नई दिल्ली/टीम डिजिटल। उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बेला एम. त्रिवेदी ने बुधवार को बिल्कीस बानो मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। उल्लेखनीय है कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा की याचिकाओं सहित, इस मामले में दायर अन्य याचिकाओं को सुनवाई के लिये लिया। दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ताओं को मामले में अपने हस्तक्षेप के अधिकार को साबित करना होगा।
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याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अपर्णा भट ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अदालत द्वारा उनकी याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद यह चरण काफी पहले ही पार हो चुका है। भट ने कहा कि मामले में दलीलें पूरी हो चुकी हैं और अदालत याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई फरवरी में कर सकती है। पीठ ने भट के अनुरोध पर सहमति जताई और कहा कि वह फरवरी के लिए याचिकाओं को सूचीबद्ध करेगी। बिल्कीस की वकील शोभा गुप्ता ने इस बिंदु पर बताया कि न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने दोषियों की सजा में छूट और जेल से उनकी समय पूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली पीड़िता की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। न्यायमूर्ति रस्तोगी ने इसके बाद न्यायमूर्ति त्रिवेदी से संक्षिप्त बातचीत की और कहा, “क्योंकि मेरी साथी न्यायाधीश पहले ही पीड़िता की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर चुकी हैं, इसलिए वह इस मामले की सुनवाई से भी खुद को अलग करना चाहेंगी।”
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न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा कि अब पीड़िता ने दोषियों को छूट देने को चुनौती देते हुए इस अदालत का दरवाजा खटखटाया है, उसकी याचिका को एक प्रमुख मामले के रूप में लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जब पीठ न्यायाधीशों के एक अलग संयोजन के साथ बैठेगी तो बाकी याचिकाओं को उसकी याचिका के साथ नत्थी कर दिया जाएगा। पीठ ने कहा, “हम सभी मामलों को अगली तारीख पर सूचीबद्ध करेंगे और सभी याचिकाओं के साथ संलग्न करेंगे। तब तक सभी दलीलें पूरी हो जानी चाहिए।” वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और मल्होत्रा ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा जो भी प्रत्युत्तर हलफनामे दाखिल किए जा रहे हैं, उन्हें उनको दिया जाए। न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा कि पक्षों के बीच सब कुछ साझा किया जाना चाहिए और एक बार मामले को संलग्न किए जाने के बाद, अदालत गुण-दोष के आधार पर इस मुद्दे की सुनवाई शुरू करेगी। न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने बीती 13 दिसंबर को बिल्कीस बानो द्वारा दायर उस याचिका की सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया था जिसमें उसके सामूहिक बलात्कार मामले के 11 दोषियों की सजा माफ करने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है।
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पहले की तरह सुनवाई से अलग होने की कोई वजह जाहिर नहीं की गई थी। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून की आवश्यकता को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए एक यांत्रिक आदेश पारित किया। गुजरात सरकार ने मामले में सभी 11 दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें बीते साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था। बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। घटना के वक्त बानो की उम्र 21 साल थी और वह पांच महीने की गर्भवती थी। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी और उच्चतम न्यायालय ने मुकदमे की सुनवाई महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित की थी। मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी। बाद में बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी उनकी सजा बरकरार रखी थी। मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोग 15 अगस्त 2022 को गोधरा उप-जेल से रिहा हुए थे। गुजरात सरकार ने राज्य की सजा माफी नीति के तहत इन दोषियों को रिहा करने की अनुमति दी थी। उन्होंने जेल में 15 साल से ज्यादा की सजा पूरी कर ली थी।
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