नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। भगवान राम से जुड़े राम सेतु (Ram Setu) का समय काल अब जल्द ही सबसे सामने होगा। अंडरवाटर रिसर्च प्रॉजेक्ट इसी साल रिसर्च शुरू करने जा रहै है। जिसमें पत्थरों की श्रृंखला पर अध्ययन किया जाएगा कि आखिर ये कैसे बनी है। इसके रिसर्च की जिम्मेदारी नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशनोग्रफी (NIO) के वैज्ञानिकों को सौंपी गई है। ज्ञानिकों का कहना है कि अत्याधुनिक तकनीक से उन्हें पुल की उम्र और रामायण काल का पता लगाने में मदद मिलेगी। ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के मातहत सेंट्रल एडवायजरी बोर्ड ने एनआईओ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
रिसर्च के लिए एनआईओ सिंधु साधना नाम के जहाजों का होगा इस्तेमाल जानकारी है कि इस रिसर्च के लिए एनआईओ सिंधु संकल्प या सिंधु साधना नाम के जहाजों का इस्तेमाल करेगा, जिससे पानी की सतह के 35-40 मीटर नीचे से सैंपल्स ले सकते हैं। रिसर्च में रेडियोमेट्रिक और थर्मोल्यूमिनेसेंस (TL) डेटिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल होगा। इसके अलावा रिसर्च में यह भी पता चलेगा कि क्या पुल के आस-पास कोई बस्ती भी थी या नहीं। कोरल्स में कैल्शियम कार्बोनेट होता है जिससे इस पुल की उम्र का पता चलेगा।
करीब 48 किलोमीटर लंबा है पुल बता दें कि राम सेतू भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में पड़ता है और कोरल और सिलिका पत्थरों का बना हुआ है। इस पुल को लेकर हिंदू महाकाव्य रामायण में जिक्र है। पिलहाल ये पुल पानी में डूबा हुआ है बताया जाता है कि कुछ सदी पहले तक इसका इस्तेमाल होता था। ये पुल करीब 48 किलोमीटर लंबा है और मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक-दूसरे से अलग करता है। कई जगह इसकी गहराई केवल 3 फुट है तो कहीं-कहीं 30 फुट तक है।
पहले के अध्ययन मेंलपाया गया है कि 15 शताब्दी तक इस ढांचे पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाने के सबूत वैज्ञानिकों को मिले हैं मगर तूफानों के चलते इसकी गहराई बढ़ गई। हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, भगवान राम अपनी पत्नी सीता को जब लंका के राजा रावण की कैद से बचाने निकले थे तो रास्ते में समुद्र पड़ा, जिसके बाद उनकी वानर सेना ने ही इस पुल का निर्माण किया था। रामायण के मुताबिक वानरों ने छोटे-छोटे पत्थरों की मदद से इस पुल को तैयार किया था।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामला बता दें कि 2005 में यूपीए 1 के दौरान सेतुसमुद्रम शिप चैनल प्रॉजेक्ट की घोषणा हुई, जो काफी विवाद का विषय रहा। क्योंकि इसके लिए पुल की कुछ चट्टानों को तोड़ना पड़ता था ताकि गहराई बढ़े और जहाज वहां से गुजर सके। विवाद के बाद आस्था के इस पुल का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा जिसने 2007 में काम पर रोक लगा दी। 2007 में ही एएसआई और यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि भगवान राम ने यह पुल बनाया है जिसपर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस प्रॉजेक्ट के खिलाफ पीआईएल लगाई थी। फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
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