Friday, Mar 31, 2023
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bad bank headed by private sector wants chief economic advisor to deal with npa rkdsnt

NPA से निपटने के लिए प्राइवेट सेक्टर की अगुवाई में ‘बैड बैंक’ चाहते हैं मुख्य आर्थिक सलाहकार

  • Updated on 2/1/2021

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) केवी सुब्रमण्यन ने निजी क्षेत्र की अगुवाई में बैड बैंक की स्थापना की वकालत की है। उन्होंने कहा है कि प्रभावी तरीके से गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की समस्या से निपटने के लिए बैड बैंक जरूरी है। माना जा रहा है कि कोविड-19 की वजह से रिजर्व बैंक ने जो नियामकीय छूट दी हैं, उन्हें वापस लिए जाने के बाद बैंकों के डूबे कर्ज में बड़ा इजाफा हो सकता है। 

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सरकार काफी समय से बैड बैंक के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सोमवार को लोकसभा में बजट 2021-22 में इसको लेकर कुछ कदमों की घोषणा कर सकती हैं। बैड बैंक से आशय ऐसे वित्तीय संस्थान से है, जो ऋणदाताओं के डूबे कर्ज को लेगा और समाधान की प्रक्रिया आगे बढ़ाएगा। ऋणदाता काफी समय से बैड बैंक की स्थापना की मांग कर रहे हैं, जिससे इस कठिन समय में उनका डूबे कर्ज का दबाव कुछ कम हो सके। 

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सुब्रमण्यन ने कहा, ‘‘बैड बैंक के गठन से निश्चित रूप से कुछ एनपीए के एकीकरण में मदद मिलेगी। यह भी महत्वपूर्ण है कि बैड बैंक का क्रियान्वयन निजी क्षेत्र में करने पर विचार हो। इससे निर्णय की प्रक्रिया तेज हो सकेगी।’’ सार्वजनिक क्षेत्र में डूबे कर्ज के समाधान में ‘तीन सी’ की वजह से देरी होती है। तीन सी से तात्पर्य केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) से है। सीईए ने कहा, ‘‘इस समय बैड बैंक के विचार की जरूरत है। लेकिन इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसकी डिजाइनिंग निजी क्षेत्र में होनी चाहिए।’’ 

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आर्थिक समीक्षा-2017 में सबसे पहले यह विचार आया था। समीक्षा में सार्वजनिक क्षेत्र संपत्ति पुनर्वास एजेंसी (पारा) के नाम से बैड बैंक का प्रस्ताव किया गया था।  इससे पहले इसी महीने रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने संकेत दिया था कि केंद्रीय बैंक संभवत: बैड बैंक के प्रस्ताव पर विचार कर सकता है। 

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सुब्रमण्यन ने कहा कि कोविड-19 की वजह से दी गई मौजूदा रियायतें समाप्त होने के बाद नए सिरे से संपत्ति की गुणवत्ता की समीक्षा (एक्यूआर) होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि महामारी की वजह से दुनियाभर के नियामकों ने आॢथक चुनौतियों के बीच कुछ नियामकीय राहत दी हैं। भारत में भी ऐसा किया गया है।  

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