नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। हम अमृतकाल की उस दहलीज पर हैं जिसकी संपूर्ण शताब्दी पूरी होने में 25 वर्ष का समय है और उस समय राष्ट्र स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करेगा। मौजूदा अमृत महोत्सव राष्ट्र की विकास गति की एक रूप-रेखा प्रस्तुत करता है। हमारे पूर्वजों ने इस संबंध में अपनी स्पष्ट दूरदृष्टि प्रस्तुत की थी, जिसके फलस्वरूप हमारी अब तक की प्रगति हुई है। नए भारत के निर्माण के इस व्यापक कार्य के परिप्रेक्ष्य में कई क्षेत्रों में डा. बी.आर. अम्बेडकर की प्रेरणादायी दूरदृष्टि और सतर्कतापूर्ण दृष्टिकोण हमेशा एक मार्गदर्शी प्रकाश-स्तम्भ के रूप में हमारे साथ है।
उनकी 131वीं जयंती एक राष्ट्र निर्माता के रूप में उनकी समग्र भूमिका का स्मरण करने और हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक कार्य क्षेत्रों में उनके आदर्शों का अनुकरण करने के लिए पुन: दृढ़ संकल्प और प्रेरित होने का एक उपयुक्त अवसर है।
डा. अम्बेडकर ने एक संस्था निर्माता के रूप में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वर्तमान समय की संवैधानिक व्यवस्था ने उनकी बुद्धिमत्ता और ज्ञान को चारों दिशाओं में गुंजायमान किया है। वे संविधान सभा में वाद-विवाद में सबसे महत्वपूर्ण वक्ता थे। इस क्षेत्र में संपूर्ण वार्तालाप में सर्वाधिक योगदान अर्थात 7.5 प्रतिशत बाबासाहेब का ही रहा, जबकि नेहरू का योगदान 2.14 प्रतिशत रहा। भारतीय रिजर्व बैंक ने डा. अम्बेडकर के ‘रुपए की समस्या-इसकी उत्पत्ति और समाधान’ विषयक शोध-पत्र को अपनी कार्यप्रणाली का मूलाधार बनाया। वायसराय की कार्यकारी परिषद के लेबर मैंबर के रूप में उन्होंने जल, बिजली, श्रम कल्याण नीतियों को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने केंद्र और राज्य के हितों को जोखिम में डाले बिना अपने आॢथक स्तर को उत्तरोत्तर ऊपर उठाने के प्रयोजनार्थ केंद्र और राज्यों के बीच एक संघीय वित्त प्रणाली को विकसित करने में बड़ा योगदान दिया।
वे दलित वर्ग के लिए तर्कसंगत आवाज बुलंद करने वाले श्रमिक अधिकारों के एक कट्टर पैरोकार थे। एक श्रमिक नेता के रूप में उन्होंने ‘कार्य की उचित स्थिति’ की बजाय ‘श्रमिक के जीवन की उचित स्थिति’ की हिमायत की। अन्य कल्याणकारी कार्यों यथा काम के घंटों को घटाकर प्रति सप्ताह 48 घंटे करना, ओवर टाइम और सवेतन अवकाश (पेड लीव) की व्यवस्था, न्यूनतम पारिश्रमिक का निर्धारण और उसकी सुनिश्चितता, श्रम कल्याण कोष तथा ट्रेड यूनियनों की स्वीकार्यता को अक्षरश: लागू किया गया।
काश्तकारों के बीच दास परम्परा का उन्मूलन भू-पट्टे में खेती प्रणाली का उन्मूलन तथा श्रमिकों की हड़ताल संबंधी अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए औद्योगिक विवाद विधेयक 1938 का कड़ा विरोध किया गया था। डा. अम्बेडकर आधुनिक समाज में महिलाओं की प्रगतिशील भूमिका के प्रति बहुत जागरूक थे और उन्होंने सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के भाग के रूप में स्वतंत्रता के तुरन्त बाद महिलाओं के लिए मतदान अधिकार सुनिश्चित कराने की हिमायत की।
हिंदू कोड बिल में उन्होंने महिलाओं को, गोद लेने के अधिकार के साथ-साथ, विरासत का अधिकार प्रदान करने की भी वकालत की। आॢथक कार्यबल में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए उन्होंने लंैगिक भेदभाव के बिना ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ के प्रावधानों को सुनिश्चित किया और कोयला खदानों में भूमि के अंदर कार्य करने वाली महिलाओं पर पाबंदी हटाने संबंधी विषय में सार्थक हस्तक्षेप किया।
25 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा में अपने समापन भाषण के दौरान डा. अम्बेडकर ने एक व्यक्ति, एक वोट और एक मूल्य की व्यवस्था के माध्यम से राजनीतिक समानता प्राप्त करने पर संतोष की अनुभूति को व्यक्त किया। इसके बावजूद उन्होंने सामाजिक और आॢथक मोर्चों पर संबंधित मूल्यों में मौजूदा मतभेदों के कारण आने वाले विरोधाभासों के बारे में आगाह किया।
तथापि, पिछले 8 वर्षों में मोदी सरकार द्वारा की गई पहल इन विरोधाभासों को दूर कर रही है और राष्ट्र डा. भीम राव अम्बेडकर की दूरदृष्टि के करीब पहुंचता जा रहा है। ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास सबका प्रयास’ से अभिप्रेत है कि यह देश के हर आदमी तक की समावेशिता और लोगों की असीमित प्रतिभाओं के उत्थान और संवर्धन के लिए सरकार के बहु आयामी प्रयासों का एकीकरण सुनिश्चित करता है।
अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन में एक वर्ष की समय-सीमा में नेहरू सरकार की देरी और इस निष्क्रियता के प्रति उनका उदासीन रवैया उन चार कारणों में से एक था जिसके कारण 1951 में नेहरू मंत्रिमंडल ने त्यागपत्र दे दिया। वर्ष 2018 में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के संवैधानिक स्तर को आगे बढ़ाने और तदोपरांत सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान करने के संबंध में राज्यों को अनुमति दिए जाने के लिए किया गया 105वां संवैधानिक संशोधन न्यायपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में उठाया गया कदम है।
डा. अम्बेडकर ने जम्मू-कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने, पाकिस्तान के साथ उठाए गए मामलों के गलत प्रबंधन, पूर्वी बंगाल के हिंदुओं की दुर्दशा और उच्च सैन्य खर्च के संबंध में विदेश नीति का विरोध किया। 26 अगस्त 1954 में राज्यसभा में बोलते हुए बाबासाहेब ने नेहरू की विदेश नीति की आलोचना करते हुए कहा था कि भारत की विदेश नीति (नेहरू नीति) का सूत्र हमारी समस्या नहीं, दूसरे देशों की समस्याओं का हल करना बन गया है।
भाजपा स्थापना दिवस पर ‘सामाजिक न्याय पखवाड़ा’ मनाने का विचार डा. अम्बेडकर के आदर्शों के प्रति परस्पर सद्भावना को व्यक्त करता है। सरकारी कार्यक्रम सकारात्मक बदलाव लाने और विशेष रूप से सभी वंचित और दलित वर्ग के लोगों के जीवन को सरल और सहज बनाने की दिशा में कार्यरत हो रहे हैं। ‘पंच तीर्थ’ के विकास तथा डा. अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र एवं गरीब समर्थित कल्याण योजनाओं से लोगों के जीवन का स्तर बढ़ रहा है। संशोधित पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति स्कीम में चार करोड़ अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को उच्चतर शिक्षा सुविधा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
कामगारों की उचित जीवन दशा पर ध्यान केंद्रित करते हुए चार श्रम संहिताएं अर्थात पारिश्रमिक संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता बनाई गई है। संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला, लखनऊ द्वारा बाबा साहेब डा. अम्बेडकर की निजी वस्तुओं के परिरक्षण के लिए एक परियोजना शुरू की जा रही है। इन वस्तुओं को नागपुर, महाराष्ट्र के चिंचोली नामक स्थान में प्रस्तावित अनुसंधान केंद्र एवं संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा।
आज डा. अम्बेडकर जी की 131वीं जयंती के इस पावन अवसर पर, आइए हम सभी उन्हें याद करें और उन सुखद सपनों को साकार करें जो सपने हमारे पूर्वजों और गुमनाम नायकों द्वारा देखे गए थे। आइए, हम अपने सत्कार्यों से एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करने और अपने राष्ट्र को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की ओर अग्रसर हों, ताकि इसका प्रभाव पूरे विश्व में गुंजायमान हो तथा हमारे प्रिय देश में समन्वय और भाईचारे की भावना बलवती हो।
अर्जुन राम मेघवालः (केंद्रीय संस्कृति एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री)
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