को इस स्थान पर वर्जित किया जाए तथा जिस स्थान पर तथाकथित मस्जिद बना ली गयी है, उस पर भी आधिपत्य दिलाया जाए।

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मुस्लिम पक्ष का क्या कहना है
वही प्रतिवादी मुस्लिम पक्ष के अनुसार विवादित स्थल कभी मंदिर था ही नहीं, यहां हिन्दुओं का कभी आधिपत्य नहीं रहा, हिन्दुओं का इससे कोई मतलब नहीं है, मुसलमानों की मजहबी भावनाएं इससे जुड़ी हैं और वे यहां बराबर नमाज पढ़ते चले आ रहे हैं। उपासना स्थल विशेष उपबन्ध अधिनियम 1991 की धारा 4 के अंतर्गत यह मुक़दमा बाधित है और आधिपत्य का निर्णय समयावधि से बाधित है।

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