Monday, Jun 05, 2023
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Also respect the warriors who are carrying goods from door to door during the lockdown ALBSNT

Lockdown के दौरान लोगों को घर-घर सामान पहुंचा रहे योद्धाओं का भी करें सम्मान

  • Updated on 4/9/2020

नई दिल्ली/कुमार आलोक भास्कर। जब कभी हम लॉकडाउन और कोरोना वायरस (Corona Virus) के कहर की बात करते हैं तो अक्सर सबके जेहन में डॉक्टर, प्रशासन,मीडिया, दुकानदार, सफाई कर्मचारी का ही ध्यान आता है। लेकिन इन सबके बीच उन योद्धाओं को भी हमें धन्यवाद प्रकट करनी चाहिये जो डोर टू डोर आवश्यक सामानों की डिलेवरी का बैकबोन बनकर उभऱे है।  

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ज्यादातर लोगों ने निकाली कमाने की नई तरकीब

जी हां हम बात कर रहे है हजारों की संख्या में दिहाड़ी मजदूरी कर रहे लोगों की जो रिक्शा,ठैला चलाकर ही गुजारा करते थे। लेकिन जब से लॉकडाउन शुरु हुआ है तो उसके सामने घर बैठे रहने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं बचा। साथ ही उनके सामने संकट खड़ा हो गया काम का, तो उन्होंने नया तरीका खोज निकाला है। इन लोगों ने अपना धेर्य खोए बिना और जान की परवाह किये बगैर अपने ई रिक्शा और ठैलों पर सब्जियां और फलों को लादकर सुबह से रात तक एक मौहल्ला से दूसरे मुहल्ला तक लोगों के किचन को ही संभाल रखा है। ऐसे योद्धा जब गलियों में बेचने के लिये निकलते है और आवाज लगाते है तो घरों में बैठे लोगों को बालकोनी से झांकने के लिये मजबूर तो कर ही दिया है। साथ ही लोगों को फिर तेजी से सीढ़ियों से उतरते हुए देखा जा सकता है।

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जब करना पड़ता है मोल-भाव तो...

लेकिन कभी सब्जी और फल बेचने के नहीं आदी होने से उनके सामने भी मोल-भाव की समस्या आती है जिससे वे लोग बखूबी से हेंडिल भी कर लेते है। इन लोगों में से कई लोगों का अपना मोमो का दुकान था तो कोई सवारी को एक-जगह से दूसरे जगह पहुंचाने का काम करते थे। वहीं कोई अपने ठैले पर किसी चौक-चौराहे पर खड़े होकर फास्ट फूड लगाया करता था तो लोगों की भीड़ लग जाती थी।

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बदले हुए हालात में सामने हैं अनेक चुनौती

हालंकि अब हालात बदल गए है। उनके सामने चुनौती रही कि या तो वे भी पलायन करके दूसरों की तरह अपने-अपने गांव या शहर चले जाएं। लेकिन उन्होंने अपने उसी शहरों की सेवा करने की ठानी जहां वे अपनी जिंदगी गुजर-बसर वर्षों ही नहीं बल्कि दशकों से कर रहे है। जब उन्हें भी शहरवासियों का सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो उसके लिये एक यौद्धा की तरह सामने आए है। जिसका भी स्वागत करना चाहिये।

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सरकार पर नहीं हैं निर्भर

लेकिन सरकार के कई घोषणा के बाद भी यह स्वाबलंबी लोग दो वक्त की रोटी के लिये सरकार और किसी संस्था की तरफ मुंह बाए खड़ा नहीं रहता है। उनके इस संकट की घड़ी में लोगों के गली,मोहल्लों तक सब्जी और फलों जैसै अति आवश्यक सामानों की सप्लाई से स्थानीय प्रशासन को बड़ी राहत मिली है। जब वैसे हालात में जब लॉकडाउन  को न सिर्फ आगे बढ़ाने की बात चल रही है बल्कि शहरों के कई इलाकें को सील कर दिया गया है तो ऐसे लोग किसी देवदूत से कम नहीं है।      

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