नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में स्थानीय मु्द्दों को लेकर पूर्व और वर्तमान सहयोगियों के बीच भविष्यवाणी की जा रही है, कई लोगों का मानना है कि राज्य के आर्थिक हालात पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की स्पष्ट बढ़त है। राज्य ने पिछले पांच वर्षों में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) की वृद्धि की है। कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च के साथ- साथ बुनियादी ढांचे में सुधार किया है।
हालांकि, बिहार की विरासत की समस्याएं जैसे कि न्यूनतम औद्योगिकीकरण, स्वच्छ पानी, स्वच्छता, खुले में शौच, ग्रामीण आवास और लघु और सीमांत किसानों के लिए माइक्रोफाइनेंस जारी है।
राष्ट्रीय विकास दर से अधिक था जीएसडीपी दरअसल 2005-06 और 2014-15 के बीच सीएम के रूप में नीतीश के पहले दशक में लगातार कीमतों पर बिहार का जीएसडीपी सालाना 10.5% की दर से बढ़ा। हालांकि इस स्पाइक को कम-आधार प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, जीएसडीपी 9.8% की औसत दर से बढ़ना जारी रहा, 2010-11 और 2014-15 के बीच भी राष्ट्रीय विकास दर से अधिक था।
2015 के विधानसभा चुनाव से पहले, नीतीश कुमार ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ अपने पुराने संबंधों को तोड़ दिया और अपने लंबे समय के राजनीतिक दुश्मन लालू प्रसाद के महागठबंधन के साथ चुनाव में जाने का विकल्प चुना। गठबंधन निर्वाचित हो गया, लेकिन यह कार्यकाल नहीं चल सका। दो साल बाद, 2017 में, कुमार एनडीए में वापस आने और सीएम के रूप में जारी रहने के लिए महागठबंधन साझेदारी से बाहर हो गए।
जीएसडीपी पर राजनीतिक प्रभाव इसके बाद जीएसडीपी पर इसका राजनीतिक प्रभाव देखा गया था। 2015-16 में, विकास दर 7.6% तक गिर गई। हालांकि, बिहार अपने औद्योगिक क्षेत्र में आय और वृद्धि से प्रभावित है, इसकी देयता और राजस्व प्राप्ति दोनों में दिखता है। वहीं बकाया देनदारियों की बात करें तो 2015 और 2019 के बीच की अवधि में, ये 1.16 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 1.68 लाख करोड़ रुपये हो गए।
2015-16 में औद्योगिक क्षेत्र में 7.1% दर की बढ़त वहीं इस विधानसभा के कार्यकाल की शुरुआत में, 2015-16 में, जब औद्योगिक क्षेत्र 7.1% की दर से बढ़ा, तो इसने जीएसडीपी का केवल 19% योगदान दिया। यह 30% के राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे था और पड़ोसी झारखंड में भी औद्योगिक क्षेत्र का लगभग आधा औसत योगदान था। तब से बढ़ते हुए, 2017-18 में औद्योगिक क्षेत्र में जीएसडीपी का योगदान केवल 20% था जिसका राष्ट्रीय औसत 31.2% था, जबकि झारखंड का आंकड़ा 37.1% था।
2016-17 के अंत में, बिहार के अनुमानित 3,531 कारखानों में से केवल 2,900 ही चालू थे, प्रत्येक में औसतन 40 लोग कार्यरत थे। राष्ट्रीय औसत लगभग दोगुना, 77 श्रमिक हैं। बिहार में प्रति कर्मचारी औसत वेतन तब 1.2 लाख रुपये था, जो राष्ट्रीय औसत 2.5 लाख रुपये से आधे से भी कम था।
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